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लक्ष्मी मैया वर दे: कोई लौटा दे मुझे पुरानी दिवाली... क्यों न मनाएं अपनी दीपों भरी जीएसटी 2 वाली दिवाली!
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दीपावली पर मां लक्ष्मी से आशीर्वाद की आकांक्षा
- फोटो :
अमर उजाला प्रिंट / एजेंसी
विस्तार
दिवालिए कह रहे हैं कि दिवाली तो गई! मैंने पूछाः दिवालिए जी, कहां गई? तो अंकल जी दनदनाए: योर दिवाली इज डेड बिकाज योर इकनॉमी इज डेड एंड माई डियर यूआर डेड...। अंकल जी की देखा-देखी मुन्ना जी भी बोल उठेः या या हिप्पी हिप्पी या या या...योर दिवाली इज डेड बिकाज योर इकनॉमी इज डेड...संविधान डेड...जनतंत्र डेड...चुनाव आयोग डेड...न्यायालय डेड... मैं सहम गया। जब सब कुछ ‘डेड’ तो हम सब हूं डेड। जब सब हूं डेड, तो बचा क्या, जो मनाऊं दिवाली और इंतजार करूं कि लक्ष्मी मैया वर दे कि दुनिया का माल मेरे घर धर दे...
एक देसी बोलाः ये फिरंगी तो हमारी भावनाओं को ठेसवा पहुचाए रहा है, तो क्या फिर कर दें एक ठो जूता कांड...। इसे सुन एक अदालत जी बोल पड़ी कि मेरे पास ये कानून है, वो कानून है, तेरे पास क्या है? तो देसी बोला, मेरे पास भगवान है, तो अदालत जी बोली कि जाओ पहले अपने भगवान से कहो कि अपनी मदद अपने आप करें। ऐसा सुनते ही देसी विक्रम भाई वेताल की भावनाएं भड़क गईं और जूता चल गया। एक बार चला, तो उसके बाद जगह-जगह चला और तीन-चार दिन तक चलता रहा... यह इस दिवाली की एक मनोरंजक इवेंट की ‘एडवांस बुकिंग’ थी, जिसमें जितना मजा था, उतनी ही सजा मिली हुई थी।
जिस दिन नोबेल वाले हंगारी कथाकार लास्लो क्रास्जनाहोरकाई को साहित्य का नोबेल दे रहे थे, देसी दुनिया में बुद्धिजीवियों के बीच जूता चल रहा था और उसी से सजा दे रहा था, जैसे कि उत्तर आधुनिकतावादी लेखक लास्लो अपनी कहानियों में मिक्सते हैं...इसे देख एक हिंदी लेखक ने एक ऐसे ही ‘बदतमीज उपन्यास’ की शुरुआत की, जिसका नाम रखा ‘जूते वाली दिवाली...
उसी उपन्यास के जूते से निकलकर मैंने दिवाली मनाने के लिए एंटर किया ही कि अपने अंकल जी नीले सूट, लाल टाई में दायां हाथ दुनाली की तरह दिखाते आते दिखे...मैं सामने पड़ा तो अंकल सेम ने धर लिया और टोकते हुए कहा कि ओ माई डियर, मैं दुनिया का सबसे बड़ा बम हूं, वर्ल्ड बैंक का बैंकर हूं, डॉलर हूं, टैरिफ का टेरर हूं, मैं माइक्रोसॉफ्ट, मैं गूगल, मैं मेटा, मैं एक्स, मैं टेस्ला बिजली कार हूं, मैं ही युद्ध हूं, मैं ही शांति, मैं ही क्रांति, मैं ही भ्रांति, तो भी तुमने मेरा नाम नोबेल पीस प्राइज के लिए नहीं भेजा...
मैंने अपनी पूंछ निकाली और कहा-सर जी ‘गलती म्हारे से हो गई।’ लीजिए कर दिए रिकमेंड, अब देखता हूं, कौन साला रोकता है पीस प्राइज। जो न देगा मैं उसे दूंगा पीस... मैं फौरन गब्बरावतार में आया और नोबेल वाले से कहा ये पीस मुझे दे दे ठाकुर, नहीं तो तुझे पीस डालूंगा...। लेकिन पीस प्राइज देना था मेरे प्यारे अंकलवा को, दे दिए विपक्षवाली आंटी को... इसे देख अपने यहां से भी एकाध चिल्ल्लाया कि पीस प्राइज तो अपने मुन्ना भाई, हमीं ने तो दुनिया के इस महान जनतंत्र को अब तक बचाया हुआ है...
अंकल ठहरे मूडी... अभी अर्श पर अभी फर्श पर...मेरी चमचागीरी से खुश होकर कह दिए...आई लाइक्स इट, यू आर ग्रेट, तेरा इंडिया ग्रेट...तेरा पॉलिसी ग्रेट, तेरी दिवाली ग्रेट, देखता अभी क्या कर सकता...अभी तुम पाक के साथ दिवाली न मनाना... यह तो अंकल जी की उदारता है कि उनकी कोई नहीं मानता, तो भी गुस्सा नहीं होते...इतनी मेहनत-मशकत के बाद हमास-इस्राइल काबू में आए और कुछ पीस-पीस होता दिखा... प्रिजनर्स होस्टेजेज का एक्सचेंज हुआ, जो छूटे उनने मनाई दिवाली, लेकिन रूस अब तक यूक्रेन के साथ अपनी बम मिसाइल ड्रोन वाली दिवाली मना रहा है...
देसी भाई बोलाः मुझे तो लगता है भाई, अपनी दिवाली अब ‘चौबीस बाई सात’ वाला ‘ग्लोबल उत्सव’ हो चली है और इतनी हिट है कि हम तो इन्हीं दिनों में मनाते हैं, लेकिन दुनिया वाले जब चाहे तब अपनी-अपनी ‘बम फोड़ दिवाली’ मनाने लगते हैं...अपने अंकल को फिर ‘पीस’ कराने जाना पड़ता है और हमें ताली बजानी पड़ती है... और अपने ‘मुन्ने भाई एमबीबीएस’ भी कम नहीं कि गए दो-तीन महीने तक हर दिन एक न एक ‘बम फोड़ दिवाली’ मनाते रहे, कभी एटम बम, कभी हाइड्रोजन बम और कभी न्यूट्रॉन बम फोड़ने की धमकी देते रहे और सबको डराते रहे और इसका भी मजा लेते रहे...
सच पटाखेबाजी में यहां कोई कम नहीं। बिहार में अभी से बम बम। कभी बम कभी नो बम...अभी कहेंगे इतनी सीट हमें दे दे, नहीं तो बम फोड़ दूंगा, कभी कहेंगे कि ये वाली नहीं, वो वाली दे दे, नहीं तो ‘गठबंधन बदल बम’ से तेरी दिवाली मना दूंगा। इधर धमकी उधर धमकी और वो भी वोट बम की धमकी...जब तक बिहार का चुनावी बम नहीं फट जाता, तब तक हर दिन छोटे-बड़े बम फूटते रहने हैं। इसी तरह दिवाली मनती रहनी है...
हाय! कोई लौटा दे मुझे पुरानी दिवाली... घरों की सफेदी की महक वाली, खील-बताशे वाली, मिट्टी के दीये वाली, तेल और रुई की बत्ती वाली, बिजली के लट्टुओं की लड़ी वाली, चांदी-सोने वाली, ताश-पत्ते के जुए वाली, तिजोरी के दोनों ओर ‘श्री लक्ष्मी सदा सहाय’ व ‘श्री गणेशाय नमः’ लिखाने वाली, गोबर्धन वाली, पटाखे के नाम पर चटर मटर, फुलझड़ियों, सुर्री, चकरी, चीनी बम वाली...और क्यों न मनाएं अपनी दीपों भरी दिवाली! ‘जीएसटी टू’ वाली दिवाली... टैक्स फ्री चीजों वाली दिवाली...दुनिया की तीसरे नंबर की होने वाली इकनॉमी की दिवाली, तीन-चार-पांच ट्रिलियन वाली दिवाली...
लेकिन जब से कुछ एंटी दिवाली ‘एनजीओ’ पीछे पड़े हैं और अदालतें एक्शन में आईं हैं, तबसे पटाखों वाली दिवाली की शामत आई है। एनजीओ कहते हैं, बारूदी पटाखे मत छुड़ाओ, ‘ग्रीन पटाखे’ छुड़ाओ, हवा को धुएं से जहरीला न बनाओ... अपने फेफड़ों को बचाओ...यारो धुआं तो ग्रीन पटाखे भी फेंकते हैं। ...तब इतनी ‘चिल्लपों’ क्यों...और हिंदू उत्सवों के पीछे ही क्यों पड़े रहते हो महाराज!
सच! एक दिवाली और हजार दुश्मन... इस ‘एनजीओ राजनीति’ को देख फिर किसी देसी भाई के भाव भड़क गए और फिर किसी ने कहीं उल्टी-सीधी हरकत कर दी, किसी ने फिर कोई ‘जूता कांड’ कर दिया, तो आप कहेंगे कि ‘डाउन विद सनातन मलेरिया सनातन डेंगू...’ कोई देश साक्षात बम मारे, आतंकियों से बम मरवाए, तो आप कुछ नहीं कहते, एक मामूली-सा पटाखा चला, तो डेंगू मलेरिया डाउन डाउन...
हमारा निवेदन है कि इस ‘उत्तर जूता युग’ में ज्यादा रोका-टोकी न करना सर जी, वरना फिर किसी सनातनिए की भावना भड़क सकती है। इसलिए आइए और काका हाथरसी की तर्ज पर ‘लक्ष्मी मैया’ को प्रसन्न करने वाली यह नई ‘आरती’ गाइए किः ‘लक्ष्मी मैया वर दे! /...अमरीका का सारा सोना मेरे घर कर दे/ लक्ष्मी मैया वर दे!!’