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Social Media: नेपाल से बांग्लादेश और श्रीलंका तक चल रहा एल्गोरिदम का खेल, धराशायी हो रही सरकारें
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सार
नेपाल से पहले 2024 में बांग्लादेश में यही कहानी लिखी गई थी। जुलाई में छात्रों ने कोटा व्यवस्था के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया। पहले यह कैंपस तक सीमित था, लेकिन जल्द ही फेसबुक स्टूडेंट पेजों, इंस्टाग्राम स्लोगनों और डायस्पोरा चैनलों ने इसे एक राष्ट्रीय पहचान दी।

नेपाल के हाल
- फोटो : PTI
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विस्तार
किसी देश की सरकार को गिराने में आज सबसे तेज़ कौन है? सेना? विपक्ष? जनता..? या फिर…एक एल्गोरिदम्? पिछले तीन वर्षों में, हमारे तीन पड़ोसी देशों श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जो हुआ वही इस सवाल का जवाब है। भीड़ सड़कों पर उतरी सरकारें गिर गई और ये सब हुआ सोशल मीडिया के एल्गोरिदम की रफ़्तार पर। स्पष्ट है कि मोबाइल फ़ोन पर थिरकते अंगूठे लाठियों से ज़्यादा शक्तिशाली हैं। इसके उदाहरण सामने हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडू बीते हफ्ते अचानक जल उठी। सोमवार सुबह 9 बजे सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, एक्स, यूट्यूब, व्हाट्सएप तक को बंद करने का आदेश दिया। तर्क दिया गया कि इससे अफवाहें और असंतोष पर लगाम लगेगी। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट।

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सिर्फ तीन घंटे बाद ही यूनिवर्सिटी कैंपस से प्रदर्शन शुरू हो गया। युवाओं ने VPN यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के ज़रिए लाइवस्ट्रीम चलाए और मीम्स-वीडियो के जरिए गुस्से को हवा दी। शाम तक 10 ज़िले कर्फ्यू में थे और रात होते-होते पुलिस-भीड़ की हिंसक झड़पों में 19 लोग मारे जा चुके थे।
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अगले दिन सुबह डायस्पोरा चैनलों ने पूरी दुनिया में तस्वीरें और वीडियो फैला दिए। अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा और मंगलवार शाम 4 बजे प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफ़ा देना पड़ा। यह पूरी कहानी सिर्फ 36 घंटे में घट गई। इतनी तेज़ी से कि कोई सेना कॉलम भी इतनी जल्दी नहीं पहुंच सकता।
बांग्लादेश का ‘Monsoon Uprising’
नेपाल से पहले 2024 में बांग्लादेश में यही कहानी लिखी गई थी। जुलाई में छात्रों ने कोटा व्यवस्था के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया। पहले यह कैंपस तक सीमित था, लेकिन जल्द ही फेसबुक स्टूडेंट पेजों, इंस्टाग्राम स्लोगनों और डायस्पोरा चैनलों ने इसे एक राष्ट्रीय पहचान दी।
सोशल मीडिया पर यह आंदोलन मॉनसून अपराइजिंग (Monsoon Uprising) के नाम से जाना जाने लगा। मीम्स और वीडियो ने इसे एक साझा लय दी, जिसने युवाओं को सिर्फ़ गुस्सा नहीं बल्कि दिशा भी दी।
सरकार ने इंटरनेट बंद किया, सेना उतारी और कर्फ्यू लगाया। लेकिन एल्गोरिदम तब तक गुस्से को सड़कों पर लाखों कदमों में बदल चुका था। 5 अगस्त को हालात बेकाबू हो गए और प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद छोड़कर देश छोड़ना पड़ा। आधिकारिक आंकड़े भले कम बताए गए हों, लेकिन विभिन्न अनुमानों के मुताबिक 150 से 300 से अधिक लोगों की जान गई।
श्रीलंका से आरंभ
दक्षिण एशिया में एल्गोरिदम और सत्ता की यह जंग सबसे पहले 2022 में श्रीलंका में दिखी। आर्थिक संकट ने जनता का गुस्सा चरम पर पहुंचा दिया था। पेट्रोल-डीज़ल की लाइनें, गैस सिलेंडर की कमी और आसमान छूती महंगाई हर परिवार नाराज था।
इसी आक्रोश को एक दिशा सोशल मीडिया ने दी। फेसबुक और व्हाट्सऐप ग्रुपों पर तय हुआ कि किस दिन किस शहर से कौन-सी रैली निकलेगी, कौन किसे पानी और दवा पहुंचाएगा। सरकार ने सोशल मीडिया बैन करने की कोशिश की, लेकिन कुछ घंटों में ही यह कदम उल्टा पड़ा।
जनता राष्ट्रपति भवन तक पहुँच गई और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ना पड़ा। यही श्रीलंका 2018 में फेसबुक से भड़की मुस्लिम विरोधी हिंसा का गवाह भी रहा था। यह दोहरा चेहरा बताता है कि सोशल मीडिया लोकतांत्रिक आंदोलन का औजार भी बन सकता है और सांप्रदायिक हिंसा का हथियार भी।
जेन-जी की डिजिटल ताकत
इन तीनों कहानियों की सबसे अहम कड़ी है जेन-जी यानी वे युवा जो 1997 के बाद पैदा हुए और जिनकी ज़िंदगी मोबाइल स्क्रीन पर बीतती है। इस पीढ़ी के लिए व्हाट्सएप चैट रूम है, इंस्टाग्राम उनका सार्वजनिक चौक और यूट्यूब उनकी यूनिवर्सिटी।
नेपाल हो या बांग्लादेश, हर जगह कैंपस के छात्र, यूट्यूबर, इंस्टाग्रामर और फेसबुक ग्रुपों ने आंदोलन की कमान संभाली।जेन जी का सबसे बड़ा हथियार है वायरलिटी। वे जानते हैं कि मीम, शॉर्ट वीडियो और लाइवस्ट्रीम किसी भी भाषण से ज़्यादा असरदार है। और यही वजह है कि एल्गोरिदम उन्हें तुरंत विस्तार देता है।
पैटर्न हर जगह एक जैसा
अगर इन तीनों देशों को जोड़कर देखें तो कहानी की रेखा साफ़ नज़र आती है-
1. छिपा गुस्सा: भ्रष्टाचार, महंगाई या अन्याय।
2. Algorithmic Spark: वायरल पोस्ट या मीम जो गुस्से को आकार देता है।
3. नेटवर्क लॉजिस्टिक्स: हैशटैग, लाइवस्ट्रीम और मैप्स से भीड़ को दिशा मिलती है।
4. राज्य की प्रतिक्रिया: इंटरनेट शटडाउन, कर्फ्यू और बल प्रयोग।
5. सत्ता का पतन: राजपक्षे, हसीना और ओली-तीनों को जाना पड़ा।
भारत के लिए चेतावनी
भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला लोकतंत्र है। 65% से ज़्यादा आबादी 35 साल से कम उम्र की है। यानी वही जेन जी और मिलेनियल्स, जिनके लिए मोबाइल ही खबरों का स्रोत है और सोशल मीडिया ही लोकतंत्र का मैदान। तो क्या इन हालात में क्या जेन-जी का दिमाग हाईजैक किया जा सकता है..? क्या ये सब किसी “बड़े षड्यंत्र” का हिस्सा हो सका है या फिर सोशल मीडिया की डिजाइन की वजह से ये होता है?
दरअसल, सच यह भी है कि ऐसी सामग्री जो सोशल मीडिया पर लोगों को संवाद और प्रतिवाद का मौका देती है जिसे इंगेजमेंट ड्रिवन फीड्स (Engagement-driven feeds) कहते हैं वह सबसे तेजी से आक्रोश को फैलाते हैं। लोग समझते हैं कि यही जनमत है और फिर सड़क पर उतर आते हैं।
यदि युवा असंतोष, भ्रष्टाचार की कहानियां और चुनावी तनाव एक साथ आएं, तो एल्गोरिदम कहीं भा सत्ता से तेज़ साबित हो सकता है और अगर सरकार ने इंटरनेट बंद करने का रास्ता चुना तो जनता का गुस्सा सड़कों पर दिख सकता है।
एल्गोरिदम हमेशा आगे
आज के दौर में एल्गोरिदम सत्ता या सरकारों से तेज है। लाठी, शटडाउन और कर्फ्यू देर से आते हैं। मतलब ये कि सत्ता को बचाना अब सेना के बूते पर नहीं, बल्कि संस्थाओं की विश्वसनीयता और सरकार की पारदर्शिता पर निर्भर करता है। क्योंकि अब आंदोलन न नेताओं के भाषण से शुरू होते हैं, न अख़बार की सुर्ख़ियों से शुरू होते हैं एक वायरल पोस्ट से, और खत्म होते हैं सत्ता के इस्तीफे पर।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।