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प्रसंगवश: टेररिज्म को टूरिज्म के गुलदस्ते नहीं हरा सकते, भावी त्रासदियों को रोकने का एक ही तरीका- अटूट संकल्प
डॉ. अग्निशेखर, संयोजक, पनुन कश्मीर
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Thu, 24 Apr 2025 06:21 AM IST
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पहलगाम में आतंकी हमला (फाइल)
- फोटो :
पीटीआई
विस्तार
कश्मीर में पहलगाम के बैसरन घास के मैदान में निहत्थे पर्यटकों पर जानबूझ-कर किया गया आतंकवादी हमला, जिसमें करीब 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए, उस लगातार चल रहे जिहादी आतंकवाद की एक गंभीर याद दिलाता है, जो पूरे क्षेत्र को खतरे में डालता ही रहता है। यह त्रासदी नहीं, एक सुनियोजित हत्याकांड है। इसे एक और आतंकवादी घटना मानकर खारिज नहीं किया जा सकता, बल्कि यह कश्मीर में जातीय संहार (जेनोसाइड) के अतीत की निरंतरता है। यह विचारधारा उसी जहर में निहित है, जिसने 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और जातीय सफाए को प्रेरित किया था।
यह धर्म-प्रेरित मानसिकता कश्मीर की हवाओं में आज भी बह रही है और पहलगाम की वारदात के बाद अब इस मामले में कोई संशय नहीं रह जाना चाहिए। सरकारों द्वारा दशकों से इस मानसिकता को लगातार नकारने का ही नतीजा है कि यह हिंसा अनियंत्रित रूप से अंदर ही अंदर बढ़ती गई है। पूरे देश को पता चलना चाहिए कि कश्मीर में जेनोसाइड कभी खत्म ही नहीं हुआ। यह बिल्कुल जारी है और कश्मीर में जो आतंकी घटना हुई, वह उसका वर्तमान रूप है। सरकार को संसद में जेनोसाइड से निपटने के लिए कानून लाना चाहिए।
सरकार को अपनी कश्मीर नीति में कुछ संशोधन लाने पर भी विचार करना चाहिए। टेररिज्म बनाम टूरिज्म पर आधारित कोई भी नीति कश्मीर में कामयाब नहीं हो सकती। आतंकवाद को पर्यटन से नहीं खत्म किया जा सकता। कश्मीर में पर्यटकों की संख्या बढ़ने से या फिल्मों की शूटिंग शुरू होने से कुछ नहीं होने वाला। यह जो हादसा हुआ, वही कश्मीर की हकीकत है। पर्यटन और लोगों का भरोसा बढ़ना तो आर्थिक व सामाजिक पक्ष हैं। दरअसल, यह धारणा कि पर्यटन आतंकवाद को हल कर सकता है, एक खतरनाक अतिशयोक्ति है, जो इस विचारधारा के साथ एक मजबूत टकराव की आवश्यकता को दरकिनार कर देती है। कश्मीर की मूल समस्या तो वहीं की वहीं है, जो बार-बार सिर उठाती है। आप देखें कि कश्मीर में आतंकवाद का एक नया आयाम, जो पिछले दो साल से है, वह अब जम्मू की तरफ आ गया है। और, पहलगाम में जो बर्बर घटना हुई, वह तो त्रासद है, और पिछले कुछ दशकों में हुआ सबसे बड़ा आतंकी हमला है। कश्मीर को विभाजित करना समय की मांग बन गई है, जिसमें घाटी को नए सिरे से पुनर्गठित करने की जरूरत है। ये दीर्घकालीन उपाय हैं, लेकिन फिलहाल घनघोर कदम उठाने की जरूरत है, इसके लिए केंद्र को नियंत्रण अपने हाथ में लेना पड़े, तो भी उसे पीछे नहीं हटना चाहिए।
कहा जा रहा है कि इन आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, जो बिल्कुल सही भी है। हम लोग पिछले 35 साल से देख ही रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि हम क्या कर रहे हैं। कश्मीर में कुछ भी सामान्य नहीं है। पुरानी सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार अच्छा कर रही है, इसमें संदेह नहीं। यही वजह है कि कश्मीरी हिंदुओं, विस्थापितों इत्यादि सभी ने सरकार के अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने का खुलकर अभिनंदन किया। लेकिन बात खत्म नहीं होती। कश्मीरी हिंदुओं में वर्तमान हालत पर गुस्सा है, नाराजगी है, लेकिन उम्मीदें भी इसी सरकार से हैं।
कश्मीरी पंडितों द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक अन्याय को पहचानना और उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए एक स्पष्ट रणनीति अपनाना स्थायी शांति की दिशा में आवश्यक कदम है। सरकार को नरसंहार को स्वीकार करके और आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर इस इतिहास का सामना करना चाहिए। आतंकवाद की वैचारिक और परिचालन नींव को नष्ट करने के लिए दृढ़ उपायों को लागू करना होगा। केवल सत्य, न्याय और अटूट संकल्प के माध्यम से ही हम आगे की त्रासदियों को रोक सकते हैं और खोए हुए लोगों की स्मृति का सम्मान कर सकते हैं।