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Delhi: नए साल का जश्न, पर बुजुर्गों के दिल में खालीपन; दरवाजे पर टिकीं बुजुर्गों की निगाहें

सचिन कुमार, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अनुज कुमार Updated Mon, 29 Dec 2025 07:57 AM IST
सार

नया साल आ रहा है, हर तरफ जश्न की तैयारियां हैं, लेकिन दिल्ली के निहाल विहार स्थित स्वर्ग वृद्धाश्रम में रहने वाले 70 से अधिक बुजुर्गों के चेहरों पर मुस्कान के साथ एक गहरा खालीपन भी छाया है। 85 वर्षीय एमके मेहता जैसे बुजुर्ग दरवाजे की ओर टकटकी लगाए अपनों के इंतजार में हैं।

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नया साल (सांकेतिक तस्वीर) - फोटो : Adobe stock
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विस्तार
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नया साल आए या पुराना जाए, क्या फर्क पड़ता है। जब कोई अपना ही हाल पूछने न आए। दरवाजे की तरफ एकटक देखते हुए वृद्धाश्रम में रहने वाले 85 वर्षीय एमके मेहता ये बातें कहते हैं। वह कुछ कहते हुए रुक जाते हैं और आंखों में आंसू लिए हुए फिर बोलते हैं कि शायद इस बार बेटा या पोता उनसे मिलने आएं। नए साल पर हर तरफ जश्न की तैयारी है लेकिन वृद्ध आश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों के चेहरों पर हल्की मुस्कान के साथ एक खालीपन भी है।

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नए साल का स्वागत करने के लिए आश्रम को सजाया जा रहा। गीत-संगीत की तैयारी है पर इन सबके बीच बुजुर्गों की निगाहें आज भी दरवाजे पर अपनों के इंतजार में टिकी हैं। हर साल वह नए साल पर भगवान से बस एक ही दुआ मांगते हैं कि उनके अपने खुश रहें।
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गीत-संगीत के साथ मनाया जाता है नए साल का जश्न
राजधानी के निहाल विहार स्थित स्वर्ग वृद्धाश्रम में रहने वाले 70 से अधिक बुजुर्गों का यह छोटा-सा संसार हर साल नए साल पर थोड़ी देर के लिए रंगीन हो जाता है, लेकिन वह रंग जल्दी ही फीका भी पड़ जाता है।

आश्रम संयोजक तारकेश्वर सिंह बताते हैं कि नए साल और क्रिसमस के मौके पर आसपास के स्कूलों से बच्चे यहां आते हैं ताकि कुछ खुशियां इनको दी जा सकें। इस आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की उम्र 60 साल से लेकर 95 साल तक है। हर चेहरे के पीछे एक अलग कहानी है। तारकेश्वर ने बताया कि जब बच्चे आते हैं तो यहां की हवा बदल जाती है। बुजुर्गों के चेहरे खिल उठते हैं। कोई बच्चे का हाथ पकड़ लेता है, कोई सिर पर हाथ फेरता है। कुछ देर के लिए उन्हें लगता है कि उनका परिवार लौट आया है।

नए साल का इंतजार, पर हर दिल में सवाल
स्वर्ग वृद्ध आश्रम में देश के अलग-अलग हिस्सों से बुजुर्ग रहने आते हैं। कोई दिल्ली का है, कोई बिहार का, कोई महाराष्ट्र का है। सभी की कहानी अलग है, लेकिन दर्द एक जैसा है। हर आश्रम की अलग अलग कहानियां हैं। स्वर्ग वृद्ध आश्रम साल 2006 से संचालित हो रहा है। तब से लेकर अब तक सैकड़ों बुजुर्ग यहां आकर कुछ सुकून पा चुके हैं।

यह आश्रम डोनेटर्स की मदद से चलता है, लेकिन बुजुर्गों के दिल में जो खालीपन है, वह कोई भर नहीं सकता। संयोजक तारकेश्वर बताते हैं कि त्योहारों के मौके पर यहां आने वाले डोनेटर इन बुजुर्गों के लिए खाने-पीने का इंतजाम करते हैं। कोई फल लाता है, कोई मिठाई, तो कोई कपड़े लाता है। 

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