Elections 2024: पौड़ी गढ़वाल सीट...खोया वैभव फिर हासिल करने और जीत की हैट्रिक लगाने की चुनौती
Lok Sabha Elections 2024 Uttarakhand: चुनावी संग्राम के दो चिर प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आक्रमण और प्रत्याक्रमण करने के साथ ही अपने-अपने अतीत से ऊर्जा पाने की कोशिश कर रहे हैं। पढ़िए खास रिपोर्ट...
विस्तार
उत्तराखंड की गढ़वाल संसदीय सीट पर उजड़ी सल्तनत को संवारने और अजेय दुर्ग पर भगवा बुलंद रखने के बीच जंग है। इस जंग में बेशक 13 उम्मीदवारों ने ताल ठोकी है, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस के गणेश गोदियाल और भाजपा के अनिल बलूनी के बीच ही होता दिख रहा है। प्रत्याशियों के प्रचार रथ गढ़वाल सीट के जटिल और कठिन भूगोल नापते और जन मन को पढ़ते हुए गुजर रहे हैं। चुनाव प्रचार की गर्मी ने चमोली के सीमांत शीत मरुस्थल तक फैली गढ़वाल सीट में गरमाहट पैदा कर दी है।
चुनावी संग्राम के दो चिर प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आक्रमण और प्रत्याक्रमण करने के साथ ही अपने-अपने अतीत से ऊर्जा पाने की कोशिश कर रहे हैं। एक ओर भाजपा के अनिल बलूनी भाजपा के अजेय बन चुके गढ़ को सलामत रखने के लिए ही पूरी ताकत झोंक रहे हैं। गढ़वाल की सियासी जमीन पर तीन दशक से भाजपा का दिग्विजयी रथ दौड़ रहा है।
इस रथ पर कभी जनरल बीसी खंडूड़ी सवार होते थे। फिर उनके राजनीतिक शिष्य तीरथ सिंह रावत ने लगाम संभाली और अब बलूनी को इस रथ की कमान संभालने के लिए अपना दमखम झोंकना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जादुई व्यक्तित्व के साथ तो बलूनी के बताने के लिए अपने और धामी सरकार के कराए गए काम हैं।
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दूसरी ओर गोदियाल हैं जो कांग्रेस के उस विजयी इतिहास से ऊर्जा चाहते हैं, जिसके पन्नों पर अस्सी के दशक तक कांग्रेस के एक छत्रराज की कहानी लिखी है। उस दौर में गढ़वाल सीट कांग्रेस की अजेय सल्तनत के तौर पर देखी जाती थी, मगर नब्बे का दशक आते-आते कांग्रेस की यह सल्तनत भी खंडहर होने लगी। लगातार कमजोर पड़ती सांगठनिक सेना और सीमित संसाधनों के चलते गोदियाल के सामने इस उजड़ी सल्तनत को फिर से संवारने की चुनौती है।
अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में दिग्गज डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को पराजित कर चौंकाने वाले गोदियाल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल चुके हैं। उनका अपना राजनीतिक अनुभव है। मैदान में यूकेडी, बसपा समेत अन्य दलों व निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी ताल ठोकी है और सभी अपने-अपने सामर्थ्य के हिसाब से दम लगा रहे हैं, लेकिन उनके उत्साह से जुदा गढ़वाल का मतदाता खामोश है। उसकी यह उदासीनता प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा रही है।
28 वर्षों तक कांग्रेस का रहा दबदबा
आजादी के आंदोलन से प्रभावित रहे गढ़वाल के मतदाताओं में 28 वर्षों तक नेहरू-इंदिरा का जादू सिर चढ़कर बोला। उस समय कांग्रेस के बारे में यह कहावत बन गई कि गढ़वाल में उसकी जीत का सूरज शायद ही कभी डूबेगा।
खेमेबंदी और रामलहर में उजड़ गई सल्तनत
...लेकिन वक्त के साथ लोगों के मन से कांग्रेस का जादू उतरने लगा। 80 से 90 के दशक तक कांग्रेस की जड़े खेमेबंदी और आंतरिक विद्रोह से हिलने लगी। 90 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की लहर में कांग्रेस के किले की दीवारें दरकने लगी। 21वीं सदी में आने के साथ ही कांग्रेस का किला खंडहर में तब्दील हो गया।
अर्श से फर्श पर आ गई कांग्रेस
कांग्रेस के अर्श से फर्श पर गिरने की तस्दीक दो चुनावों के वोट प्रतिशत के अंतर से हो जाती हैं। इस सीट पर सर्वाधिक प्रतिशत में वोट लेने का रिकार्ड कांग्रेस के प्रताप सिंह के नाम है। 1971 में चुनाव जीते प्रताप सिंह ने तब 79.24 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, लेकिन 2019 का चुनाव आते-आते कांग्रेस का यह वोट प्रतिशत गिर कर 27.31 प्रतिशत रह गया। 51.93 फीसदी की यह गिरावट गढ़वाल सीट पर कांग्रेस पराभव की कहानी है।
व्यक्तिगत दमखम भी मायने रखेगा
संसाधन, सांगठनिक नेटवर्क और पिछले दो चुनाव के परिणामों के मामले में कांग्रेस से भाजपा इक्कीस है। ऐसे में गढ़वाल सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल का व्यक्तिगत दमखम मायने रखेगा। वह श्रीनगर गढ़वाल सीट पर करीबी अंतर से चुनाव हारे थे। परीक्षा भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी की भी होगी, क्योंकि उनका भी यह पहला लोस चुनाव है। उनके पास मजबूत सांगठनिक नेटवर्क, पार्टी कार्यकर्ताओं की लंबी फौज, पीएम मोदी का समर्थन, राज्यसभा में कराए गए कार्य हैं, जिनके दम पर वह चुनाव लड़ेंगे। साथ ही राज्यसभा का सदस्य होने का एक अनुभव है। इस भूमिका में रह कर उन्होंने जो काम किए, उन्हें जनता के बीच रखने का भी वह प्रयास करेंगे।
लोस सीट पर कब कौन किस पार्टी का रहा विजेता
आम चुनाव विजेता
1951-52 भक्त दर्शन (कांग्रेस)
1957 भक्त दर्शन (कांग्रेस)
1962 भक्त दर्शन (कांग्रेस)
1967 भक्त दर्शन (कांग्रेस)
1971 प्रताप सिंह (कांग्रेस)
1977 जगन्नाथ शर्मा (कांग्रेस)
1980 हेमवती नंदन बहुगुणा (कांग्रेस) आई
1984 चंद्रमोहन सिंह नेगी (कांग्रेस)
1989 चंद्रमोहन सिंह नेगी (जनता दल)
1991 भुवनचंद खंडूड़ी (भाजपा)
1996 सतपाल महाराज एआईसी (तिवारी)
1998 भुवन चंद खंडूड़ी (भाजपा)
1999 भुवन चंद खंडूड़ी (भाजपा)
2004 भुवन चंद खंडूड़ी (भाजपा)
2009 सतपाल महाराज (भाजपा)
2014 भुवन चंद खंडूड़ी (भाजपा)
2019 तीरथ सिंह रावत (भाजपा)
रोचक बातें
- 17 आम चुनाव में कांग्रेस सबसे ज्यादा बार जीती
- 09 आम चुनाव कांग्रेस के नाम रहे गढ़वाल सीट पर
- 06 आम चुनाव जीते भाजपा ने संसदीय सीट पर
- 05 बार संसदीय सीट से चुनाव जीते भाजपा के बीसी खंडूड़ी
- 04 बार लगातार जीत दर्ज करने का रिकार्ड कांग्रेस भक्त दर्शन के नाम
- 03 बार चुनाव जीते चंद्रमोहन सिंह नेगी इस सीट पर
- 02 बार सांसद रहे गढ़वाल सीट से सतपाल महाराज
- 02 बार हेमवती नंद बहुगुणा जीते, एक जीत उपचुनाव में मिली
परिणाम -2019
भाजपा कांग्रेस
तीरथ सिंह रावत मनीष खंडूड़ी
5,06,980 (67.78%) 204311 (27.31%)
परिणाम 2014
भाजपा प्रतिशत कांग्रेस
मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी हरक सिंह रावत
405690 (59.31% ) 22164 (32.33)
अन्य दल और निर्दलीय 08.36
परिणाम-2009
कांग्रेस भाजपा
सतपाल महाराज लेफ्टिनेंटस जनरल टीपीएस रावत
236949 (44.41%) 219552 (41.35%)
परिणाम-2004
भाजपा कांग्रेस
मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी ले.जनरल टीपीएस रावत
257726 (51.21%) 206764 (41.08%)
17,820 वर्ग किमी में फैली गढ़वाल सीट भौगोलिक रूप से कठिन है। संसदीय सीट में कुल 14 विधानसभाएं हैं, जिनमें पौड़ी, चमोली और रुद्रप्रयाग जिले की सीटों के अलावा नैनीताल की रामनगर और टिहरी की नरेंद्रनगर और देवप्रयाग सीट शामिल है। इसमें चमोली का सीमांत क्षेत्र नीति माणा, केदारघाटी का उच्च हिमालयी क्षेत्र, पौड़ी का यमकेश्वर और कोटद्वार क्षेत्र शामिल है।
जातीय समीकरण
सैनिक बहुल गढ़वाल लोस सीट पर 46 प्रतिशत ठाकुर, 26 प्रतिशत ब्राह्मण, आठ प्रतिशत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति और बाकी अन्य जातियां हैं।
गढ़वाल सीट पर मतदाता
- 13,69,388 कुल सामान्य मतदाता
- 6,99,408 पुरुष मतदाता
- 6,69,964 महिला मतदाता
- 36,845 सर्विस मतदाता
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