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दूसरा पहलू: जेन जी और डांसिंग प्लेग की याद
सार
अरब स्प्रिंग से लेकर बांग्लादेश और नेपाल तक जेन जी के आंदोलन 1518 में फ्रांस में हुए सामूहिक उन्माद की याद दिलाते हैं।
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‘डांसिंग प्लेग’ की सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
सोशल मीडिया सामूहिक उन्माद को भी जन्म दे सकती है। अरब स्प्रिंग से लेकर बांग्लादेश और नेपाल तक जेन जी के आंदोलनों में जो दृश्य दिखे, उनमें सामाजिक परिवर्तन की कोई योजना नहीं थी, बल्कि इनके पीछे कुछ खास हित समूहों का ही हाथ था। ये 1518 में फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में हुई एक सनसनीखेज घटना की याद दिलाते हैं। उस वक्त, एक महिला सड़क पर अचानक नाचने लगी। यह नृत्य इतिहास की उन सबसे भयावह घटनाओं में से एक था, जिसमें नाचते-नाचते हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए। फ्रांस के अलग-अलग हिस्सों में नाचते-नाचते मरने वालों की संख्या लगभग 10,000 तक पहुंच गई। वैज्ञानिकों की राय आज भी इस पर बंटी हुई है।
ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि फ्रांस में लगातार नाचने वालों में कई लोग हृदयाघात, डिहाइड्रेशन और स्ट्रोक का शिकार हुए। जब सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, तो वहां मौजूद लोगों ने मजबूत घेरा बनाकर सुरक्षाकर्मियों दखल देने से मना कर दिया। सुरक्षाकर्मियों के साथ स्थानीय लोगों के संघर्ष में सैकड़ों लोग मारे भी गए।
स्थानीय प्रशासकों को लगा कि यह कोई अभिशाप है। यह ‘डांसिंग प्लेग’ कैसे और क्यों हुआ, इस पर आज भी मतैक्य नहीं है। कई बार व्यापक भय और निराशा सामूहिक उन्माद के रूप में सामने आते हैं। इनमें कोई योजना नहीं होती। वैश्विक जेन जी आंदोलनों के पीछे भी यही मनोविज्ञान काम कर रहा हो, तो हैरत नहीं।
वर्ष 1518 के दौरान फ्रांस में फ्रांसिस प्रथम का शासन था। उनके शासन में कला, विज्ञान और स्थापत्य का उत्कर्ष तो हुआ, पर सुरक्षा व्यवस्था सीमित थी। कई क्षेत्रों में धार्मिक तनाव, अकाल और महामारी के कारण सामाजिक अस्थिरता और मनोवैज्ञानिक भय भी बढ़ा हुआ था, इसलिए भीड़ नियंत्रण और नागरिक सुरक्षा वास्तव में कमजोर थी। इसी वजह से नाचते लोगों को मरने से सुरक्षाकर्मी रोक नहीं पाए। स्थानीय प्रशासकों और चर्च को लगा कि यह कोई अभिशाप, पाप या दैवी प्रकोप है। यह ‘डांसिंग प्लेग’ कैसे और क्यों हुआ, इस पर आज भी मतैक्य नहीं है। इसके लिए सामूहिक उन्माद, राई की फसलों में उगे फफूंद की विषाक्तता, धार्मिक भय और सामाजिक अवसाद और निराशा जैसे तर्क दिए जाते हैं।
इतिहासकार माइकल वुड, जॉन वॉलर और अन्य विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह घटना किसी एक कारण से नहीं, बल्कि कई कारकों के मिश्रण से उत्पन्न हो सकती है, जिसमें सामाजिक संकट, मानसिक आघात और अत्यधिक दैवी भय का संगठित प्रभाव एकसाथ सक्रिय हुआ और उसने इस अजीब और घातक नृत्य त्रासदी को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सामूहिक तनाव या भय चरम पर पहुंचने पर मानव मस्तिष्क ऐसी प्रतिक्रिया आज भी दे सकता है। स्ट्रासबर्ग से शुरू हुई घटना और आधुनिक उन्मादी भीड़ हिंसा मूल रूप से सामूहिक मानसिक संकट के अलग-अलग रूप हैं। स्वरूप बदल गया है, लेकिन उसकी जड़ें-असुरक्षा, आर्थिक तनाव, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक निराशा आज भी वही हैं।
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ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि फ्रांस में लगातार नाचने वालों में कई लोग हृदयाघात, डिहाइड्रेशन और स्ट्रोक का शिकार हुए। जब सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, तो वहां मौजूद लोगों ने मजबूत घेरा बनाकर सुरक्षाकर्मियों दखल देने से मना कर दिया। सुरक्षाकर्मियों के साथ स्थानीय लोगों के संघर्ष में सैकड़ों लोग मारे भी गए।
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स्थानीय प्रशासकों को लगा कि यह कोई अभिशाप है। यह ‘डांसिंग प्लेग’ कैसे और क्यों हुआ, इस पर आज भी मतैक्य नहीं है। कई बार व्यापक भय और निराशा सामूहिक उन्माद के रूप में सामने आते हैं। इनमें कोई योजना नहीं होती। वैश्विक जेन जी आंदोलनों के पीछे भी यही मनोविज्ञान काम कर रहा हो, तो हैरत नहीं।
वर्ष 1518 के दौरान फ्रांस में फ्रांसिस प्रथम का शासन था। उनके शासन में कला, विज्ञान और स्थापत्य का उत्कर्ष तो हुआ, पर सुरक्षा व्यवस्था सीमित थी। कई क्षेत्रों में धार्मिक तनाव, अकाल और महामारी के कारण सामाजिक अस्थिरता और मनोवैज्ञानिक भय भी बढ़ा हुआ था, इसलिए भीड़ नियंत्रण और नागरिक सुरक्षा वास्तव में कमजोर थी। इसी वजह से नाचते लोगों को मरने से सुरक्षाकर्मी रोक नहीं पाए। स्थानीय प्रशासकों और चर्च को लगा कि यह कोई अभिशाप, पाप या दैवी प्रकोप है। यह ‘डांसिंग प्लेग’ कैसे और क्यों हुआ, इस पर आज भी मतैक्य नहीं है। इसके लिए सामूहिक उन्माद, राई की फसलों में उगे फफूंद की विषाक्तता, धार्मिक भय और सामाजिक अवसाद और निराशा जैसे तर्क दिए जाते हैं।
इतिहासकार माइकल वुड, जॉन वॉलर और अन्य विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह घटना किसी एक कारण से नहीं, बल्कि कई कारकों के मिश्रण से उत्पन्न हो सकती है, जिसमें सामाजिक संकट, मानसिक आघात और अत्यधिक दैवी भय का संगठित प्रभाव एकसाथ सक्रिय हुआ और उसने इस अजीब और घातक नृत्य त्रासदी को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सामूहिक तनाव या भय चरम पर पहुंचने पर मानव मस्तिष्क ऐसी प्रतिक्रिया आज भी दे सकता है। स्ट्रासबर्ग से शुरू हुई घटना और आधुनिक उन्मादी भीड़ हिंसा मूल रूप से सामूहिक मानसिक संकट के अलग-अलग रूप हैं। स्वरूप बदल गया है, लेकिन उसकी जड़ें-असुरक्षा, आर्थिक तनाव, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक निराशा आज भी वही हैं।