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जीवन धारा: रिक्त मन में छिपा है जीवन का सौंदर्य

जे. कृष्णमूर्ति Published by: लव गौर Updated Mon, 08 Dec 2025 07:16 AM IST
सार

मन को क्षण भर विचारों से मुक्त और निर्मल करना आवश्यक है। यह स्वाभाविक रिक्तता मन को बीते कल और आने वाले भविष्य की चिंताओं से स्वतंत्र रखती है, जिससे शांति प्राप्त होती है।

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Jeevan Dhara beauty of life lies in an empty mind
मन को क्षण भर विचारों से मुक्त और निर्मल करना आवश्यक है - फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
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अब वर्षा रुक गई थी, रास्ते स्वच्छ, साफ हो गए थे और वृक्षों से सारी धूल धुल चुकी थी। धरित्री फिर से ताजा हो गई थी और तालाब में मेंढक शोर मचा रहे थे, वे बड़े-बड़े थे और उनके गले खुशी से फूल गए थे। पानी की छोटी-छोटी बूंदों से घास चमक रही थी और घनघोर वर्षा के बाद पृथ्वी पर सर्वत्र शांत वातावरण था। पशु पूरी तरह से भीग गए थे, लेकिन जब वर्षा हो रही थी, तब उन्होंने किसी सूखे स्थान का आश्रय नहीं लिया था, और अब वे संतोषपूर्वक चर रहे थे। रास्ते के किनारे वर्षा के कारण जो छोटा-सा नाला बह रहा था, जिसमें कुछ बालक खेल रहे थे, वे नंगे थे और उनके चमकते शरीर और तेजस्वी आंखें देखकर अच्छा लग रहा था। वे अपने जीवन का खूब आनंद लूट रहे थे।
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कितने खुश थे वे सब! किसी अन्य वस्तु की उनको कोई परवाह नहीं थी, और जब उनसे कुछ कहो, तो वे खुशी से मुस्करा उठते, भले ही एक शब्द भी उनकी समझ में नहीं आ रहा हो। सूर्य निकल रहा था और छायाएं घनी गहरी थीं। मन को क्षण भर गैर-जरूरी विचारों से मुक्त और निर्मल करना आवश्यक है। यह स्वाभाविक रिक्तता मन को बीते कल और आने वाले भविष्य की चिंताओं से स्वतंत्र रखती है, जिससे शांति प्राप्त होती है। मृत्यु को स्वीकार करना तो सरल है, पर इस निरंतर रिक्तता में बने रहना कठिन है, क्योंकि निरंतरता का अर्थ है, किसी न किसी रूप में ‘बने रहने’ का प्रयास। और जहां प्रयास है, वहां इच्छा है। इच्छा तभी समाप्त होती है, जब मन ‘पाना’ छोड़ देता है।
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जीवन को केवल जीना कितना सरल है! इस सरलता में कोई जड़ता नहीं है। कुछ पाने की चाह न हो, कुछ बनने की लालसा न हो, कहीं पहुंचने का आग्रह न हो, यही अवस्था मन को अतीव आनंद देती है। जब मन विचारों से मुक्त और निर्मल हो जाता है, तभी सृजन के मौन का उदय होता है। जब मन किसी लक्ष्य की ओर दौड़ता है, सफलता की चाह में उलझा रहता है, तब उसकी नीरवता संभव नहीं। मन के लिए कहीं पहुंच जाना ही सफलता है, चाहे आरंभ में मिले या अंत में। जब तक मन स्वयं के बनने-बनाने के जाल को बुनता रहेगा, वह निर्मल नहीं हो सकता। उसकी सबसे बड़ी कठिनाई है, स्थिर होना। मन लगातार चिंतित रहता है, किसी न किसी चीज के पीछे भागता है, कुछ पकड़ने या छोड़ने में व्यस्त रहता है।

विचारों की इस निरंतर दौड़ में, एक विचार दूसरे का बिना रुके पीछा करता रहता है। जैसे किसी पेंसिल को बार-बार छीलने पर वह जल्दी समाप्त हो जाती है, वैसे ही मन भी अपने लगातार उपयोग से थक जाता है। उसे अपनी समाप्ति का भय सताता है। पर वास्तव में जीना है, प्रतिदिन समाप्त होना, यानी उपलब्धियों, स्मृतियों और अनुभवों से मुक्त रहना। अनुभव हमेशा अतीत का होता है, जबकि अनुभूति वर्तमान की जीवंतता है, जिसमें अनुभवकर्ता के रूप में स्मृति उपस्थित नहीं रहती। मन की रिक्तता, यही हृदय की सबसे सच्ची शांति है। वास्तव में सौंदर्य अनुभव में नहीं, बल्कि अनुभूति में है; सृजन इसी मौन में जन्म लेता है।

शांत मन से काम करें
जीवन की भागमभाग में हमारा मन अक्सर बेचैन रहता है, वह कभी स्थिर नहीं हो पाता। अंत में, जब सबकुछ हमसे दूर होने लगता है, तब एहसास होता है कि काश हमने शांत मन से बस एक बार जी लिया होता। सबकुछ हमारे ही हाथों में है, हम अपने विचारों से स्वयं को या तो दुखी कर सकते हैं या उन्हीं से ऊर्जावान बना सकते हैं।
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