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भारत अब घर में शेर नहीं!: 13 महीने में देश में चार टेस्ट हारे, इससे पहले चार बार हमें हराने में लगे थे 11 साल
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Mon, 17 Nov 2025 02:56 PM IST
सार
16 अक्तूबर, 2024 से अब तक भारत ने घर पर छह टेस्ट खेले और इनमें से चार हारे हैं। कोच गौतम गंभीर की देखरेख में घर पर ही टीम के प्रदर्शन में गिरावट आई है। पिछले 13 महीने में हम घर पर जितने टेस्ट हारे हैं, उससे पहले टीम इंडिया को घर पर उतने टेस्ट हराने में विपक्षी टीमों को 11 साल लगे थे। क्या यह घर पर टेस्ट क्रिकेट का सबसे बुरा दौर है?
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भारत का घरेलू टेस्ट में खराब प्रदर्शन
- फोटो : ANI
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विस्तार
भारत की टेस्ट टीम लंबे समय तक अपने घरेलू मैदानों पर अजेय मानी जाती रही है। स्पिन की विकेटें, मजबूत बल्लेबाजी और मैच को अपनी मर्जी से मोड़ देने की क्षमता, इन खूबियों ने दशकों तक विरोधियों को भारत में जीतने का सपना भी नहीं देखने दिया, लेकिन पिछले डेढ़ साल के आंकड़े बताते हैं कि हालात तेजी से बदल रहे हैं। भारत अब घर में शेर नहीं रहा, बल्कि घर में भी दबाव में टूटने लगी टीम का नया चेहरा दिखाई दे रहा है।
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13 महीने में भारत की चार हार, बड़ी चेतावनी
16 अक्तूबर, 2024 से अब तक भारत ने घर पर छह टेस्ट खेले और इनमें से चार हारे हैं। कोच गौतम गंभीर की देखरेख में घर पर ही टीम के प्रदर्शन में गिरावट आई है। पिछले 13 महीने में हम घर पर जितने टेस्ट हारे हैं, उससे पहले उतने टेस्ट हारने में भारत को करीब 11 साल लगे थे। 16 अक्तूबर, 2024 से अब तक घरेलू टेस्ट में हार का दर 66.66 प्रतिशत है, जो 1932 से अब तक यानी भारत के टेस्ट इतिहास में सबसे खराब है। इस अवधि में भारत को घरेलू परिस्थितियों में अक्सर अपने ही बनाए पिचों का उल्टा प्रभाव झेलना पड़ा है। स्पिनर्स के खिलाफ खराब बल्लेबाजी ने भारत की बैटिंग को कई बार ध्वस्त किया है। जबकि भारत ने खुद ही घर पर लगभग सभी टेस्ट में स्पिन पिच की मांग की थी।
16 अक्तूबर, 2024 से अब तक भारत ने घर पर छह टेस्ट खेले और इनमें से चार हारे हैं। कोच गौतम गंभीर की देखरेख में घर पर ही टीम के प्रदर्शन में गिरावट आई है। पिछले 13 महीने में हम घर पर जितने टेस्ट हारे हैं, उससे पहले उतने टेस्ट हारने में भारत को करीब 11 साल लगे थे। 16 अक्तूबर, 2024 से अब तक घरेलू टेस्ट में हार का दर 66.66 प्रतिशत है, जो 1932 से अब तक यानी भारत के टेस्ट इतिहास में सबसे खराब है। इस अवधि में भारत को घरेलू परिस्थितियों में अक्सर अपने ही बनाए पिचों का उल्टा प्रभाव झेलना पड़ा है। स्पिनर्स के खिलाफ खराब बल्लेबाजी ने भारत की बैटिंग को कई बार ध्वस्त किया है। जबकि भारत ने खुद ही घर पर लगभग सभी टेस्ट में स्पिन पिच की मांग की थी।
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भारत का घरेलू टेस्ट में खराब प्रदर्शन
- फोटो : ANI
2013–2024: 11 साल में सिर्फ 4 हार और अब 13 महीने में ही उतनी
अगर इस दौर की तुलना पिछले वर्षों से करें, तस्वीर और भी चिंताजनक बनती है। एक जनवरी, 2013 से 15 अक्तूबर, 2024 तक यानी लगभग 11 साल में भारत ने घर में 53 टेस्ट खेले। इसमें उसने 42 जीते, सिर्फ चार हारे और सात ड्रॉ रहे। हार का दर सिर्फ 7.54 प्रतिशत। यानी भारत को घर में चार बार हराना विरोधियों के लिए दशक भर की मेहनत जैसा था। और अब उतने ही मैच भारत ने सिर्फ पिछले 13 महीनों में गंवा दिए। यह गिरावट न केवल टीम की तैयारी पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि घरेलू लाभ अब भारत के पक्ष में वैसा नहीं रहा जैसा पहले था।
अगर इस दौर की तुलना पिछले वर्षों से करें, तस्वीर और भी चिंताजनक बनती है। एक जनवरी, 2013 से 15 अक्तूबर, 2024 तक यानी लगभग 11 साल में भारत ने घर में 53 टेस्ट खेले। इसमें उसने 42 जीते, सिर्फ चार हारे और सात ड्रॉ रहे। हार का दर सिर्फ 7.54 प्रतिशत। यानी भारत को घर में चार बार हराना विरोधियों के लिए दशक भर की मेहनत जैसा था। और अब उतने ही मैच भारत ने सिर्फ पिछले 13 महीनों में गंवा दिए। यह गिरावट न केवल टीम की तैयारी पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि घरेलू लाभ अब भारत के पक्ष में वैसा नहीं रहा जैसा पहले था।
2001–2012: टीम में बदलाव का दौर, फिर भी इतनी हार नहीं
2001 से 2012 के बीच भारत का घरेलू टेस्ट रिकॉर्ड भी संतुलित रहा। इस दौरान खेले गए 59 टेस्ट में भारत ने 29 जीते, नौ हारे और 21 ड्रॉ रहे। उस दौर में टीम का बदलाव बहुत बड़ा था, गांगुली युग से द्रविड़ युग और फिर धोनी युग तक की यात्रा, गेंदबाजी में उतार-चढ़ाव, तेज गेंदबाजी में अनुभव की कमी भी थी, फिर भी भारत का हार प्रतिशत 15.25 फीसद था। आज की तुलना में तब का आंकड़ा चार गुणा बेहतर दिखता है, जबकि उस समय टीम की संरचना और मिलने वाली सुविधाएं आज जैसी मजबूत नहीं थीं।
2001 से 2012 के बीच भारत का घरेलू टेस्ट रिकॉर्ड भी संतुलित रहा। इस दौरान खेले गए 59 टेस्ट में भारत ने 29 जीते, नौ हारे और 21 ड्रॉ रहे। उस दौर में टीम का बदलाव बहुत बड़ा था, गांगुली युग से द्रविड़ युग और फिर धोनी युग तक की यात्रा, गेंदबाजी में उतार-चढ़ाव, तेज गेंदबाजी में अनुभव की कमी भी थी, फिर भी भारत का हार प्रतिशत 15.25 फीसद था। आज की तुलना में तब का आंकड़ा चार गुणा बेहतर दिखता है, जबकि उस समय टीम की संरचना और मिलने वाली सुविधाएं आज जैसी मजबूत नहीं थीं।
भारत का घरेलू टेस्ट में खराब प्रदर्शन
- फोटो : ANI
1932–2000: शुरुआती संघर्ष का दौर भी इतना खराब नहीं था
भारत ने 1932 से लेकर 2000 तक कुल 179 घरेलू टेस्ट खेले। इसमें भारत ने 49 जीते, 42 हारे, एक टाई रहा और 87 मुकाबले ड्रॉ रहे थे। हार का अनुपात 23.46 प्रतिशत था। यानी वह दौर जब भारत टेस्ट क्रिकेट में सीखने की यात्रा पर था, तब भी टीम का प्रदर्शन वर्तमान 13 महीनों से बेहतर था।
भारत ने 1932 से लेकर 2000 तक कुल 179 घरेलू टेस्ट खेले। इसमें भारत ने 49 जीते, 42 हारे, एक टाई रहा और 87 मुकाबले ड्रॉ रहे थे। हार का अनुपात 23.46 प्रतिशत था। यानी वह दौर जब भारत टेस्ट क्रिकेट में सीखने की यात्रा पर था, तब भी टीम का प्रदर्शन वर्तमान 13 महीनों से बेहतर था।
तो आखिर टीम इंडिया ये गिरावट क्यों?
1. उल्टा पड़ा दांव: कम दिनों में जीत के लिए बनाई गई अत्यधिक स्पिन-सहायक पिचें अब खुद भारतीय बल्लेबाजों के लिए खतरा बन रही हैं। असमान उछाल और तेज टूटती सतहें विरोधियों जितना ही भारत को भी परेशान कर रही हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ 3-0 से हार में भी यही दांव उल्टा पड़ा था और टीम इंडिया ने उससे कुछ नहीं सीखा। टेस्ट चैंपियंस दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भी वही गलती दोहराई।
2. कमजोर बल्लेबाजी: चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे जैसे मजबूत तकनीक और सॉलिड डिफेंस वाले खिलाड़ियों के जाने के बाद नई बैटिंग लाइन-अप अभी स्थिर नहीं हो पाई है। न्यूजीलैंड से जब टीम हारी थी तब रोहित शर्मा और विराट कोहली भी टीम में थे। ऐसे में टीम इंडिया को मध्यक्रम में ऐसे बल्लेबाज की कमी खल रही है, जो मैदान पर जम सके और गेंदबाजों को थका सके। पारी को संभालने वाले बल्लेबाजों की कमी बार-बार सामने आ रही है।
1. उल्टा पड़ा दांव: कम दिनों में जीत के लिए बनाई गई अत्यधिक स्पिन-सहायक पिचें अब खुद भारतीय बल्लेबाजों के लिए खतरा बन रही हैं। असमान उछाल और तेज टूटती सतहें विरोधियों जितना ही भारत को भी परेशान कर रही हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ 3-0 से हार में भी यही दांव उल्टा पड़ा था और टीम इंडिया ने उससे कुछ नहीं सीखा। टेस्ट चैंपियंस दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भी वही गलती दोहराई।
2. कमजोर बल्लेबाजी: चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे जैसे मजबूत तकनीक और सॉलिड डिफेंस वाले खिलाड़ियों के जाने के बाद नई बैटिंग लाइन-अप अभी स्थिर नहीं हो पाई है। न्यूजीलैंड से जब टीम हारी थी तब रोहित शर्मा और विराट कोहली भी टीम में थे। ऐसे में टीम इंडिया को मध्यक्रम में ऐसे बल्लेबाज की कमी खल रही है, जो मैदान पर जम सके और गेंदबाजों को थका सके। पारी को संभालने वाले बल्लेबाजों की कमी बार-बार सामने आ रही है।
3. गेंदबाजी पर अत्यधिक निर्भरता: बुमराह, शमी, अश्विन और जडेजा, इनके दम पर भारत कई बार बच निकला है, लेकिन लगातार मैच जिताने का दबाव गेंदबाजों पर ही नहीं डाला जा सकता। एक समय भारत की मजबूती बल्लेबाजी हुआ करती थी और घरेलू पिचों पर जीत की वजह भी यही थी, लेकिन अब इसमें गिरावट देखने को मिल रही है। कोच गंभीर समेत टीम मैनेजमेंट का भरोसा इस बात पर है कि गेंदबाज मैच जिताते हैं और बल्लेबाज मैच बनाते हैं, लेकिन गेंदबाज तो अपना काम कर रहे, लेकिन बल्लेबाज मैच नहीं बना पा रहे।
4. रणनीति और टीम संयोजन में अस्थिरता: पिछले एक साल में भारत ने बार-बार टीम चुनी, पिच चुनी, रणनीति बदली, पर स्थिरता कहीं नहीं दिखाई दी। टीम में इस बीच कई प्रयोग हुए। कई खिलाड़ी आए और उन्हें एक सीरीज या मैच के आधार पर बाहर कर दिया गया। घरेलू टूर्नामेंट्स में अच्छा प्रदर्शन करने वालों पर भरोसा नहीं जताया गया। नंबर तीन पर पुजारा का रिप्लेसमेंट अब तक नहीं मिल सका है। वहां प्रयोग का दौर जारी है। छह खिलाड़ी अब तक अजमाए जा चुके हैं। साथ ही जब पिच स्पिनर्स की मददगार थी, तो चार स्पिनर्स को खिलाने का फैसला भी समझ से परे था। दक्षिण अफ्रीका ने तीन मुख्य स्पिनर्स के दम पर मैच जीता। पहले टीमें जीत नहीं तो मैच को ड्रॉ कराने पर भी ध्यान देती थीं, लेकिन अब जल्द से जल्द जीत दर्ज करने की चाहत से नुकसान पहुंचा है।
4. रणनीति और टीम संयोजन में अस्थिरता: पिछले एक साल में भारत ने बार-बार टीम चुनी, पिच चुनी, रणनीति बदली, पर स्थिरता कहीं नहीं दिखाई दी। टीम में इस बीच कई प्रयोग हुए। कई खिलाड़ी आए और उन्हें एक सीरीज या मैच के आधार पर बाहर कर दिया गया। घरेलू टूर्नामेंट्स में अच्छा प्रदर्शन करने वालों पर भरोसा नहीं जताया गया। नंबर तीन पर पुजारा का रिप्लेसमेंट अब तक नहीं मिल सका है। वहां प्रयोग का दौर जारी है। छह खिलाड़ी अब तक अजमाए जा चुके हैं। साथ ही जब पिच स्पिनर्स की मददगार थी, तो चार स्पिनर्स को खिलाने का फैसला भी समझ से परे था। दक्षिण अफ्रीका ने तीन मुख्य स्पिनर्स के दम पर मैच जीता। पहले टीमें जीत नहीं तो मैच को ड्रॉ कराने पर भी ध्यान देती थीं, लेकिन अब जल्द से जल्द जीत दर्ज करने की चाहत से नुकसान पहुंचा है।
भारत का घरेलू टेस्ट में खराब प्रदर्शन
- फोटो : ANI
क्यों यह दौर भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है?
भारत टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहचान घर में बने रिकॉर्ड्स की वजह से बनाता रहा है। घर की हारें सिर्फ आंकड़े नहीं बदलतीं, वे टीम का मनोबल, विपक्ष की धारणा और भविष्य की तैयारी सब पर असर डालती हैं। इतना ही नहीं, विश्व टेस्ट चैंपियनशिप आने के बाद से टीमें घर की सीरीज को भुनाने का अवसर नहीं छोड़तीं। ऐसे में घर पर एक भी हार से टीम के फाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को झटका लगता है। भारत 2021 और 2023 में डब्ल्यूटीसी के फाइनल में पहुंचा था। तब टीम ने विदेशी पिचों के साथ घर में शानदार प्रदर्शन किया था। 2025 के फाइनल में नहीं पहुंचने की वजह न्यूजीलैंड से हार रही थी। अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार से भी उम्मीदों को झटका लगेगा। अगर भारत घर में ही जीतना बंद कर दे, तो विदेशी दौरों में टीम को और ज्यादा मानसिक दबाव झेलना पड़ेगा।
भारत टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहचान घर में बने रिकॉर्ड्स की वजह से बनाता रहा है। घर की हारें सिर्फ आंकड़े नहीं बदलतीं, वे टीम का मनोबल, विपक्ष की धारणा और भविष्य की तैयारी सब पर असर डालती हैं। इतना ही नहीं, विश्व टेस्ट चैंपियनशिप आने के बाद से टीमें घर की सीरीज को भुनाने का अवसर नहीं छोड़तीं। ऐसे में घर पर एक भी हार से टीम के फाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को झटका लगता है। भारत 2021 और 2023 में डब्ल्यूटीसी के फाइनल में पहुंचा था। तब टीम ने विदेशी पिचों के साथ घर में शानदार प्रदर्शन किया था। 2025 के फाइनल में नहीं पहुंचने की वजह न्यूजीलैंड से हार रही थी। अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हार से भी उम्मीदों को झटका लगेगा। अगर भारत घर में ही जीतना बंद कर दे, तो विदेशी दौरों में टीम को और ज्यादा मानसिक दबाव झेलना पड़ेगा।
क्या भारत वापसी कर सकता है?
बिल्कुल कर सकता है, क्योंकि टीम की काबिलियत पर संदेह नहीं, लेकिन इसके लिए स्पष्ट रणनीति, बैटिंग स्थिरता और पिचों पर संतुलन जरूरी होगा। जल्द से जल्द मैच खत्म करने की लालसा से हटकर पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट माहौल बनाना होगा। साथ ही खिलाड़ियों पर टीम मैनेजमेंट को ज्यादा से ज्यादा भरोसा दिखाना होगा। करुण नायर का रणजी में शानदार रिकॉर्ड रहा है, लेकिन इंग्लैंड में उनकी बल्लेबाजी देखकर उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। साई सुदर्शन पर मैनेजमेंट पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाया है। घरेलू क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले सरफराज खान स्क्वॉड में जगह तक नहीं बना पा रहे हैं। अगर इन सब मुद्दों पर ध्यान दिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत फिर से घर पर शेर कहलाएगा।
बिल्कुल कर सकता है, क्योंकि टीम की काबिलियत पर संदेह नहीं, लेकिन इसके लिए स्पष्ट रणनीति, बैटिंग स्थिरता और पिचों पर संतुलन जरूरी होगा। जल्द से जल्द मैच खत्म करने की लालसा से हटकर पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट माहौल बनाना होगा। साथ ही खिलाड़ियों पर टीम मैनेजमेंट को ज्यादा से ज्यादा भरोसा दिखाना होगा। करुण नायर का रणजी में शानदार रिकॉर्ड रहा है, लेकिन इंग्लैंड में उनकी बल्लेबाजी देखकर उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। साई सुदर्शन पर मैनेजमेंट पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाया है। घरेलू क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले सरफराज खान स्क्वॉड में जगह तक नहीं बना पा रहे हैं। अगर इन सब मुद्दों पर ध्यान दिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत फिर से घर पर शेर कहलाएगा।