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जिजीविषा: मानसिक द्रव्य है विचारों की ऊर्जा और उसका आध्यात्मिक प्रभाव

Ananya Mishra अनन्या मिश्रा
Updated Sat, 22 Nov 2025 01:41 PM IST
सार

मानव मन में रोजाना लगभग 60,000 विचार उत्पन्न होते हैं, जिनमें अधिकतर अवचेतन और दोहराए जाने वाले होते हैं, जो हमारी नियति को नियंत्रित करते हैं। सकारात्मक विचार मन को हल्का, शांत और रचनात्मक बनाते हैं, जबकि नकारात्मक विचार तनाव, भ्रम और अस्थिरता पैदा करते हैं।

 

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power of mental substance and thought energy transformation
विचार ही जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं - फोटो : freepik
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विस्तार
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क्या आपने कभी देखा है कि एक साधारण गिलास पानी में थोड़ा सा नमक डालने मात्र से उसका स्वरूप, हलचल और ऊर्जा कैसे बदल जाती है? या फिर सुबह की हल्की धूप में बैठे अपने विचारों को महसूस किया है: कैसे कुछ क्षणों में मन हल्का हो जाता है, या कभी कुछ ही मिनटों में भारीपन छा जाता है? इसी तरह हमारे विचार भी हमारे भीतर के द्रव्य की तरह काम करते हैं: ये सूक्ष्म हैं, लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली। क्या आपने कभी सोचा है कि यही मानसिक द्रव्य हमारी चेतना, हमारे अनुभव और हमारे जीवन की दिशा को प्रभावित करता है?
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जब हम अपने जीवन की सबसे सूक्ष्म और सबसे शक्तिशाली शक्ति के बारे में सोचते हैं, तो अक्सर ध्यान केवल बाहरी घटनाओं, परिस्थितियों या लोगों पर केंद्रित हो जाता है। परन्तु वास्तविक शक्ति कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अपने भीतर विद्यमान है। वह शक्ति है विचार। विचार, जो अदृश्य होते हैं, जिन्हें हम छू नहीं सकते, न देख सकते हैं, फिर भी वे हमारे जीवन के अनुभव, हमारी भावनाएँ, हमारे निर्णय और हमारी नियति की दिशा निर्धारित करते हैं। वैदिक दृष्टि में इन्हें केवल मानसिक गतिविधि नहीं माना गया, बल्कि इन्हें ‘मनसो द्रव्यम्’ कहा गया है, अर्थात विचार एक द्रव्य के समान हैं, जो संचयित होते हैं, प्रभाव डालते हैं और रूपांतरित होते हैं।
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विचारों की शक्ति का अनुभव हम प्रत्येक दिन करते हैं, परन्तु उसे समझने में असमर्थ रहते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इसे प्रमाणित करता है। न्यूरोसाइंस बताता है कि मस्तिष्क में उत्पन्न विचार विद्युत-चुंबकीय तरंगों के रूप में फैलते हैं और हमारे आसपास की ऊर्जा को प्रभावित करते हैं। प्रतिदिन औसत मानव मन में लगभग 60,000 विचार उत्पन्न होते हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत अवचेतन स्तर पर होते हैं और 95 प्रतिशत विचार पुनरावृत्ति वाले होते हैं। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि हम अधिकांश समय पुराने विचारों की शक्ति से संचालित होते हैं, न कि स्वयं की सृजनात्मक चेतना से। यही मानसिक द्रव्य है, जो हमारी सफलता, हमारी असफलता, हमारी शांति और हमारी अशांति का मूल कारण बनता है।

आधुनिक मनोविज्ञान इस विचार को स्वीकार करता है कि विचार केवल मानसिक गतिविधि नहीं, बल्कि हमारी जीवन-ऊर्जा का स्रोत हैं। सकारात्मक विचार हमारे मन को हल्का, स्पष्ट और सक्रिय बनाते हैं, जबकि नकारात्मक विचार उसे भारी, भ्रमित और थका हुआ कर देते हैं। उदाहरण के लिए, भय और चिंता के विचार शरीर में एड्रेनालिन और कॉर्टिसोल के स्तर को बढ़ा देते हैं, जिससे बेचैनी, तनाव और मानसिक अस्थिरता उत्पन्न होती है। वहीं करुणा, प्रेम और संतोष से उत्पन्न विचार ऑक्सीटोसिन और सेरोटोनिन का स्तर बढ़ाते हैं, जिससे मन स्थिर, प्रसन्न और संवेदनशील होता है। इसलिए विचार न केवल मानसिक प्रक्रिया हैं, बल्कि वे शरीर, चेतना और आध्यात्मिक स्तर पर ऊर्जा का द्रव्य हैं।

वेदांत में इस सत्य को कई प्रकार से प्रस्तुत किया गया है। मुण्डकोपनिषद में कहा गया है: “यथाकर्म यथाश्रुतं”। अर्थात, जैसा हम सोचते हैं और जैसा हम स्वीकार करते हैं, वैसा ही हम बनते हैं। यही कारण है कि विचारों की दिशा और गुणवत्ता हमारे चरित्र, हमारे निर्णय और हमारे जीवन के मार्ग को तय करती है। यदि विचार अशुद्ध, भ्रमित और निराशापूर्ण हों, तो जीवन में स्थिरता, स्पष्टता और ऊर्जा की कमी महसूस होती है। लेकिन जब विचार शुद्ध, जागरूक और सकारात्मक हों, तो व्यक्ति जीवन में हर क्षेत्र में सामर्थ्य और स्पष्टता अनुभव करता है।

महाभारत का एक प्रसंग इस विषय को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से दर्शाता है। युद्ध से पूर्व अर्जुन के मन में भय, संशय और असमर्थता की लहरें उठ रही थीं। उसका मन भारी था, दृष्टि धुंधली थी, और निर्णय अस्थिर था। उसी समय श्रीकृष्ण ने उसे उपदेश दिया, परन्तु केवल शब्दों से नहीं अपितु उन्होंने अर्जुन के भीतर विचारों को रूपांतरित किया। अर्जुन का वास्तविक परिवर्तन तब प्रारंभ हुआ जब उसने अपने मन की अशांति को स्वीकार किया और अपने भीतर की चेतना को सुनना शुरू किया। इस घटना से स्पष्ट होता है कि विचारों का रूपांतरण ही जीवन में वास्तविक परिवर्तन का मूल आधार है।

आज का समय, 2025, तकनीकी और सामाजिक दबावों का युग है। डिजिटल संसार, लगातार सूचना, तेज़ जीवनशैली और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच व्यक्ति अपने विचारों को नियंत्रित नहीं कर पाता। विचारों का अति-भार मन को अशांत और थका हुआ बना देता है। यही वह कारण है कि मानसिक द्रव्य को समझना, नियंत्रित करना और उसे सकारात्मक दिशा देना आधुनिक जीवन में अत्यंत आवश्यक है। विचारों को सजगता से देखना, उनकी ऊर्जा को समझना और उन्हें नियंत्रित करना न केवल मानसिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि आध्यात्मिक विकास के लिए भी अनिवार्य है।

विचारों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करने के कुछ सरल उपाय हैं। पहला, विचार-संयम: प्रतिदिन कुछ समय निकालकर अपने विचारों का निरीक्षण करना और उन्हें स्पष्ट रूप से पहचानना। दूसरा, मानसिक उपवास: कुछ क्षणों के लिए स्क्रीन, शोर और बाहरी उत्तेजनाओं से दूर रहकर मन को शान्त करना। तीसरा, विचार-संरचना: निर्णय और कर्म से पूर्व विचारों की ऊर्जा का परीक्षण करना कि यह हमें सकारात्मक, रचनात्मक और जीवन-समृद्धि की ओर ले जा रही है या नहीं।

विचार केवल मानसिक प्रक्रियाएं नहीं हैं, वे मानव जीवन की ऊर्जा, शक्ति और आध्यात्मिक साधना का माध्यम हैं। जो व्यक्ति अपने विचारों को समझकर, उन्हें नियंत्रित करके और सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करके जीवन जीता है, वह केवल सफल नहीं होता, बल्कि अपने अस्तित्व की गहनता, शांति और चेतना की उच्चतम स्थिति को अनुभव करता है। विचार हमारे कर्मों की जड़ हैं, और उनके आधार पर ही जीवन की गुणवत्ता और आध्यात्मिक गहराई का निर्धारण होता है।

इसलिए आज से यह निर्णय लें कि प्रत्येक विचार को सजगता, विवेक और जागरूकता के साथ ग्रहण करेंगे। अपने विचारों की ऊर्जा को स्वयं के विकास और आंतरिक शांति के लिए प्रयोग करेंगे। क्योंकि जब विचार नियंत्रित, स्पष्ट और सकारात्मक होंगे, तभी मनुष्य के कर्म, अनुभव और जीवन की दिशा भी प्रकाशमान और स्थिर होगी। यही मानसिक द्रव्य की वास्तविक शक्ति है और यही आध्यात्मिक जीवन का सार।
 

(लेखिका आईआईएम इंदौर में सीनियर मैनेजर, कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एवं मीडिया रिलेशन पर सेवाएं दे रही हैं।)


 
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