USCC रिपोर्ट: राष्ट्रीय सुरक्षा का अंतिम निर्णय विदेशी नहीं, भारतीय संप्रभु संस्थाएं करेंगी
- यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन (USCC) रिपोर्ट में संघर्ष के स्वरूप और परिणामों को लेकर कई दावे किए हैं। ऐसे दावे, जिनके समर्थन में कोई स्वतंत्र या सत्यापन योग्य प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
- रिपोर्ट में सबसे विवादास्पद बात 'पाकिस्तान ने सामरिक सफलता प्राप्त की और भारत ने तीन लड़ाकू विमान खोए' हैं।
विस्तार
अमेरिका की कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन (USCC) की विवादास्पद रिपोर्ट ने मई 2025 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष (ऑपरेशन सिंदूर) पर एकबार फिर नई बहस छेड़ दी है।
रिपोर्ट में संघर्ष के स्वरूप और परिणामों को लेकर कई दावे किए हैं। ऐसे दावे, जिनके समर्थन में कोई स्वतंत्र या सत्यापन योग्य प्रमाण उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट में सबसे विवादास्पद बात 'पाकिस्तान ने सामरिक सफलता प्राप्त की और भारत ने तीन लड़ाकू विमान खोए' हैं।
यह वही नैरेटिव है, जो संघर्ष के तुरंत बाद पाकिस्तानी सोशल मीडिया इको-सिस्टम में फैलाया गया था, जिसे तब भी दुनिया भर के फैक्ट-चेक मंचों, ओएसआईएनटी (OSINT) समूहों और सैन्य विश्लेषकों ने खारिज कर दिया था। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक आधिकारिक अमेरिकी रिपोर्ट ऐसे निष्कर्षों पर कैसे पहुंची? जिनका कोई ठोस आधार नहीं है, जो क्षेत्रीय वास्तविकताओं से मेल नहीं खाते।
इसका एक उत्तर भू-राजनीति, विशेषकर चीन की भूमिका, में छिपा है। आश्चर्यजनक यह है कि भारत में एक वर्ग इस रिपोर्ट पर कूद रहा है।
दरअसल, भारत-पाकिस्तान संघर्ष का उपयोग चीन ने एक अवसर की तरह किया। पाकिस्तान के साथ उसका सैन्य-रणनीतिक गठजोड़ और सी-पैक (CPEC) जैसे प्रोजेक्ट्स में उसकी गहरी आर्थिक हिस्सेदारी पहले से स्पष्ट है। फिर चीन ने इस संघर्ष को अपने हथियारों और तकनीकों के परीक्षण के लिए उपयोग किया। चीन ने अपने एचक्यू-9 एयर-डिफेंस सिस्टम और कुछ मिसाइल तकनीकों की प्रभावशीलता को रियल टाइम वातावरण में मापने की कोशिश की। ऐसा भारत पहले ही कह चुका है।
एक सच्चाई यह भी है कि चीन ने भारत निर्मित या भारत द्वारा खरीदे गए हथियारों, विशेषकर राफेल और एस-400 की क्षमता को लेकर दुष्प्रचार फैलाने की भी कोशिश की। जैसा, अमेरिकी रिपोर्ट कह रही है।
ऑपरेशन सिंदूर और चीन की रणनीति
स्पष्ट है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन की रणनीति केवल सैन्य परीक्षण भर नहीं थी। उसका उद्देश्य वैश्विक हथियार बाजार में अपने जे-35 जैसे लड़ाकू जहाजों और मिसाइल प्रणालियों को युद्ध सिद्ध दिखाकर उनकी बिक्री बढ़ाना भी था। पाकिस्तान उसके लिए एक परीक्षण प्रयोगशाला और क्षेत्रीय मोहरा, दोनों है। यही वह बिंदु है, जो अमेरिकी रिपोर्ट को संदिग्ध बनाता है।
रिपोर्ट में चीन का उल्लेख है, लेकिन जिस प्रकार चीन-पक्षीय नैरेटिव को स्थान दिया गया है, उससे यह आशंका बलवती होती है कि रिपोर्ट का हिस्सा राजनीतिक प्रभाव, लॉबी और रणनीतिक दबावों से निर्मित हुआ होगा, न कि ठोस तथ्यों पर आधारित है।
किसी भी देश के लिए बाहरी दुष्प्रचार उतना खतरनाक नहीं होता, जितना तब जब उसकी आंतरिक राजनीति उसे अनजाने में वैधता देने लगती है। यही स्थिति भारत में देखने को मिली। विडंबना यह है कि अमेरिकी रिपोर्ट के आते ही भारत के भीतर एक वर्ग, विशेषकर विपक्ष, ने इसे तुरंत राजनीतिक आक्रमण के हथियार के रूप में उठा लिया, बिना इस तथ्य को परखे कि यह रिपोर्ट विवादास्पद, प्रमाण हीन और भू-राजनीतिक दबावों से प्रभावित हो सकती है।
वैसे तो लोकतंत्र में सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना विपक्ष का अधिकार है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील विषयों पर अप्रमाणित विदेशी रिपोर्टों पर विश्वास जताना, विशेषकर तब जब वे शत्रु देशों के दुष्प्रचार से प्रेरित हो सकती हों, अत्यंत जोखिमपूर्ण है। इससे न केवल जनता का आंतरिक विश्वास टूटता है, बल्कि भारत विरोधी नैरेटिव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनचाहा बल मिलता है।
राष्ट्र की सुरक्षा नींव का निर्माण सेना, संस्थाओं और रणनीतिक स्वायत्तता से होता है, न कि विदेशी थिंक-टैंकों की रिपोर्टों से। किसी भी दल के लिए यह समझना आवश्यक है कि सरकार हो या विपक्ष, देश की संप्रभुता सर्वोपरि है।
भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को इस समय दो मोर्चों पर बराबर मजबूती से खड़ा होना है। पहला, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने तथ्य, साक्ष्य और विश्लेषण को स्पष्ट, सुसंगत और दृढ़ता से रखना और दूसरा, घरेलू राजनीति में राष्ट्रीय सुरक्षा को राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से ऊपर रखना। अमेरिकी रिपोर्ट का कूटनीतिक स्तर पर स्पष्ट खंडन आवश्यक है और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत की सैन्य कार्रवाई और उसके परिणामों से जुड़े तथ्यों के सटीक दस्तावेज अंतरराष्ट्रीय संस्थानों तक पहुंचें।
साथ ही, भारत अपने राष्ट्रीय सुरक्षा संचार तंत्र को और सक्षम बनाए। आज दुष्प्रचार केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक रिपोर्टों, थिंक-टैंकों और रणनीतिक मंचों के माध्यम से भी फैल रहा है। भारत को अपने संस्थागत तंत्र जैसे रॉ, डीआईए, एनटीआरओ, विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना होगा, ताकि देश विरोधी नैरेटिव को तुरंत चुनौती दी जा सके।
यह मामला केवल एक विदेशी रिपोर्ट का नहीं है। यह इस व्यापक चुनौती का प्रतीक है कि आज का भू-राजनीतिक माहौल कितना जटिल हो चुका है। दुष्प्रचार अब परंपरागत युद्ध जितना ही प्रभावशाली हथियार बन गया है। चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वी इसे भली-भांति समझते हैं। भारत को भी इसे समान गंभीरता के साथ समझना होगा।
राष्ट्र की सुरक्षा केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि सूचना-युद्ध में भी सुरक्षित रखनी होती है। इसके लिए सरकार, विपक्ष, मीडिया और रणनीतिक समुदाय सभी की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण है। आज भारत को एक ही दिशा में एकजुट रहने की आवश्यकता है कि सैन्य सफलता को तथ्य निर्धारित करेंगे, राजनीति नहीं। राष्ट्रीय सुरक्षा का अंतिम निर्णय विदेशी रिपोर्टें नहीं, बल्कि भारतीय संप्रभु संस्थाएं करेंगी।
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