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World AIDS Day: गर्भावस्था के दौरान एचआईवी संक्रमित हुई मां, लेकिन गर्भ में पल रहा बच्चा रहा संक्रमण से मुक्त

वान्या दीक्षित, माई सिटी रिपोर्टर, देहरादून Published by: रेनू सकलानी Updated Fri, 01 Dec 2023 10:01 AM IST
सार

वर्ष 2022-23 में उत्तराखंड में कुल 2,15,244 गर्भवतियों की एचआईवी जांच की गई। इनमें से 85 महिलाएं एचआईवी पॉजिटिव पाई गईं। डॉक्टरों की देखरेख में संक्रमित 71 महिलाओं ने नवजातों को जन्म दिया जो जांच में स्वस्थ पाए गए।

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World AIDS Day child growing in womb of an infected mother did not get HIV infection Dehradun Uttarakhand news
गर्भवती (प्रतीकात्मक)
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विस्तार
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गर्भावस्था के दौरान जब सीमा (बदला हुआ नाम) एचआईवी पॉजिटिव हो गईं, तब उन्हें गर्भ में पल रहे बच्चे की चिंता सताने लगी। उन्हें डर था कहीं बच्चा भी एचआईवी पॉजिटिव न हो जाए। सिर्फ समय से जानकारी होने के कारण चिकित्सकों की देखरेख में बच्चा एचआईवी के संक्रमण से मुक्त रहा।

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हालांकि, जन्म देने के बाद सीमा अब भी एचआईवी पॉजिटिव हैं। यही कहानी उत्तराखंड की 71 मांओं की भी है। उत्तराखंड एड्स कंट्रोल सोसायटी के एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. अजय कुमार नगरकर ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में उत्तराखंड में कुल 2,15,244 गर्भवतियों की एचआईवी जांच की गई। इनमें से 85 महिलाएं एचआईवी पॉजिटिव पाई गईं।
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डॉक्टरों की देखरेख में संक्रमित 71 महिलाओं ने नवजातों को जन्म दिया जो जांच में स्वस्थ पाए गए। नवजातों का नाको भारत सरकार के दिशा-निर्देशानुसार ईआईडी (अर्ली इंफैंट डायग्नोसिस) में सैंपल भेजकर एम्स नई दिल्ली में जांच हुई। इनमें से कोई भी नवजात एचआईवी संक्रमित नहीं पाया गया।

संक्रमित गर्भवती से बच्चे को खतरा

अब से दो दशक पहले तक ह्यूमन इम्युनोडेफिशियेंसी वायरस (एचआईवी) को जानलेवा माना जाता था, लेकिन चिकित्सा जगत में हुई तरक्की और डॉक्टरों के प्रयास से इस बीमारी से होने वाली मृत्यु पर काफी हद तक काबू पाया गया है। वैसे तो संक्रमण फैलने के कई माध्यम हो सकते हैं, लेकिन गर्भवती महिला से उसके बच्चे को यह संक्रमण होने की आशंका सबसे अधिक होती है। एचाईवी ही अक्वायर्ड इम्युनोडेफिशियेंसी सिंड्रोम (एड्स) का कारण बनता है।

जन्म के बाद नवजात को देनी होती है दवा

एचआईवी संक्रमित महिला को गर्भधारण के तीसरे महीने से ही एंटी रेट्रो वायरल (एआरटी) की दवा देना शुरू कर दिया जाता है। सुरक्षित प्रसव किट के माध्यम से संस्थागत प्रसव कराया जाता है। प्रसव के आधा घंटे के भीतर नवजात को डॉक्टर की मौजूदगी में एक दवा दी जाती है। अधिकतम पांच दिन के भीतर यह डोज देनी होती है। इसके ठीक 45 दिन बाद सीपीटी की दवा दी जाती है। फिर बच्चे की एचआईवी जांच कराई जाती है। ऐसे मामलों में 18 महीने तक दवा चलती है। वहीं, इन बच्चों के माता-पिता का उम्रभर उपचार चलता है।

पॉजिटिव मां से बच्चे को खतरा

पिंक क्लीनिक की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पल्लवी सिंह ने बताया कि गर्भवतियों की पहली सभी जांच के साथ एचआईवी जांच भी की जाती है। एचआईवी के लक्षण न होने पर भी गर्भवती एचआईवी संक्रमित हो सकती है। दरअसल, गर्भ में पल रहा शिशु अपने पोषण के लिए मां पर ही निर्भर रहता है। ऐसे में उसके संक्रमित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। अच्छी बात यह है कि अब उपचार से ऐसे बच्चों को एचआईवी संक्रमण से बचाया जा सकता है जिनकी मां एचआईवी संक्रमित हैं।

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ऐसे फैलता है एड्स -

- संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाना।

- ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान शरीर में एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाना।

- एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति पर इस्तेमाल की गई सुई लगाना।

- एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती गर्भावस्था के समय, प्रसव के दौरान या इसके बाद अपना दूध पिलाने से नवजात शिशु को संक्रमण ग्रस्त कर सकती है।

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