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मंथन: क्या बदल चुकी है आतंकवाद की परिभाषा, इसकी विवेचना जरूरी
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सार
पाकिस्तान और बांग्लादेश, अमेरिका और चीन की शह पर आतंकवाद का सहारा लेते हैं। ऐसे में भारत को अपने दम पर ही लड़ाई लड़नी होगी।
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सांकेतिक तस्वीर।
- फोटो :
adobe stock
विस्तार
पाकिस्तान के असली शासक यानी फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने फिर जहर उगलना शुरू कर दिया है। उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा वह कश्मीर को भारत से मुक्त कराने के लिए आतंकी संगठनों को समर्थन देना जारी रखेंगे और नष्ट हुए आतंकी अड्डों को फिर से जीवित करने का काम करेंगे। पहले पाकिस्तान यही काम खामोशी से करता था। अब बेशर्मी से कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ दावत उड़ाने के बाद आसिम मुनीर हवा में उड़ रहे हैं और खुल्लमखुल्ला दहशतगर्दी की वकालत कर रहे हैं।
भारत दशकों से तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में एकजुट होने की अपील करता रहा है। भारत में सीमापार से आतंकवादी हमलों के लिए लंबे समय तक विश्व के अनेक महत्वपूर्ण देश भारत के रुख का समर्थन करते नजर आते थे, लेकिन अब तस्वीर बदलती दिखाई दे रही है। चंद रोज पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग परिषद के साझा बयान पर दस्तखत करने से इन्कार किया था। भारत चाहता था कि साझा बयान में पहलगाम की आतंकी वारदात की निंदा हो और आतंकवाद को संरक्षण देने वाले मुल्क पाकिस्तान को कोसा जाए, पर ऐसा नहीं हुआ। जाहिर है कि चीन के दबाव में ऐसा हुआ।
अब ताजा खबर यह है कि चीन बांग्लादेश और पाकिस्तान को साथ लेकर साका (साउथ एशिया अलायंस) नाम से नया संगठन बना रहा है। चीन ने इसमें शामिल होने के लिए मालदीव और अफगानिस्तान को राजी कर लिया है। यह संगठन सार्क के जवाब में बनाया जा रहा है। चीन का यह विरोधाभासी रवैया है। एक तरफ वह भारत से सीमा विवाद पर बातचीत की पेशकश करता है, तो दूसरी ओर आतंकवाद को पालने-पोसने का काम भी कर रहा है। नेपाल पर तो पहले ही उसने डोरे डाल रखे हैं। भारत में नक्सलवाद भी चीन की ही देन है।
विडंबना यह है कि भारत के विरोध में अमेरिका और चीन, दोनों ही पाकिस्तान और बांग्लादेश का इस्तेमाल कर रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान अपनी सरकार की बर्खास्तगी के लिए सार्वजनिक रूप से अमेरिका को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भी अपनी सरकार के तख्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ बताती रही हैं। क्या मान लिया जाए कि अमेरिका और चीन असल में एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं और जैसा एक-दूसरे के प्रति वे सार्वजनिक व्यवहार करते हैं, असल में वैसे नहीं हैं। आज अमेरिका जिस तरह पाकिस्तान के प्रति लाड़ दिखा रहा है, उससे क्या उसके दोहरे रवैये का सुबूत नहीं मिलता? स्पष्ट है कि वर्तमान में आतंकवाद की परिभाषा बदल चुकी है।
अब आतंक फैलाकर देशों में तख्तापलट भी किया जा रहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई वारदात इसकी गवाह हैं। तो यक्ष प्रश्न यही है। वह एक दौर था, जब आतंकवाद की एक वैश्विक परिभाषा हो सकती थी। समूचा संसार उस मसले पर एकसाथ खड़ा दिखाई दे सकता था। अमेरिका पर अल-कायदा के भीषण हमले और मुंबई में धमाकों की निंदा सभी देशों ने की थी। पर, अब लगता है कि सब कुछ बदल गया है। अब तो यह देखना होगा कि कौन-सा देश आतंकवादी नहीं है।
अपने राष्ट्रीय अथवा व्यक्तिगत हितों की खातिर अधिकतर देशों के राष्ट्राध्यक्ष कहीं न कहीं आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में नक्कारखाने में तूती की तरह भारत की आवाज कहीं मद्धम न पड़ जाए। अगर यह सच है, तो हिंदुस्तान को अब गंभीर विचार की आवश्यकता है कि उसे वैश्विक मंच से आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष की बार-बार अपील क्यों करनी चाहिए? अब तो उसे सीधी कार्रवाई करनी ही चाहिए। इसके लिए विश्व के किसी देश का यह प्रमाणपत्र हासिल करने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवादी देश है।
हालिया दौर में एक के बाद एक सारे बड़े देशों की भूमिका का जिक्र प्रासंगिक होगा। अमेरिका और चीन समेत बड़े, सभ्य, आधुनिक और संपन्न मुल्क अब आतंकवाद की वैसी निंदा नहीं करते, बल्कि उस हिंसा में कहीं न कहीं स्वयं शामिल हो जाते हैं। कोई देश अपने नागरिकों को ही आतंकित कर रहा है, तो कोई अपना रौब जमाने के लिए धड़ल्ले से उग्रवाद का सहारा ले रहा है। पाकिस्तान बलूचिस्तान में जिस तरह फौजी कार्रवाई करता है और कसाई की तरह बलूचों को मारता है, क्या वह आतंकवाद की परिधि में नहीं आता? बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को डरा-धमकाकर, उनमें दहशत पैदा कर ऐसी हुकूमत आतंकी हरकतें कर रही है, जो बिना चुनाव के सत्ता पर काबिज है।
लब्बोलुआब यह कि भारतीय लोकतंत्र को बदलते परिदृश्य में बेहद गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में उसे अपने दम पर ही लड़ाई लड़नी होगी। अब आतंकवादी वारदात में कोई दूसरा देश सहयोगी बनेगा-यह नहीं कहा जा सकता।