{"_id":"68c8c44a93ee0f85a90bd7f1","slug":"biggest-challenge-of-century-regular-health-checkups-can-reduce-loneliness-2025-09-16","type":"story","status":"publish","title_hn":"मुद्दा: सदी की सबसे बड़ी चुनौती... नियमित स्वास्थ्य जांच से अकेलापन कम किया जा सकता है","category":{"title":"Opinion","title_hn":"विचार","slug":"opinion"}}
मुद्दा: सदी की सबसे बड़ी चुनौती... नियमित स्वास्थ्य जांच से अकेलापन कम किया जा सकता है
विज्ञापन
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
फ्री ई-पेपर
सभी विशेष आलेख
सीमित विज्ञापन
सब्सक्राइब करें


अकेलापन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक (सांकेतिक)
- फोटो :
freepik
विस्तार
आपने कभी सोचा है कि अकेलापन सिर्फ एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए उतना ही हानिकारक हो सकता है, जितना धूम्रपान या मोटापा? बुजुर्गों में यह हृदय रोग का कारण बन सकता है, जबकि मजबूत सामाजिक संबंध मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं। एक शोध समीक्षा बताती है कि 18 से 29 वर्ष की उम्र में अकेलापन अपने चरम पर होता है। हर तीन में से एक युवा इस अनुभव से गुजरता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। 2024 के एक अध्ययन में पाया गया कि अकेलापन आत्महत्या के जोखिम को 16 गुना तक बढ़ा सकता है।
हार्वर्ड की एक रिपोर्ट बताती है कि 18-25 वर्ष के हर तीन में से एक युवा अकेला महसूस करता है। उनमें से आधे से ज्यादा ने यह माना कि उनके जीवन में उद्देश्य की कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल वैश्विक स्तर पर आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जबकि आत्महत्या का प्रयास करने वालों की संख्या इससे लगभग 20 गुना अधिक होती है। डब्ल्यूएचओ भी मानता है कि अकेलेपन और सामाजिक अलगाव की भावना आत्महत्या के प्रमुख कारकों में से एक हो सकती है। अब जरा वृद्धावस्था की ओर देखिए। शोध बताते हैं कि अकेलेपन से डिमेंशिया का खतरा 31 फीसदी तक बढ़ जाता है। नेचर मेंटल हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि जो लोग अकेलेपन से जूझते हैं, उनमें भूलने की बीमारी (डिमेंशिया) होने की आशंका ज्यादा होती है। फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मार्टिना लुचेती बताती हैं कि सामाजिक संपर्क की कमी और कम दोस्त होने से याददाश्त खोने की समस्या बढ़ सकती है।
क्या यह सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य तक सीमित है? नहीं। 2018 के एक अध्ययन ने दिखाया कि अकेलापन स्ट्रोक का खतरा 32 फीसदी और कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा 29 फीसदी तक बढ़ा सकता है। जब लोग अकेला महसूस करते हैं, तो तनाव बढ़ जाता है, जिससे हाई बीपी और सूजन जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। दुनिया के कुछ देशों ने नई सदी के इस संकट को पहचाना है। अमेरिकी सरकार ने अकेलापन, सामाजिक अलगाव और सामाजिक संपर्क बढ़ाने के समाधान के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है। डेनमार्क ने सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने और सामाजिक एकांत के प्रभावों को कम करने की राष्ट्रीय पहल शुरू की गई है। ब्रिटेन भी 2018 में ऐसा कर चुका है। डब्ल्यूएचओ ने अकेलेपन को एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्वीकार किया है, जो दुनिया की एक चौथाई आबादी को प्रभावित कर रही है। यह केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक ऐसी स्वास्थ्य चुनौती है, जो दीर्घकाल में कई शारीरिक और मानसिक बीमारियों को जन्म दे सकती है।
तो, क्या भारत में भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है? यहां अकेलापन केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं है, बल्कि शहरीकरण, डिजिटल लाइफस्टाइल और सोशल मीडिया की अधिकता के कारण युवा भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 50 फीसदी बुजुर्ग अकेलापन महसूस करते हैं, यह उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। शोध बताते हैं कि सामाजिक सहभागिता बढ़ाने से, परिवार और दोस्तों से जुड़े रहने से, मनोवैज्ञानिक परामर्श लेने से और नियमित स्वास्थ्य जांच करवाने से अकेलापन कम किया जा सकता है।
भारत में अकेलेपन और अवसाद से निपटने के लिए वर्तमान में कोई विशिष्ट राष्ट्रीय नीति नहीं बनी है, जबकि कई देशों ने इस दिशा में पहल की है। 2015-2016 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ‘नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे’ में भी अकेलेपन का जिक्र नहीं किया गया। हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने के लिए सरकार ने कई पहलें की हैं। 2017 में, ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम’ लागू किया गया, जो मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को सुनिश्चित करता है और मानसिक रोगियों के अधिकारों की रक्षा करता है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है। वहीं वर्तमान में, भारत में बुजुर्गों से संबंधित दो राष्ट्रीय नीतियां मौजूद हैं, लेकिन उनमें भी अकेलेपन पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। 1999 में जारी ‘राष्ट्रीय बुजुर्ग नीति’ में अकेलेपन का जिक्र सिर्फ एक बार हुआ है।
अकेलेपन और सामाजिक अलगाव की बढ़ती समस्या को देखते हुए भारत में भी एक समग्र नीति की जरूरत है, जो मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक सहभागिता और सामुदायिक समर्थन को बढ़ावा देने पर केंद्रित हो। इन नीतियों में सामुदायिक जुड़ाव को प्रोत्साहित करना, मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा देना, और सामाजिक समर्थन नेटवर्क को मजबूत करना शामिल हो सकता है। इससे न केवल मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ेगी, बल्कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता भी बढ़ेगी। सवाल सिर्फ यह है कि हम इसके लिए कितने तैयार हैं?