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ED Raids: फर्जी डिग्री रैकेट मामले में नौ शहरों में ईडी का छापा, चार महीने पहले हुआ था केस दर्ज
अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली/गाजियाबाद/लखनऊ
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Fri, 07 Nov 2025 06:34 AM IST
सार
ईडी की टीमें हापुड़, मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, उन्नाव, लखनऊ, हरियाणा के सोनीपत और फरीदाबाद के साथ दिल्ली में 16 ठिकानों को खंगाल रही हैं।
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- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
हापुड़ के मोनाड विश्वविद्यालय में फर्जी डिग्री और मार्कशीट रैकेट मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने तीन राज्यों के नौ शहरों में छापे मारे। ईडी की टीमें हापुड़, मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, उन्नाव, लखनऊ, हरियाणा के सोनीपत और फरीदाबाद के साथ दिल्ली में 16 ठिकानों को खंगाल रही हैं। मुख्य आरोपी मोनाड विवि के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा और साझेदार सुधीर गिरि के शैक्षणिक संस्थानों में छानबीन कर रैकेट से जुड़े सबूत जुटाए जा रहे हैं।
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ईडी ने इस मामले में करीब चार माह पूर्व एसटीएफ की जांच से संबंधित जानकारी जुटाने के बाद मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। इसके बाद बृहस्पतिवार को आरोपियों के ठिकानों पर छापे मारे गए।
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ईडी की टीमों ने हापुड़ में मोनाड विवि और उसके अधिकारियों एवं कर्मचारियों के ठिकानों, मेरठ में विजेंद्र सिंह हुड्डा के आवास, हरियाणा में फर्जी डिग्री और मार्कशीट बनाने वाले गिरोह के सदस्यों के ठिकानों पर केंद्रीय बलों के साथ छानबीन कर कई अहम सबूत जुटाए। उन्नाव के सोहरामऊ स्थित सरस्वती मेडिकल कॉलेज में भी ईडी की टीम ने छानबीन की है।
कॉलेज के चेयरमैन सुधीर गिरि हैं, जिनके पश्चिमी उप्र में कई शैक्षणिक संस्थान हैं। अधिकारियों के मुताबिक दोनों मेरठ में साझीदारी में एक शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं। इसके अलावा सरस्वती मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल अखिलेश मौर्य के गोमतीनगर विस्तार स्थित आवास पर भी ईडी की टीम ने दो घंटे तक छानबीन की।
मनी ट्रेल पर नजर
अब ईडी इस पूरे रैकेट के मनी लॉन्ड्रिंग एंगल की जांच कर रही है। आयकर विभाग भी अवैध कमाई के अंतिम ठिकाने और निवेश के स्रोतों की तलाश में जुटा है। माना जा रहा है कि फर्जी डिग्री से कमाई गई रकम को रियल एस्टेट और निजी शिक्षण संस्थानों में लगाया गया था।
2023 में सामने आया था रैकेट
मोनाड विवि का यह फर्जीवाड़ा 2023 में एसटीएफ की जांच के दौरान उजागर हुआ था। जांच में पाया गया था कि विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारी और कर्मचारी फेल या ड्रॉपआउट छात्रों को 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपये तक में फर्जी डिग्री और मार्कशीट बेच रहे थे। ग्राहकों से वॉट्सएप के जरिये दस्तावेज मंगाए जाते थे। भुगतान यूपीआई, नकद या अन्य माध्यमों से लिया जाता था। पूरी रकम मिलने के बाद दो दिन के भीतर कूरियर से नकली डिग्री भेज दी जाती थी