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ब्रिक्स: क्या भावी चुनौतियों के लिए तैयार है यह समूह? ग्लोबल साउथ के एजेंडे पर भारत के सामने नेतृत्व का अवसर
रहीस सिंह
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Mon, 07 Jul 2025 10:05 AM IST
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ब्राजील में 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन
- फोटो :
पीटीआई
विस्तार
पांच देशों की यात्रा के क्रम में प्रधानमंत्री मोदी ब्राजील पहुंच चुके हैं, जहां रियो डि जेनेरियो में हो रहे 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में वह हिस्सेदारी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री की यह यात्रा उस बहुपक्षीयता को आगे बढ़ाने का कार्य करेगी, जो वर्तमान समय में भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण घटक बना हुआ है।
इसमें कोई संशय नहीं है कि भारत का झुकाव बहुपक्षीयता की तरफ है और ब्रिक्स इसके लिए बेहतर मंच हो सकता है। लेकिन क्या यह वाशिंगटन और उसके यूरोपीय गठबंधन से मुकाबला करने में समर्थ है? ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ इस मंच की उपलब्धि है, पर व्यावहारिक दृष्टि से चीन इसका उपयोग अपनी ‘सॉफ्ट पावर’ के रूप में करता दिख रहा है।
चीनी सेना द्वारा ‘डोकलाम’ और ‘गलवान’ में जो कुछ किया गया, उसके बाद से भारत और चीन के बीच दूरी इतनी बढ़ गई कि ब्रिक्स उसे पाट नहीं सकता। दोनों देशों की दूरी की एक झलक किंगदाओ (चीन) में एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में दिखी, जहां संयुक्त बयान में पाकिस्तान में हुई आतंकवादी घटना को तो जगह दी गई, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले को नहीं। अगर पहलगाम हमले को इसमें जगह दी जाती, तो चीन का सदाबहार मित्र (पाकिस्तान) कठघरे में खड़ा हो जाता। इसलिए भारत ने उस पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। चीन और रूस की मित्रता ब्रिक्स से यूरोप और अमेरिका की दूरी बढ़ा देती है। यही नहीं बीजिंग-मास्को-तेहरान के बीच संबंध अमेरिका को अखर रहा है। ऐसे में ब्रिक्स वैश्विक व्यवस्था के साथ या समानांतर लंबी दूरी तक चल पाएगा, कहना मुश्किल है।
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डि सिल्वा भले ही ब्राजील को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल करने के पक्षधर न हों, लेकिन शी जिनपिंग से उनके बेहतर संबंध हैं। शेष सदस्य देशों में- दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, ईरान, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और इंडोनेशिया आदि चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में शामिल हैं। इससे ब्रिक्स की निष्पक्ष और बहुपक्षीय संबंधों की नैतिकता का आकलन किया जा सकता है। ये देश चीनी एलायंस का हिस्सा पहले हैं, ब्रिक्स का बाद में। यही कारण है कि अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई ने ब्रिक्स से जुड़ने से इन्कार कर दिया। वैसे भी गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों ने जिस तरह से ब्रिक्स की परिकल्पना की थी और इसको लेकर जो उम्मीदें जताई थीं, वे अब नजर नहीं आ रही हैं। हालांकि यह बहुपक्षीय-संयोजन का दौर है और भारत इसी दिशा में काम कर रहा है, लेकिन कुछ चीजें टकराती हुई दिख रही हैं। जैसे भारत एक तरफ शंघाई सहयोग संगठन में चीन के साथ है, जिसे अमेरिका और नाटो देश प्रतिद्वंद्वी संगठन के तौर पर देख रहे हैं, तो दूसरी ओर भारत हिंद-प्रशांत में अमेरिका के साथ क्वाड में शामिल है, जिसे चीन अपने खिलाफ मानता है। इससे यह भी पता चलता है कि सदस्य देशों के बीच एकता कितनी कमजोर है।
ब्रिक्स प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लेकर चलने के साथ ही वैश्विक आबादी में लगभग 49.5 प्रतिशत, वैश्विक जीडीपी में करीब 40 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार में लगभग 26 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। हाल के दशकों में ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं की साख जी-7 देशों के मुकाबले मजबूत हुई है। ब्रिक्स देश, आर्थिक व सामरिक दृष्टि से पर्याप्त क्षमता रखते हैं और भू-राजनीतिक संतुलन पश्चिम से पूरब की ओर शिफ्ट हो रहा है। इनके पास बड़ा मध्य-वर्ग तथा बहुत बड़ा बाजार है। लेकिन परिणाम वे नहीं दिख रहे, जो ‘ड्रीमिंग विद ब्रिक्स : द पाथ टू 2050’ में अनुमान के आधार पर सहेजे गए थे।
जाहिर है, ब्रिक्स अभी अपने उन लक्ष्यों से बहुत दूर खड़ा है, जो इसकी स्थापना और उसके बाद पिछले 16 शिखर सम्मेलनों में एक-एक करके तय किए गए। रियो ब्रिक्स का आदर्श वाक्य है- 'अधिक समावेशी और टिकाऊ शासन के लिए ग्लोबल साउथ सहयोग को मजबूत बनाना।' लेकिन इस शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शामिल नहीं हो रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए यह अवसर है कि वह इसका फायदा उठाकर ग्लोबल साउथ की सुरक्षा, शांति और समृद्धि के एजेंडे को प्रमुखता से आगे बढ़ाकर अपना नेतृत्व सिद्ध करे।
बहरहाल सैद्धांतिक दृष्टि से तो ब्रिक्स देश अब ‘इकनॉमिक ग्रोथ फॉर ऐन इनोवेटिव फ्यूचर’ से आगे निकलकर ‘ब्रिक्स पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल स्टेबिलिटी, शेयर्ड सिक्योरिटी एंड इनोवेटिव ग्रोथ’ की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। लेकिन दुनिया में जिस प्रकार के जियो-स्ट्रैटेजिक बदलाव आ रहे हैं, जिनका प्रभाव स्थिरता, सुरक्षा और आर्थिक विकास पर स्थायी रूप से पड़ने वाला है, उसके लिए ब्रिक्स कितना तैयार है, यह अस्पष्ट है। ऐसे में भावी चुनौतियों से निपटने के लिए ब्रिक्स देशों के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है। लेकिन क्या ब्रिक्स इसके लिए पूरी तरह से तैयार है?