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जीवन धारा: सत्य की खोज कर्म से होती है
दिमित्री मेंडेलीफ
Published by: लव गौर
Updated Sat, 20 Dec 2025 07:33 AM IST
सार
जब हाथ काम में रमे हों और मन सत्य की खोज में स्थिर हो, तब बेचैनी स्वयं शांत हो जाती है। प्रतीक्षा करना, सुधार करना और फिर से प्रयास करना-यही वैज्ञानिक व मानवीय साधना है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
मनुष्य का वास्तविक मूल्य उसके कथनों या इच्छाओं में नहीं, बल्कि उस श्रम में प्रकट होता है, जिसे वह निरंतर और ईमानदारी से करता है। जो आनंद केवल स्वयं तक सीमित हो, वह शीघ्र समाप्त हो जाता है, किंतु वह श्रम जो दूसरों के जीवन को सरल बनाता है, समय के साथ अधिक मूल्यवान होता चला जाता है।
मैंने अपने अनुभव से यह सीखा है कि विचार तभी जीवित रहते हैं, जब वे प्रयोग की अग्नि से गुजरते हैं। कागज पर लिखे सूत्र या सुंदर शब्द पर्याप्त नहीं होते, उन्हें कार्य की प्रयोगशाला में उतरना पड़ता है, जहां सत्य स्वयं अपना रूप प्रकट करता है। मेरे लिए विज्ञान कभी केवल सिद्धांतों का संग्रह नहीं रहा। वह सतत प्रयास की साधना है। जब हाथ काम में रमे हों और मन सत्य की खोज में स्थिर हो, तब बेचैनी स्वयं शांत हो जाती है। शांति कहीं बाहर नहीं मिलती, बल्कि वह उसी क्षण जन्म लेती है, जब कार्य निष्ठावान हो और उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर मानवता से जुड़ा हो। असफल प्रयोग, अधूरे निष्कर्ष और आलोचनाएं मेरे जीवन का हिस्सा रही हैं, पर मैंने उन्हें कभी अवरोध नहीं माना। वे मेरे सबसे अच्छे शिक्षक बने।
कठिनाइयां मनुष्य को थकाती नहीं, बल्कि उसकी दृष्टि को गहराई देती हैं। जो श्रम केवल स्वयं के लिए हो, वह क्षणिक होता है, किंतु जो श्रम समाज की आवश्यकता बन जाए, वही स्थायी आनंद का स्रोत बनता है। शब्दों की भूलभुलैया में खोना नहीं चाहिए। सत्य की खोज कर्म से होती है, न कि केवल विचार से। प्रकृति अपने रहस्य उतावले लोगों के सामने नहीं खोलती। प्रतीक्षा करना, सुधार करना और फिर से प्रयास करना-यही वैज्ञानिक व मानवीय साधना है।
धैर्य तथा निरंतरता के बिना कोई महान उपलब्धि संभव नहीं। समय हमारा शत्रु नहीं है; वह सत्य का सहयोगी है। कार्य कोई बोझ नहीं, बल्कि मनुष्य की सबसे बड़ी स्वतंत्रता है। जब श्रम को समाज की भलाई से जोड़ दिया जाए, तब जीवन स्वयं अर्थ से भर उठता है। तब न यश की लालसा रहती है, न क्षणिक सुखों की चिंता।
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मैंने अपने अनुभव से यह सीखा है कि विचार तभी जीवित रहते हैं, जब वे प्रयोग की अग्नि से गुजरते हैं। कागज पर लिखे सूत्र या सुंदर शब्द पर्याप्त नहीं होते, उन्हें कार्य की प्रयोगशाला में उतरना पड़ता है, जहां सत्य स्वयं अपना रूप प्रकट करता है। मेरे लिए विज्ञान कभी केवल सिद्धांतों का संग्रह नहीं रहा। वह सतत प्रयास की साधना है। जब हाथ काम में रमे हों और मन सत्य की खोज में स्थिर हो, तब बेचैनी स्वयं शांत हो जाती है। शांति कहीं बाहर नहीं मिलती, बल्कि वह उसी क्षण जन्म लेती है, जब कार्य निष्ठावान हो और उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर मानवता से जुड़ा हो। असफल प्रयोग, अधूरे निष्कर्ष और आलोचनाएं मेरे जीवन का हिस्सा रही हैं, पर मैंने उन्हें कभी अवरोध नहीं माना। वे मेरे सबसे अच्छे शिक्षक बने।
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कठिनाइयां मनुष्य को थकाती नहीं, बल्कि उसकी दृष्टि को गहराई देती हैं। जो श्रम केवल स्वयं के लिए हो, वह क्षणिक होता है, किंतु जो श्रम समाज की आवश्यकता बन जाए, वही स्थायी आनंद का स्रोत बनता है। शब्दों की भूलभुलैया में खोना नहीं चाहिए। सत्य की खोज कर्म से होती है, न कि केवल विचार से। प्रकृति अपने रहस्य उतावले लोगों के सामने नहीं खोलती। प्रतीक्षा करना, सुधार करना और फिर से प्रयास करना-यही वैज्ञानिक व मानवीय साधना है।
धैर्य तथा निरंतरता के बिना कोई महान उपलब्धि संभव नहीं। समय हमारा शत्रु नहीं है; वह सत्य का सहयोगी है। कार्य कोई बोझ नहीं, बल्कि मनुष्य की सबसे बड़ी स्वतंत्रता है। जब श्रम को समाज की भलाई से जोड़ दिया जाए, तब जीवन स्वयं अर्थ से भर उठता है। तब न यश की लालसा रहती है, न क्षणिक सुखों की चिंता।