{"_id":"692ce7cea4df1da73301866d","slug":"national-aids-and-std-control-programme-has-achieved-undeniable-successes-but-challenges-remain-2025-12-01","type":"story","status":"publish","title_hn":"मुद्दा: लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है....चुनौतियां अभी बाकी हैं","category":{"title":"Opinion","title_hn":"विचार","slug":"opinion"}}
मुद्दा: लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है....चुनौतियां अभी बाकी हैं
वी हेकाली झीमोमी
Published by: लव गौर
Updated Mon, 01 Dec 2025 06:27 AM IST
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
विज्ञापन
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
फ्री ई-पेपर
सभी विशेष आलेख
सीमित विज्ञापन
सब्सक्राइब करें
एड्स से संबंधित मृत्यु दर में 80 फीसदी की कमी दर्ज की गई है
- फोटो :
अमर उजाला प्रिंट
विस्तार
भारत एचआईवी/एड्स के खिलाफ अपनी लड़ाई में निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) ने निर्विवाद उपलब्धियां हासिल की हैं। नई संक्रमण दर 2010 की तुलना में लगभग आधी रह गई है, एड्स से संबंधित मृत्यु दर में 80 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, उपचार पर रहने वाले लोगों में वायरस नियंत्रण अब 97 फीसदी से अधिक है। भारत उपचार प्रभावकारिता के मामले में विश्व के अग्रणी देशों में शामिल हो गया है।हालांकि, देश 2026–31 के लिए एनएसीपी चरण-VI में प्रवेश कर रहा है, लेकिन यह सच्चाई भी स्वीकार करनी होगी कि भारत में महामारी अब भी विकसित हो रही है और कुछ जगहों पर यह तेजी से बढ़ रही है। महामारी की मौजूदगी का राष्ट्रीय औसत केवल 0.20 फीसदी है, लेकिन यह उभरते हुए हॉटस्पॉट और नई कमजोर स्थितियों को छिपाता है। असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और पंजाब जैसे राज्यों में सुई से नशीली दवाओं के सेवन के कारण घटनाओं के बढ़ने की खबर है। सुई से नशीली दवा लेने वाले लोगों में, एचआईवी होने की दर राष्ट्रीय औसत से चालीस गुना अधिक है और कुछ खास स्थानों में इसमें गुणात्मक वृद्धि देखी जा रही है।
देश में हर साल 15–25 आयु वर्ग में 2.25 करोड़ किशोर प्रवेश कर रहे हैं। भारत की युवा जनसांख्यिकी संवेदनशील बनी हुई है, क्योंकि डिजिटल प्लेटफॉर्म तक आसान पहुंच जोखिम से भरे यौन व्यवहार और मादक पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देती है। भारत ने गर्भवती माताओं के लिए एचआईवी व सिफलिस की सार्वभौमिक जांच और उपचार, शिशु का प्रारंभिक निदान और बालरोग निवारक उपायों से माताओं से बच्चों में संचरण को 2020 के 25 फीसदी से अधिक से घटाकर 2024 में 10 फीसदी तक कर दिया। फिर भी, यह उन्मूलन की पांच प्रतिशत सीमा से ऊपर है। सीधे कहें तो, वायरस ने खुद को अनुकूलित कर लिया है। यह युवाओं को प्रभावित करता है, और नई कमजोरियों का फायदा उठा रहा है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एनएसीपी-VI की परिकल्पना भविष्य-अनुकूल एचआईवी रणनीति के रूप में की गई है। यह 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में समाप्त करने के लक्ष्य के अनुरूप है और चार बड़े बदलावों में निहित है।
सबसे पहले, भारत की विविध संवेदनशीलता यह मांग करती है कि रोकथाम को श्रेणियों के बजाय लोगों के अनुसार बदला जाए। सार्वभौमिक रोकथाम यह सुनिश्चित करेगी कि हस्तक्षेप, समूहों के बजाय जोखिम वाले व्यक्तियों तक पहुंचे। एआई-संचालित स्वयं जोखिम आकलन, वर्चुअल पहुंच, नए दवा उपकरण और सबसे ज्यादा संक्रमण फैलाने वाले संभावित लोगों का पता लगाने के लिए रोग निगरानी प्लेटफॉर्म, रोकथाम और सेवाओं को आपस में जोड़ने के अगली पीढ़ी के प्रयासों को सशक्त करेंगे। छह नशीली दवाओं के उपयोग से उत्पन्न महामारियों पर लक्षित रणनीतियां महामारी को तेजी से कम करने पर केंद्रित होंगी। दूसरा, एनएसीपी-VI को जल्दी पहचान, प्रभावी इलाज, जीवन भर बनाए रखने के दृष्टिकोण पर आधारित होना चाहिए।
उच्च गुणवत्ता वाले, मुफ्त एंटीरिट्रोवायरल उपचार और वायरल-कमी (वायरल सप्रेशन) को बढ़ाने में भारत की सफलता अभूतपूर्व है। आभा, टेलीमेडिसिन और एआरटी वितरण के लिए डिजिटल फॉलो-अप का उपयोग करते हुए आपस में जुड़े तरीके सेवा अदायगी बाधाओं को दूर करने में मदद करेंगे। तीसरा, एचआईवी व सिफलिस के ऊर्ध्वाधर संचरण को समाप्त करना राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनिवार्यता है। आरएमएनसीएच+ए के साथ तालमेल बढ़ाकर, निजी क्षेत्र से डाटा-प्रवाह और जांच किट्स के लिए विकेंद्रीकृत आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से, भारत 2030 तक उन्मूलन का लक्ष्य हासिल कर सकता है। हालांकि, इसके लिए हर गर्भवती महिला तक पहुंचना आवश्यक है। चौथी बात, कार्यक्रम को कलंक समाप्त करने पर फिर से जोर देना चाहिए। कलंक अदृश्यता, देरी से निदान और गैर-उपचार संक्रमण का सबसे बड़ा कारण है। एचआईवी और एड्स (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 कलंक और भेदभाव से मुक्त वातावरण में स्वास्थ्य सेवा पाने को बढ़ावा देता है।
एचआईवी नियंत्रण और रोकथाम में शुरुआती निवेश ने महामारी की दिशा को पलटने में मदद की, जिससे एक पूरी पीढ़ी को रुग्णता से बचाया गया। हमारी जैव प्रौद्योगिकी और दवा उद्योग की क्षमता दवाओं, वैक्सीन और डायग्नोस्टिक्स का तेजी से विकास कर सकती है, जिससे उन्मूलन प्रयासों के लिए सहायता मिलती है। एड्स को समाप्त करने की आखिरी कोशिश केवल जैव-चिकित्सीय नहीं है—यह सामाजिक, डिजिटल, व्यावहारिक और संरचनात्मक भी है। एनएसीपी-VI आगामी रोडमैप प्रदान करता है, जो तकनीकी रूप से आधुनिक, महामारी विज्ञान के दृष्टिकोण से सटीक और सामाजिक रूप से जमीन से जुड़ा है।
(लेखिका, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अपर सचिव और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की महानिदेशक हैं। )