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धर्मेंद्र प्रधान: बिहार में पर्दे के पीछे भाजपा की चुनाव प्रबंधन कला के कुशल शिल्पी
सार
इस नई पीढ़ी में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का नाम सबसे प्रमुख है। प्रधान ने भाजपा को कई कठिन और जटिल राज्यों में विजय दिलाने के साथ-साथ एक ऐसी चुनावी प्रणाली गढ़ी, जिसमें विचार, प्रबंधन और जनसंपर्क का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है।
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धर्मेंद्र प्रधान
- फोटो : PTI
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विस्तार
भाजपा का चुनावी प्रबंधन अब एक अध्ययन का विषय बन चुका है। पिछले एक दशक में जिस अनुशासन, संगठन और रणनीतिक सूझबूझ के साथ भाजपा ने देश के अधिकांश राज्यों में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ किया है, उसका श्रेय केवल नेतृत्व के करिश्मे या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को नहीं दिया जा सकता।
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इन जीतों के पीछे पार्टी की गहरी संगठनात्मक जड़ें और उन शिल्पियों का योगदान है, जो मंच पर नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे काम करते हैं।
इस नई पीढ़ी में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का नाम सबसे प्रमुख है। प्रधान ने भाजपा को कई कठिन और जटिल राज्यों में विजय दिलाने के साथ-साथ एक ऐसी चुनावी प्रणाली गढ़ी, जिसमें विचार, प्रबंधन और जनसंपर्क का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है।
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उनकी पहचान अब केवल एक केंद्रीय मंत्री की नहीं, बल्कि भाजपा के ‘रणनीति वास्तुकार’ की है, जो संगठन की नब्ज़ भी पहचानता है और मतदाता के मन को भी पढ़ लेता है।
दरअसल, भाजपा का चुनावी ढांचा तीन प्रमुख स्तंभों पर खड़ा है, पहला शीर्ष नेतृत्व का करिश्मा, दूसरा सरकारी योजनाओं की डिलीवरी और तीसरा बूथ स्तर पर सूक्ष्म प्रबंधन। प्रधान ने इन तीनों को एक संगठित ढांचे में पिरोया है।
वे इस बात पर विश्वास करते हैं कि चुनाव केवल नारे या जनसभाओं से नहीं, बल्कि उस तंत्र से जीते जाते ,हैं जो हर मतदाता तक संवाद स्थापित करे। उनके लिए राजनीति नीतियों का नहीं, बल्कि निष्पादन का विज्ञान है, जहां हर योजना का लाभ राजनीतिक परिणाम में परिवर्तित होना चाहिए।
प्रधान की कार्यशैली का सबसे विशिष्ट तत्व उनका फीडबैक सिस्टम है। वे बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क बनाए रखते हैं और किसी भी रणनीति को अंतिम रूप देने से पहले जमीनी फीडबैक को अनिवार्य मानते हैं।
उनके निर्देशन में बनी टीम हर जिले और हर मंडल से विस्तृत रिपोर्ट तैयार करती है। यही कारण है कि किसी भी राज्य में उनकी उपस्थिति को स्थानीय कार्यकर्ता केंद्रीय प्रभारी की नहीं, बल्कि अपने नेता की तरह महसूस करते हैं।
प्रधान की दूसरी बड़ी विशेषता सरकारी योजनाओं को राजनीतिक पूंजी में बदलने की क्षमता है। उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय निर्माण, किसान सम्मान निधि और जल जीवन मिशन, ये केवल विकास योजनाएं नहीं रही हैं, बल्कि भाजपा के लिए ये स्थायी सामाजिक जुड़ाव के माध्यम बन गई हैं। प्रधान इस प्रक्रिया को वोट ट्रांसलेशन मॉडल कहते हैं।
इस मॉडल में लाभार्थियों के सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक प्रोफ़ाइल का गहन अध्ययन कर बूथ स्तर पर रणनीति तैयार की जाती है। परिणाम यह कि लाभार्थी केवल मतदाता नहीं रहते, बल्कि पार्टी के प्रचारक बन जाते हैं।
बिहार में धर्मेंद्र प्रधान की रणनीतिक दक्षता का सर्वाधिक प्रभाव दिखाई दिया। वर्ष 2020 का विधानसभा चुनाव इसका सशक्त उदाहरण है। लगभग सभी एक्जिट पोल उस समय महागठबंधन की स्पष्ट बढ़त दिखा रहे थे, लेकिन प्रधान के नेतृत्व में भाजपा ने मैदान पलट दिया।
मतदान के दिन तक उन्होंने कार्यकर्ताओं में उत्साह बनाए रखा। उनकी सूक्ष्म बूथ प्रबंधन नीति और महिला मतदाताओं पर केंद्रित रणनीति ने वह किया, जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी।
भाजपा ने 74 सीटें जीतकर अपने सहयोगी जनता दल (यू) से अधिक प्रदर्शन किया। यह परिणाम बिहार की राजनीति में भाजपा के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जब वह जूनियर पार्टनर से लीड पार्टनर बनकर उभरी।
प्रधान खुद ओबीसी समुदाय से आते हैं, इस कारण वे बिहार की सामाजिक संरचना को भीतर से समझते हैं। उन्होंने अति-पिछड़ा वर्ग, महादलित और महिला मतदाताओं को भाजपा से जोड़ने पर विशेष बल दिया। यह वही वर्ग था, जो पारंपरिक रूप से नीतीश कुमार की सामाजिक आधारशिला रहा है।
प्रधान की रणनीति ने यह दिखाया कि भाजपा सामाजिक न्याय और विकास, दोनों को साथ लेकर चल सकती है। इस दृष्टि से वे भाजपा के लिए केवल एक चुनाव प्रबंधक नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद के सेतु बन गए।
अपनी मातृभूमि ओडिशा में भी धर्मेंद्र प्रधान ने भाजपा को एक नई पहचान दिलाई। वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजू जनता दल के 24 वर्षीय शासन को समाप्त कर भाजपा की सरकार बनवाई। यह विजय किसी क्षणिक लहर का परिणाम नहीं थी, बल्कि वर्षों की सुनियोजित संगठनात्मक तैयारी और जनसंपर्क का नतीजा थी।
उन्होंने ओडिशा की अस्मिता और विकास को जोड़ते हुए भाजपा के लिए एक नया राजनीतिक विमर्श तैयार किया। उन्होंने समझा कि ओडिशा की राजनीति केवल आर्थिक योजनाओं पर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जुड़ाव पर भी टिकी है। जगन्नाथ संस्कृति और ओडिया पहचान को भाजपा की विचारधारा से जोड़ने का उनका प्रयास यही दिखाता है कि वे भावनाओं और गणित दोनों के रणनीतिकार हैं।
प्रधान ने ही ओडिशा में भाजपा के बाहरी दल के टैग को खत्म किया। उन्होंने संगठन को स्थानीय चेहरों पर केंद्रित किया और बीजू जनता दल से उत्पन्न असंतोष को भाजपा के पक्ष में समेटा। ओडिशा में भाजपा की यह जीत केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि संगठनात्मक परिपक्वता की पहचान थी।
धर्मेंद्र प्रधान का चुनावी कौशल केवल पूर्वी भारत तक सीमित नहीं रहा। उत्तर भारत के दो प्रमुख राज्यों हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी उनकी भूमिका निर्णायक रही। हरियाणा में वर्ष 2024 के चुनावों के समय किसान आंदोलन और जातीय असंतोष का माहौल भाजपा के लिए चुनौती था। प्रधान ने वहां स्थानीय असंतोष का स्थानीय समाधान नीति अपनाई।
उन्होंने जाट और गैर-जाट समुदायों के बीच संवाद का पुल बनाया, स्थानीय नेतृत्व में संतुलन कायम किया और आंतरिक मतभेदों को समय रहते सुलझा लिया। परिणाम यह हुआ कि भाजपा सीमित बहुमत के बावजूद पुनः सत्ता में लौटी।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 के चुनाव में धर्मेंद्र प्रधान ने सत्ता विरोधी रुझान को अवसर में बदला। उन्होंने लाभार्थी वर्ग को भाजपा का स्थायी समर्थक बनाया। उनकी टीम ने गांव-गांव जाकर लाभार्थियों से संवाद किया और सुनिश्चित किया कि केंद्र की योजनाओं का राजनीतिक लाभ भी केंद्र तक पहुंचे। यह रणनीति उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत की रीढ़ बनी।
प्रधान की विशेषता यह है कि वे संगठन और सरकार, दोनों के बीच एक संतुलित सेतु की भूमिका निभाते हैं। जब भी दोनों के बीच संवादहीनता या मतभेद की स्थिति बनती है, प्रधान उसे समन्वय के माध्यम से दूर करते हैं। उनकी छवि एक कठोर प्रशासक की नहीं, बल्कि संवेदनशील रणनीतिकार की है, जो सुनता भी है और जोड़ता भी है।
प्रधान की राजनीतिक सोच का सार यह है कि चुनाव केवल अंकगणित का नहीं, भावनाओं का भी खेल है। हर राज्य की अपनी सांस्कृतिक आत्मा होती है, जिसे समझे बिना राजनीतिक सफलता संभव नहीं है।
ओडिशा में उन्होंने ‘अस्मिता’, बिहार में ‘समावेशन’, हरियाणा में ‘संतुलन’ और उत्तर प्रदेश में ‘विश्वास’ को आधार बनाया। यही चार सूत्र उनके राजनीतिक दर्शन को परिभाषित करते हैं।
प्रधान की सफलता भाजपा की उस प्रणाली का प्रमाण है, जिसमें व्यक्ति से अधिक संरचना को महत्व दिया जाता है। वे उस पीढ़ी के नेता हैं, जिन्होंने सत्ता की नहीं, संगठन की भाषा में राजनीति सीखी है।
उनके लिए चुनाव प्रतिस्पर्धा नहीं, संगठन की परीक्षा हैं। उन्होंने भाजपा में यह परंपरा स्थापित की है कि केंद्रीय रणनीति तभी सफल होती है, जब वह स्थानीय कार्यकर्ता से जुड़ी हो।
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