Delhi: सिपाही को सूचना छिपाना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने सीएटी का फैसला पलटा, विभागीय जांच में माना गया था दोषी
अदालत ने कहा कि सीएटी ने गलत आधार पर कांस्टेबल की याचिका मंजूर की थी और विभागीय अधिकारियों पर लगाए गए 10-10 हजार रुपये के जुर्माने को भी रद्द कर दिया।
विस्तार
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के एक सिपाही अनुज कुमार के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (सीएटी) के फैसले को पलट दिया है। अदालत ने कहा कि सीएटी ने गलत आधार पर कांस्टेबल की याचिका मंजूर की थी और विभागीय अधिकारियों पर लगाए गए 10-10 हजार रुपये के जुर्माने को भी रद्द कर दिया। इस फैसले के बाद अब सिपाही अनुज कुमार को पांच साल की सेवा जब्ती की सजा पूरी करनी होगी, जो उसके वेतन में आनुपातिक कटौती के साथ लागू की जाएगी।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति मधु जैन की खंडपीठ ने कहा कि अनुशासनिक कार्रवाई सिपाही की एफआईआर में संलिप्तता के लिए नहीं, बल्कि विभाग को समय पर सूचना नहीं देने के लिए की गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मामले में बरी होना विभागीय जांच से अलग है और डबल जियोपर्डी का सिद्धांत यहां लागू नहीं होता। अदालत ने सिपाही को विभागीय जांच में दी गई सजा लागू करने के साथ ही अधिकारियों पर लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया।
मुज्जफरनगर दंगे में सिपाही के खिलाफ दर्ज हुई थी एफआईआर
वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर के फुगाना थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसमें अनुज कुमार समेत कुछ लोगों पर लूट, आगजनी और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (आईपीसी की धारा 395, 436, 295ए) के आरोप लगे थे। अनुज कुमार, जो दिल्ली पुलिस में सिपाही था को प्राथमिकी की जानकारी 8 जून 2014 को मिली, लेकिन उन्होंने विभाग को सूचित नहीं किया। इस आधार पर 2014 में दिल्ली पुलिस (पनिशमेंट एंड अपील) रूल्स, 1980 के तहत विभागीय जांच शुरू हुई। जांच अधिकारी ने आरोप सिद्ध पाए। डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस ने 14 जनवरी 2016 को 5 साल की सेवा जब्ती की सजा सुनाई। अपील में भी यह सजा बरकरार रही। हालांकि, 27 मई 2019 को मुजफ्फरनगर की अदालत ने अनुज को आपराधिक मामले से बरी कर दिया, क्योंकि गवाह मुकर गए थे। इसके बाद अनुज ने सीएटी में याचिका दाखिल की, जहां 5 दिसंबर 2022 को उनका पक्ष मंजूर हो गया। सीएटी ने विभागीय आदेश रद्द कर दिए और डीसीपी तथा एडिशनल सीपी पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, साथ ही बैक पेमेंट्स पर 6% ब्याज देने का आदेश दिया।
अदालत ने कहा सिपाही के खिलाफ सूचना छिपाने का मामला
दिल्ली सरकार और पुलिस ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कहा कि सीएटी ने गलती से माना कि अनुशासनिक कार्रवाई दंगों में संलिप्तता पर आधारित थी, जबकि असली मुद्दा सूचना छिपाना था। अदालत ने नोट किया कि अनुज कुमार ने खुद स्वीकारा कि उन्हें एफआईआर की जानकारी थी, लेकिन सूचना नहीं दी। कोर्ट ने जुर्माने को अनुचित बताते हुए रद्द किया और कहा कि विभागीय जांच में कोई विकृति नहीं थी।
हाईकोर्ट में मुकरी दुष्कर्म पीड़िता, आरोपी बरी
दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म मामले में ट्रायल कोर्ट के 10 साल की सजा के फैसले को पलटते हुए आरोपी को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की एकल पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष नाबालिग होने का सबूत देने में विफल रहा और गवाहों की गवाही भी विरोधाभासी है। अदालत ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट केवल शारीरिक संबंध को परिभाषित कर सकती है सहमति के अभाव को नहीं।
मामला 2014 में ख्याला थाने में दर्ज एफआईआर से जुड़ी है। एफआईआर में 17 साल की पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसके मकान मालिक के जीजा ने दिवाली से एक दिन पहले और 10 नवंबर 2014 की रात 11 बजे उसके साथ दुष्कर्म किया। पीड़िता ने बताया कि आरोपी ने उसे धमकी दी थी कि खुलासा करने पर परिवार को मार देगा। घटना के बाद पीड़िता की मां ने आरोपी को पीटा, लेकिन वह भाग गया। मेडिकल जांच में भी आरोपों की पुष्टि हुई। ट्रायल कोर्ट (तीस हजारी) ने 7 नवंबर 2022 को फैसल को आईपीसी की धारा 342 (गलत तरीके से कैद) और 376 (दुष्कर्म) तथा पॉस्को एक्ट की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया। 17 दिसंबर 2022 को 10 साल की कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई। कोर्ट ने एफएसएल रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें पीड़िता के कपड़ों और स्वाब पर आरोपी का डीएनए मिला। हाईकोर्ट में मुकरे गवाह
हाईकोर्ट में अपील पर न्यायमूर्ति महाजन ने कहा कि गवाह मुकर गए। पीड़िता, भाई और मां ने आरोपी की पहचान से इनकार किया। मां ने कहा कि चेहरा नहीं देखा, सिर्फ संदेह पर नाम लिया। कोर्ट ने कहा कि शिकायत एक दिन देरी से दर्ज हुई, जबकि आरोपी उसी इमारत में रहता था। कोर्ट ने डीएनए रिपोर्ट पर कहा कि यह सिर्फ शारीरिक संबंध साबित करती है, लेकिन सहमति के अभाव को नहीं। अभियोजन पक्ष पीड़िता की नाबालिग उम्र साबित नहीं कर सका, इसलिए पॉस्को लागू नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने सफदरजंग सीजीएचएस लिमिटेड (केंद्रीय सरकारी कर्मचारी आवासीय सोसाइटी) के पुनरुद्धार से जुड़े जालसाजी और साजिश के मामले में दोषी ठहराए गए छह व्यक्तियों की सजा को अपील लंबित रहने तक निलंबित कर दिया है। न्यायमूर्ति अजय दिगपाल की पीठ ने अश्वनी शर्मा, आशुतोष पंत, मनोज वत्स, करमवीर सिंह, सुदर्शन टंडन और नरेंद्र कुमार को जमानत पर रिहा करने के निर्देश दिए। ये सभी सीबीआई की जांच में दोषी पाए गए थे और ट्रायल कोर्ट ने उन्हें विभिन्न धाराओं के तहत सजा सुनाई थी।
मामला सफदरजंग सीजीएचएस लिमिटेड के पुनरुद्धार से जुड़ा है। आरोप है कि सोसाइटी के रिकॉर्ड में जालसाजी कर फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए, जिनके आधार पर दिल्ली के धीरपुर में 5000 वर्ग मीटर भूमि का आवंटन हासिल किया गया। सीबीआई ने आरोप लगाया कि इन व्यक्तियों ने विभिन्न धाराओं के तहत अपराध किया। ट्रायल कोर्ट (स्पेशल जज, पीसी एक्ट, सीबीआई-15, राउज एवेन्यू) ने 13 अक्तूबर 2025 को दोषी ठहराया और 31 अक्तूबर को सजा सुनाई। उसमें अधिकतम पांच साल की सश्रम कारावास और एक लाख रुपये तक का जुर्माना शामिल था। हाईकोर्ट में दाखिल अपीलों में आरोपियों ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि मुख्य रूप से हैंडराइटिंग विशेषज्ञ की राय पर आधारित है, जो कमजोर और बिना पुष्टि के है। फैसले में न्यायमूर्ति दिगपाल ने कहा कि अपील में कई तर्कसंगत मुद्दे हैं, जिनकी जांच अंतिम सुनवाई में की जाएगी।
हाईकोर्ट ने सीजीएचएस घोटाले में 6 दोषियों की सजा की निलंबित
हाईकोर्ट ने सफदरजंग सीजीएचएस लिमिटेड (केंद्रीय सरकारी कर्मचारी आवासीय सोसाइटी) के पुनरुद्धार से जुड़े जालसाजी और साजिश के मामले में दोषी ठहराए गए छह व्यक्तियों की सजा को अपील लंबित रहने तक निलंबित कर दिया है। न्यायमूर्ति अजय दिगपाल की पीठ ने अश्वनी शर्मा, आशुतोष पंत, मनोज वत्स, करमवीर सिंह, सुदर्शन टंडन और नरेंद्र कुमार को जमानत पर रिहा करने के निर्देश दिए। ये सभी सीबीआई की जांच में दोषी पाए गए थे और ट्रायल कोर्ट ने उन्हें विभिन्न धाराओं के तहत सजा सुनाई थी।
मामला सफदरजंग सीजीएचएस लिमिटेड के पुनरुद्धार से जुड़ा है। आरोप है कि सोसाइटी के रिकॉर्ड में जालसाजी कर फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए, जिनके आधार पर दिल्ली के धीरपुर में 5000 वर्ग मीटर भूमि का आवंटन हासिल किया गया। सीबीआई ने आरोप लगाया कि इन व्यक्तियों ने विभिन्न धाराओं के तहत अपराध किया। ट्रायल कोर्ट (स्पेशल जज, पीसी एक्ट, सीबीआई-15, राउज एवेन्यू) ने 13 अक्तूबर 2025 को दोषी ठहराया और 31 अक्तूबर को सजा सुनाई। उसमें अधिकतम पांच साल की सश्रम कारावास और एक लाख रुपये तक का जुर्माना शामिल था। हाईकोर्ट में दाखिल अपीलों में आरोपियों ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि मुख्य रूप से हैंडराइटिंग विशेषज्ञ की राय पर आधारित है, जो कमजोर और बिना पुष्टि के है। फैसले में न्यायमूर्ति दिगपाल ने कहा कि अपील में कई तर्कसंगत मुद्दे हैं, जिनकी जांच अंतिम सुनवाई में की जाएगी।
चार साल पुराने हत्या के मामले में तीन दोषी करार
नई दिल्ली। तीस हजारी कोर्ट ने 2021 में कीर्ति नगर में झगड़े के बाद एक आदमी की हत्या करने के मामले में तीन को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि गवाही पर कोई सवाल नहीं उठाया गया और मेडिकल और फोरेंसिक सबूतों से अपराध की पूरी तरह पुष्टि हुई है। यह टिप्पणियां करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निपुण अवस्थी ने मोहम्मद सलाम, साहिल और समीर को देवा की हत्या के लिए दोषी ठहराया है।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में सफल रहा है। वहीं, बचाव पक्ष किसी भी तरह का उचित संदेह पैदा करने में विफल रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में देवा को लगी 13 चोटों को उसकी मौत के कारण से ठीक से जोड़ा गया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह घटना 3 मई, 2021 को झगड़े के बाद हुई थी। देवा को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। कोर्ट ने दोषियों को सजा के मुद्दे पर सुनने के लिए मामले की सुनवाई 22 जनवरी को तय की है।
वादियों के समझौते पर हाईकोर्ट ने रद्द की एफआईआर, लगाया जुर्माना
हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ के मामले में दोनों पक्षों के बीच हुए आपसी समझौते को आधार बनाते हुए आरोपियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने सरकारी समय और संसाधनों के दुरुपयोग को देखते हुए आरोपियों पर सख्ती दिखाई और प्रत्येक पर 20-20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि पुलिस ने मामले की जांच पूरी कर आरोप-पत्र दाखिल किया था, जिसमें काफी सरकारी मशीनरी और समय लगा। ऐसे में केवल समझौते के आधार पर मामला खत्म करना उचित नहीं होगा, इसलिए जुर्माना लगाना न्यायसंगत है। कोर्ट ने आरोपियों को निर्देश दिया कि जुर्माना राशि छह सप्ताह के भीतर दिल्ली पुलिस बलिदानी अनुदान कोष में जमा कराएं। मामला मयूर विहार फेज-वन थाने में दर्ज हुआ था। शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया था कि डॉ. दविंदर सहित अन्य लोगों ने उसके साथ छेड़छाड़ की। पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट दाखिल की। बाद में याचिकाकर्ताओं (आरोपियों) ने हाईकोर्ट में एफआईआर रद करने की अर्जी दी, दावा किया कि दोनों पक्षों ने आपस में सुलह कर ली है।
इंजीनियर के परिवार को मिलेगा 1.63 करोड़ का मुआवजा
दिल्ली मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल ने सड़क हादसे में मारे गए इंजीनियर की पत्नी और मां को 1.63 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। 2023 में एक सड़क हादसे में 37 वर्षीय इंजीनियर सौरभ गुप्ता की मौत हो गई थी। उनकी कार को एक वाहन ने टक्कर मार दी थी। पीठासीन अधिकारी रुचिका सिंगला मृतक की पत्नी और मां द्वारा दायर मुआवजे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
हादसा 10 मई, 2023 को सुबह करीब 5.30 बजे एक टोल प्लाजा के पास हुआ, जब सौरभ गुप्ता और उनकी पत्नी अपनी कार से दिल्ली से हिमाचल प्रदेश जा रहे थे। आरोप है कि दूसरी तरफ से आ रही एक कार डिवाइडर पार करके उनकी गाड़ी से सीधे टकरा गई। ऐसे में, ट्रिब्यूनल ने माना कि यह हादसा लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुआ था। ट्रिब्यूनल ने पाया कि गुप्ता को गंभीर चोटें आई और बाद में सेप्सिस के कारण उनकी मौत हो गई।
गुप्ता की तरफ से लापरवाही के इंश्योरेंस कंपनी के दावे को खारिज करते हुए, ट्रिब्यूनल ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मरने वाले की गलती थी। ऐसे में, ट्रिब्यूनल ने कहा कि कार ड्राइवर ने यह नहीं बताया कि उसकी गाड़ी दूसरी तरफ की सड़क पर कैसे आ गई। ट्रिब्यूनल ने परिवार वालों को अलग-अलग मदों में 1.63 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया और कार की इंश्योरेंस कंपनी, चोलामंडलम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को मुआवजे की रकम चुकाने का निर्देश दिया।