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दिल्ली शराब घोटाला: ईडी के आरोपपत्र के खिलाफ केजरीवाल की याचिका पर 30 जनवरी को होगी सुनवाई, जानें पूरा मामला

पीटीआई, नई दिल्ली Published by: श्याम जी. Updated Fri, 20 Dec 2024 04:27 PM IST
सार

दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में ईडी के आरोप पत्र पर संज्ञान लेने के आदेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की याचिका पर 30 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। अदालत ने केजरीवाल के वकील के अनुरोध पर मामले को शुरू में 19 फरवरी 2025 के लिए सूचीबद्ध किया था। इसके बाद 30 जनवरी को पोस्ट किया है।

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Delhi High Court will hear Kejriwal plea against taking cognizance of the charge sheet on January 30
अरविंद केजरीवाल - फोटो : X @AamAadmiParty
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दिल्ली हाईकोर्ट 30 जनवरी 2025 को दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में ईडी के आरोपपत्र पर संज्ञान लेने के आदेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वकील ने सूचित किया कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू शुक्रवार को प्रस्तुतियां देने वाले थे, लेकिन वह नहीं पहुंच सके।

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अदालत ने केजरीवाल के वकील के अनुरोध पर मामले को शुरू में 19 फरवरी 2025 के लिए सूचीबद्ध किया था। इसके बाद 30 जनवरी को पोस्ट किया है। केजरीवाल के वकील ने स्थगन के ईडी के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा, 'यहां एक व्यक्ति है, जिसके चुनाव जनवरी में आ रहे हैं और वह मामले पर बहस करने के लिए दूसरे पक्ष का अंतहीन इंतजार कर रहा है।' अदालत ने आप नेता मनीष सिसौदिया की इसी तरह की याचिका पर भी 30 जनवरी 2025 की सुनवाई तय की।
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केजरीवाल और सिसौदिया दोनों ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की है और तर्क दिया है कि ट्रायल कोर्ट ने उनके अभियोजन के लिए मंजूरी के अभाव में आरोपपत्र पर संज्ञान लिया, जो कानून में अनिवार्य है क्योंकि कथित अपराध के समय वे लोक सेवक थे। हालांकि, ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मिल गई है और वह एक हलफनामा दाखिल करेंगे।

केजरीवाल की याचिका पर ईडी ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है। आरोप पत्र पर संज्ञान लेने के निचली अदालत के नौ जुलाई के आदेश को रद्द करने की मांग के अलावा, केजरीवाल ने मामले में सभी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। याचिका में तर्क दिया गया कि केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाना कानून की दृष्टि से खराब था, क्योंकि उनके द्वारा किए गए आधिकारिक कृत्यों से संबंधित आरोपों के बावजूद सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अनिवार्य मंजूरी नहीं थी।

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