बिहार परिणाम और मंथन का दौर: विपक्ष को आत्ममंथन और सुधार की जरूरत
Bihar Election 2025 Result: बिहार चुनाव ने साबित किया कि जनता काम को वोट देती है। नीतीश सरकार की नीतियां, विपक्ष की कमजोरियां और EVM विवाद पूरा राजनीतिक विश्लेषण पढ़ें।
विस्तार
Bihar Election 2025 Result: चुनावी राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात हैं, लेकिन लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण है,जनता की समझ और उसका विवेक। बिहार के हालिया चुनाव परिणाम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जनता काम को महत्व देती है, बदलाव को पहचानती है और कमजोर या भावनात्मक तर्कों से आसानी से प्रभावित नहीं होती। चुनाव समाप्त होते ही अचानक वोट चोरी या गड़बड़ी जैसे आरोप लगाना न केवल असंगत है, बल्कि जनता की बुद्धिमत्ता पर प्रश्नचिह्न लगाने जैसा भी है। बिहार की जनता समझती है कि चुनाव आयोग ने वर्षों में मतदान व्यवस्था को कितना पारदर्शी और मजबूत बनाया है।
ईवीएम विवाद नहीं आया काम
विपक्ष लंबे समय से EVM पर सवाल उठाता रहा है, लेकिन यही मशीन दिल्ली और बंगाल में भाजपा की हार का कारण बनी। हाल के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा बहुमत से नीचे रही, तब मशीन पर प्रश्न नहीं उठाए गए। अब जब बिहार में भाजपा और उसके सहयोगियों को जीत मिली, तो विपक्ष का “वोट चोरी” कहना उसकी विश्वसनीयता को और कमजोर करता है। बिना ईमानदार आत्ममंथन के विपक्ष अपनी भूमिका प्रभावी रूप से निभा ही नहीं सकता।
नीतीश के डेवलपमेंट माॅडल का दिखा कमाल
नीतीश कुमार की सरकार ने अपने कार्यकाल में विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की नियुक्ति, BPSC के माध्यम से पारदर्शी लोकसेवक भर्ती, प्राथमिक शिक्षकों की बहाली, सड़क-बिजली जैसी अधोसंरचना का विस्तार, चिकित्सा सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण, महिला सुरक्षा में सुधार, तथा सामाजिक-सांस्कृतिक उन्नयन जैसे अनेक ठोस कार्य किए हैं। इन नीतिगत सुधारों ने बिहार की दिशा बदली है, और इस बंपर जनादेश ने उस विकास मॉडल पर जनता की मुहर लगाई है। यह परिणाम महागठबंधन की रणनीतिक कमजोरियों का संकेत भी है।
महिला मतदाताओं की भूमिका
महिला मतदाताओं की निर्णायक उपस्थिति ने भी इस चुनाव में बड़ा असर डाला। उनकी सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका से जुड़े कार्यक्रमों ने नीतीश कुमार को अतिरिक्त समर्थन प्रदान किया। इसके साथ ही केंद्र–राज्य समन्वय ने योजनाओं के क्रियान्वयन की गति को बढ़ाया, जिससे जनता को त्वरित लाभ मिला।
इसके विपरीत, विपक्ष अपने लिए सकारात्मक राजनीति की ज़मीन तैयार नहीं कर पाया। न नेतृत्व में स्पष्टता दिखी, न मुद्दों में स्थिरता। चुनावों के दौरान धार्मिक मुद्दों से अवसरवादी लगाव और अन्य समयों में उन्हें कमजोर करने की प्रवृत्ति को जनता भली-भाँति समझ चुकी है। आज सोशल मीडिया के दौर में मतदाता हर बयान और विरोधाभास को तुरंत पहचान लेता है। मर्यादित और सुसंगत भाषा का अभाव तथा बिना प्रमाण वाले आरोप विपक्ष के लिए आत्मघाती साबित हुए हैं।
सरकार के काम और योजनाओं पर वोट
देश के अन्य राज्यों में भी जनता वही प्रश्न पूछती है, कौन ज़मीन पर काम कर रहा है? जहाँ भाजपा की सरकारें हैं, वहाँ बुनियादी ढांचे, सामाजिक योजनाओं और प्रशासनिक सक्रियता में निरंतरता दिखाई देती है। इसी सक्रियता के कारण दिल्ली में छठ पूजा का प्रभावी आयोजन, सार्वजनिक सुविधाओं का विस्तार और त्वरित राहत कार्य संभव हुए। जनता हर जगह तुलना करती है और समझती है कि कहाँ विकास है और कहाँ केवल बयानबाज़ी।
भाजपा की संगठनात्मक मजबूती और सतत चुनावी तैयारी भी उसकी जीत का बड़ा कारण है। बिहार के परिणाम आते ही पार्टी नेतृत्व अगले उपचुनावों की रणनीति में जुट गया। महागठबंधन के लिए यह हार वास्तव में बड़ी है और इससे सीख लेना ही आगे बढ़ने का एकमात्र मार्ग है। बेबुनियाद आरोपों को छोड़कर यदि विपक्ष धरातल पर काम करे, स्पष्ट नेतृत्व दे, मर्यादित भाषा अपनाए और जनसरोकारों से जुड़ने का प्रयास करे, तभी वह लोकतांत्रिक राजनीति में प्रभावी चुनौती के रूप में उभर सकेगा।
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