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काम आई कूटनीति: सबको पता है दलाई लामा एक नेक व्यक्ति हैं, जबकि मसूद अजहर आतंकवादी है

मारूफ रजा, सामरिक विश्लेषक Published by: मारूफ रजा Updated Fri, 03 May 2019 06:50 AM IST
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our diplomecy is working
काम आई हमारी कूटनीति
दुनिया के शाक्तिशाली देशों अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने चीन पर बहुत दबाव डाला, जिसका नतीजा है कि चीन ने अपना रवैया बदला और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जैश सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। हालांकि फ्रांस ने यह प्रस्ताव रखा था कि चीन या जो भी देश मसूद को वैश्विक आतंकी मानने के खिलाफ हैं, वे इसकी वजह दुनिया के सामने रखें। इन दबावों की वजह से चीन थोड़ा दब गया। जबकि अब तक चीन का मानना था कि भारत जिस तरह दलाई लामा को अपने यहां शरण देता है, उसी तरह पाकिस्तान भी मसूद अजहर को अपने यहां रखकर कोई गलत काम नहीं कर रहा। पर सबको यह पता है कि दलाई लामा एक नेक व्यक्ति हैं, जबकि मसूद अजहर आतंकवादी है।

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चीन चूंकि अपनी आर्थिक ताकत की वजह से दुनिया में मजबूत हो गया है, इसलिए हर जगह वह अपना कानून लागू करने की कोशिश करता है। लेकिन दबाव के सामने उसके झुक जाने से साबित हो गया है कि चीन से अगर आप टक्कर लेने की कोशिश करें और हिम्मत करके खड़े रहें, तो वह धीरे-धीरे पीछे हट जाता है, जैसे दोकलम के मसले पर हुआ था। आतंकवाद के मुद्दे पर दुनिया के अन्य देशों का भारत के साथ खड़े होने का कारण यह भी है कि हमने इस मुद्दे पर हौसला दिखाया और बालाकोट में हवाई हमले जैसी कार्रवाई की।

मसूद अजहर के मसले पर भारत की इस कामयाब कोशिश के पीछे पिछले तीन-चार साल में कूटनीतिक स्तर पर मोदी सरकार की पहल रही है। इससे पाक प्रायोजित आतंकवाद को लेकर दुनिया के ताकतवर देशों की राय बदली है। इस मामले में भारत इसलिए भी फायदे में रहा, क्योंकि ये सभी देश पाकिस्तान की हरकतों से थक चुके हैं। इनमें अमेरिका सबसे आगे है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो कहा भी है कि 'पाकिस्तान हमारे साथ धोखा करता आया है, इसी धोखे में उसने हमसे 30 से 35 अरब डॉलर खाए हैं। इसकी हरकतों पर हम भरोसा नहीं कर सकते।' अमेरिका ने ही बाकी देशों पर भी दबाव डाला। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य देश हैं, जिनमें पांच स्थायी देश हैं, जबकि दस अस्थायी। अभी जो सदस्य देश हैं, उनके साथ अमेरिका ने अंदरखाने कूटनीतिक पहल की होगी, जिससे 14 देश मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के पक्ष में खड़े हो गए।

चीन पर यह दबाव पड़ा कि अब आप यह साबित कीजिए कि किन कारणों से आप मसूद को आतंकवादी नहीं मानते। ऐसे में चूंकि उसे दुनिया के सामने नीचा होना पड़ता, इस कारण वह हिल गया। इसके अलावा भारत की कूटनीतिक पहल भी मजबूत थी। विदेश सचिव विजय गोखले हाल ही में बीजिंग गए थे। उनकी वह यात्रा दुनिया को यह दिखाने की कोशिश थी कि हम मसूद के मसले पर चीन को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे विदेश मंत्रालय को यह विश्वास हो गया था कि इस बार चीन इस मसले पर रुकावट नहीं डालेगा। चीन के पास हालांकि वीटो करने का एक और मौका था। लेकिन उसने आंतरिक स्तर पर मूल्यांकन किया होगा कि दोकलम व कुछ अन्य मुद्दों पर शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी के बीच जो खाई पैदा हुई, उसे पाटने का यह एक मौका है।

हलांकि कुछ लोगों का यह कहना है कि मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की सूची में पुलवामा हमले व कश्मीर में जैश प्रायोजित आतंकवाद को शामिल नहीं किया गया। हमें समझना होगा कि किसी एक मामले के लिए किसी को वैश्विक आतंकी घोषित नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर का मामला 2009 से था। उसने हमारी संसद पर हमला करवाया, पठानकोट और अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर हमले करवाए। बीच में उससे पाकिस्तान ने किनारा कर लिया था, पर दोनों में कुछ समझौता हुआ। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने का प्रतीकात्मक मतलब ही है और इससे कुछ खास हासिल नहीं होने वाला।

यह कदम प्रतीकात्मक जरूर है, पर इस मामले को यहां से आगे बढ़ाना अब आने वाली सरकार की जिम्मेदारी है। इसके बाद भी मसूद अजहर लंबे समय तक रावलपिंडी स्थित सैनिक अस्पताल में रहा, तो अब भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि जिसे वैश्विक आतंकी घोषित किया गया, वह तो पाक सेना की गोद में खेल रहा है। पाक सेना के प्रवक्ता जनरल गफूर ने कहा है कि उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ बहुत सख्त कदम उठाए हैं। पर जो बड़े आतंकवादी समूह हैं, उन्हें अभी तक न तो प्रतिबंधित किया गया और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई। उनसे लड़ने से पाक सेना अब डरती है, क्योंकि उनके पास अत्याधुनिक हथियार और आत्मघाती आतंकी हैं, जो उनका जीना हराम कर देंगे। ऐसे में अब भारत को विश्व बिरादरी से पाकिस्तान पर अंकुश लगाने की मांग करनी चाहिए, क्योंकि यह साबित हो गया है कि मसूद पाक सेना के संरक्षण में है।

पहला काम तो यह होना चाहिए कि पाक सेनाधिकारियों के परिजनों को अमेरिकी वीजा न मिले, क्योंकि अधिकतर सेनाधिकारियों के बच्चे वहीं पढ़ते हैं। इसके अलावा पाकिस्तान पर दबाव डालना चाहिए जब तक वह आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाकर अंतरराष्ट्रीय अपराध कानून के तहत सजा न दिलवाए, तब तक उसे आईएमएफ से कर्ज नहीं मिलेगा।
चीन को भी यह समझाने की जरूरत है कि वह भले संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य हो, पर अगर वह पाकिस्तान का इसी तरह सहयोग करता रहा, तो भारत में उसके सभी निवेशों को रोक दिया जाएगा और चीन से आयातित वस्तुओं पर रोक लगाई जाएगी। साथ ही, भारत-पाक या कश्मीर मसले पर चीन दखल देगा, तो भारत चीन से रूठे देशों को रक्षा तकनीक उपलब्ध कराने में देर नहीं करेगा। भारत को चीन के खिलाफ माहौल बनाने की जरूरत है।

मसूद अजहर के वैश्विक आतंकी घोषित हो जाने भर से आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई खत्म नहीं हुई है। हमें दुनिया के देशों को बताना होगा कि संयुक्त रूप से पाकिस्तान पर दबाव डाला जाए कि या तो वह मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल सौंपे या फिर भारत के हवाले करे, ताकि उसे सजा दी जा सके।
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