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Dehradun: कमजोर चट्टानों का भूस्खलन ला रहा सहस्रधारा-मालदेवता क्षेत्र में तबाही, जोखिमों की अनदेखी मुसीबत

अमर उजाला ब्यूरो, देहरादून Published by: रेनू सकलानी Updated Wed, 17 Sep 2025 11:20 AM IST
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सार

वाडिया, एनजीआरआई, सिक्किम विवि के वैज्ञानिकों ने मालदेवता पर संयुक्त शोधपत्र जारी किया है। वैज्ञानिकों ने शोध पत्र में ये भी माना है कि इस क्षेत्र में अंधाधुंध विकास और भू-वैज्ञानिक जोखिमों की अनदेखी सबसे बड़ी मुसीबत बन रहा है। 

Dehradun Disaster Landslides from weak rocks are causing devastation in the Sahasradhara-Maldevta region
देहरादून में आपदा - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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सहस्रधारा, मालदेवता की कमजोर चट्टानों पर लगातार हो रहा भूस्खलन तेज बारिश में तबाही लेकर आ रहा है। वाडिया इंस्टीट्यूट, सीएसआईआर-एनजीआरआई और सिक्किम विवि के वैज्ञानिकों ने मालदेवता में 2022 में आई तबाही पर शोध किया था, जो कि इस बार की आपदा में फिर चिंता बढ़ाने वाला है।

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मालदेवता में 20 अगस्त 2022 में बादल फटने के कारण भारी तबाही हुई थी। वाडिया इंस्टीट्यूट के तत्कालीन निदेशक कलाचंद सैन, मनीष मेहता, विनीत कुमार और सिक्किम विवि के विक्रम गुप्ता ने शोध किया था। यह शोध पत्र मार्च 2023 में अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने इसमें स्पष्ट किया था कि मालदेवता क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। यह इलाका मुख्य सीमा भ्रंश (मेन बाउंड्री भ्रस्ट) पर स्थित है, जो एक सक्रिय फॉल्ट लाइन है।
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इलाके की चट्टानें कमजोर और भुरभुरी हैं। ढलानें अधिक तीव्र हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन, अस्थिर भू-भाग और अवैज्ञानिक विकास तीनों मिलकर हिमालय को आपदाओं की प्रयोगशाला बना रहे हैं। इन क्षेत्रों में जब भी भारी बारिश या बादल फटने जैसे हालात होते हैं तो तबाही का कारण बनते हैं।

2022 में आई तबाही भी इसी तरह का कारण था। बाल्दी नदी का रास्ता पहले से ही भूस्खलन से प्रभावित था। 2020 और 2021 में यहां भारी मलबा नदी में गिरा था, जिससे नदी की दिशा बदल गई थी। बारिश में जमा हुआ मलबा टूटा और तेज गति से बहते पानी के साथ मिला, जिससे हजारों टन मलबा नीचे बहा और भारी तबाही हुई थी।



अंधाधुंध विकास व भू-वैज्ञानिक जोखिमों की अनदेखी मुसीबत
वैज्ञानिकों ने शोध पत्र में ये भी माना है कि इस क्षेत्र में अंधाधुंध विकास और भू-वैज्ञानिक जोखिमों की अनदेखी सबसे बड़ी मुसीबत बन रहा है। नदियों के किनारे अवैध और अनियोजित भवनों की भरमार है। कई तो सीधे नदी के किनारे सटाकर या बीच में बने हुए हैं। यह निर्माण कार्य नदी के प्राकृतिक बहाव को रोकते हैं, जिससे पानी रुकता है। जिससे बाढ़ और भयंकर हो जाती है। उनका कहना है कि प्राकृतिक आपदा को रोका नहीं जा सकता, लेकिन सही योजना और निर्माण से इसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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इस तरह से कम होगा नुकसान
नदी किनारे निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना होगा, खासतौर से निचली फ्लड टेरेस पर। स्वचालित मौसम स्टेशन (एडब्ल्यूएस) हर संवेदनशील इलाके में लगाए जाएं ताकि समय पर चेतावनी दी जा सके। विकास योजनाओं से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन जरूरी बनाया जाए। लोगों को जागरूक किया जाए कि वे नदी के किनारे मकान न बनाएं।

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