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जलवायु संकट: 10 गुना अधिक तेजी से पिघल रहे हिमालय के ग्लेशियर... क्या दुनिया अंत की ओर बढ़ रही है?
सीमा जावेद
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Sat, 08 Feb 2025 05:54 AM IST
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सार
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ग्लेशियर (सांकेतिक तस्वीर)
- फोटो :
अमर उजाला/एजेंसी
विस्तार
जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम और मौसम का कहर चारों ओर टूट रहा है। लॉस एंजिलिस में जंगल की भीषण आग के लिए जलवायु परिवर्तन खलनायक बना है। वहीं इसके चलते उत्तराखंड में जनवरी की दोपहर में इन दिनों मार्च जैसी गर्मी का एहसास हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं और भारत, नेपाल एवं भूटान इस बदलाव के केंद्र में हैं।
वर्ष 2025 तक हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर के आकार में 30 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है, जिससे हिमालय के नीचे वाले भू-भाग में रहने वाले आठ देशों के करीब 200 करोड़ लोगों को पानी की किल्लत और बाढ़ का खतरा होगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और यूनेस्को के मुताबिक वर्ष 2023 में पांच दशकों के दौरान ग्लेशियर का सबसे ज्यादा बड़ा हिस्सा पिघल गया। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 में ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ ग्लेशियर प्रिजर्वेशन’ घोषित करते हुए धरती की जीवनदायी बर्फ को बचाने के लिए कदम उठाने का एक वैश्विक आह्वान किया है। उत्तराखंड में इस साल जनवरी के आमतौर पर हाड़ कंपा देने वाले जाड़े में लगभग 87 फीसदी कम बारिश हुई। इतना ही नहीं, 2,800 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ों पर बर्फबारी का नामोनिशान भी नहीं दिखा। कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस, जो कि मौसम के वैश्विक पहलुओं की निगरानी करने वाली संस्था है, ने पहले ही घोषित कर दिया था कि 2024 में वैश्विक तापमान ने 1.5 डिग्री सेल्सियस की लक्ष्मण रेखा पार कर ली और जिस बात का डर था वह लम्हा हमारे सामने आ खड़ा हो चुका है।
कम ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से नेपाल और भूटान में फैले हिमालय के पूर्वी हिस्सों में ग्लेशियर को ज्यादा नुकसान होने की आशंका है। शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि हिमालय के ग्लेशियर पिछले कुछ दशकों से दस गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। यह गिरावट 400 से 700 साल पहले उस दौर में हुए ग्लेशियर के आखिरी बड़े विस्तार के मुकाबले कहीं ज्यादा है, जिसे हम ‘लिटिल आइस ऐज’ के नाम से जानते हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के अध्ययनों में यह बात सामने आई है।
ताजा शोध के मुताबिक, अगले दशक में हिमालय के पूर्वी हिस्सों-खास तौर पर नेपाल और भूटान में स्थित ग्लेशियर काफी हद तक पिघल जाएंगे या फिर बिल्कुल खत्म हो जाएंगे। नेपाल के याला ग्लेशियर को तो ऐसे हिमनद के रूप में चिह्नित किया गया है, जो इतनी तेजी से पिघल रहा है कि वह 2040 के दशक में संभवतः पूरी तरह गायब हो जाएगा। काराकोरम क्षेत्र में वर्ष 2080 से 2100 तक ग्लेशियर 35 फीसदी तक पिघल सकते हैं। वहीं, पामीर के पहाड़ों में यह आंकड़ा 45 फीसदी और पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 60 से 95 फीसदी तक हो सकता है। दुर्भाग्य की बात है कि हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र में बसे ग्लेशियर ब्लैक कार्बन नाम की एक और समस्या से जूझ रहे हैं। यह ब्लैक कार्बन निचले इलाकों में जलायी जाने वाली आग से उठे कार्बन के कण हैं, जो हवा के साथ ऊपर जाते हैं और ग्लेशियर पर जाकर चिपक जाते हैं। काला रंग होने की वजह से ब्लैक कार्बन सौर विकिरण को ज्यादा तेजी से अवशोषित करता है।