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घास के मैदान में कुछ क्षण
सार
वहीं कुछ पत्थरों पर कहीं धूप में अपना शरीर सेंकती कुछ एक बभनी (स्किंक) दिखाई पड़ जाती है। पत्थरों पर एकाद स्नेक आईड लैसेरटा (एक प्रकार की छिपकली) भी आराम कर रही होती है।
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घास के मैदान में कुछ क्षण
- फोटो : हर्षदा कुलकर्णी
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विस्तार
दूर तक फैली हुई सुनहरी चमकती घास में कही एक हलचल सी नजर आती है। घास जैसे फीके पीले रंग का एक बद्धहस्त मैंनटीस(Praying Mantis) धीरे धीरे आगे बढ़ रहा होता है। उसका रंगरूप घास से इतना मिलजुला होता है कि लगता है मानो घास का एक तिनका बस हवा से इधर उधर झूल रहा है।
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थोड़ी दूर से एक भारतीय बुश लार्क (Plocealauda erythroptera) की मधुर सीटिया वातावरण गुंजायमान कर रही होती है। मेरे शहर अहिल्यानगर(अहमदनगर) के पास का एक घास का मैदान अब नींद से जागृत हो रहा होता है। कही कही उगी हुई झाड़ियां, झुरमुट और छोटे कांटेदार पेड़ पौधे दूर तक बिछी घास की रेखा को बीच में काटते हुए से दिखाई देते है।
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छांवदार पेड़ यहां न के बराबर होते है पर जमीन से सटी कंटीली झाड़ियों में कही सफेद तितर (ग्रे फ्रैंकोलिन) के समूह खाना ढूंढ रहे होते है। उनकी कतीतर–कतीतर की आवाज से ही सिर्फ उनका पता लग पाता है।
कही पास में ही पत्थर लौवा के जोड़े या कभी बटन बटेर के समूह भी बीज और कीट का भोजन कर रहे होते है।
वहीं कुछ पत्थरों पर कहीं धूप में अपना शरीर सेंकती कुछ एक बभनी (स्किंक) दिखाई पड़ जाती है। पत्थरों पर एकाद स्नेक आईड लैसेरटा (एक प्रकार की छिपकली) भी आराम कर रही होती है।
घास के मैदान का नाट्य
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यह गर्मी का मौसम है। धूप तेज हो रही होती है। इस तपती धूप में इस मैदान के छोटे से हिस्से में एक नाट्य की शुरुआत होती है।
पीली घास के छोटे पात, छोटे कंटीले पौधे और बीच में पड़े हुए बड़े छोटे पत्थर यह सब इस नाट्य के मंच के रूप में काम आते है। इस नाट्य के मुख्य पात्र होते हैं घास के मैदानों में रहने वाले छोटे छोटे लिजार्ड या छिपकलियां।
जिन्हें फैन थ्रोटेड लिजार्ड कहा जाता है। यह एगामिड छिपकलियों (सीटाना और सरडा वंश) की एक प्रजाति है। इनके गले पर पंखाकर ढीली त्वचा होती है जिसे ड्यूलैप कहते है। जिससे उन्हें पंखाकार गले वाली छिपकली यह नाम मिला है।
गर्मी का मौसम और अप्रैल से जून के महीने इनके मिलन का समय होता है। घास सूख रही होती है। और उसके बचे खुचे टुकड़े, छोटी टहनियां, छोटे बड़े पत्थर, कंटीले पौधे और उनकी डालें इस तरह की जो भी चीजें जो जमीन से ऊपर हो उस पर यह लिजार्ड चढ़ के बैठते है।
उनकी नजर होती है थोड़ी दूर बैठी मादाओं पर और फिर नर शुरू करते है मादा को रिझाने वाला प्रदर्शन। ये नर अपनी पीछे वाली दो टांगों पर खड़े हो जाते है और बड़ी तेजी से अपने गले का पंख बार बार फुलाते है। गर्दन को झटके देते है। एक बार नहीं बल्कि कई बार। इनके पंखे पर होते है तीन रंग आसमानी नीला, उसके बस नीचे काला और पेट के पास नारंगी।
ऐसे रंगों से सजा इनका गला मैदान के सूखे, फीके रंगों के आगे उभर कर आता है। इस तरह से प्रदर्शन चलता जाता है। कभी कभी एक नर दूसरे के इलाके में घुस आता है। फिर दोनों नर अपनी अपनी गले के पंखे फुलाकर उन्हें झटके देकर अपनी कला का प्रदर्शन करते है।
पर कभी कभी इससे बात नहीं बनती और दोनों लड़ाई पर उतर आते है। एक दूसरे को काटते धकेलते हुए आखिर एक नर की विजय हो जाती है। और विजयी नर का प्रदर्शन जारी रहता है जबतक कि मादा उसकी तरफ आकर्षित न हो जाए।
इसी समय इन रंगबिरंगे लिजार्ड के पास में ही कुछ पत्थरों और टहनियां पे इनकी और एक प्रजाति के नर भी अपना प्रदर्शन कर रहे होते है। यह भी फैन थ्रोटेड लिजार्ड या स्पाइनी हेडेड फैन थ्रोटेड लिजार्ड कहलाते है। पर इनके गले के पंखे पर बीचोबीच बस एक नीले रंग की धारी होती है। बाकी का पूरा पंखा बस सफेद होता है। ये भी अपने पंखे को फूला कर और फैला के प्रदर्शन करते रहते है।
कही दूर कुछ चिंकारा घास में दौड़ लगाते दिख जाते है। तो कही काले हिरनो का झुंड आराम कर रहा होता है।
उनके ऊपर आसमान में बोनेली के गरुड़ उड़ते हुए अपने इलाके के चक्कर लगा रहे होते है।
और वहीं कही चरवाहे अपनी गायों और बकरियों को लेकर बैठे हुए होते है।
बहुत से लोग जब एक ग्रासलैंड या घास के मैदान को देखते है तब सोचते है कि यह तो एक बंजर, घासफूस का मैदान ही तो है। पर वे ये नहीं जानते कि ये घास फूस कई सारे जीवों का घर है। इनका सहारा है।
कीड़े-मकोड़ों से ले कर सियार, लोमड़ी यहा तक की कम होते जा रहे भेड़ियों का भी यह अधिवास है। घास के मैदान वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर उसे मिट्टी में संग्रहित कर कार्बन पृथक्करण (carbon sequestration) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
ग्रासलैंड दूर से बंजर या फिर अचल, गतिहीन दिखाई देता है। पर कुछ पल इस घास के मैदान में अगर बिताए तो पता चले कि यह रंगबिरंगा और गतिविधियों से भरा बहुत से जीवों का आश्रय स्थान है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।