{"_id":"69011675deb1ce658b0598d7","slug":"the-danger-of-stroke-looms-large-over-young-people-faridabad-news-c-26-1-fbd1020-54549-2025-10-29","type":"story","status":"publish","title_hn":"Faridabad News: कम उम्र में बड़ा खतरा, युवाओं पर मंडराता स्ट्रोक का साया","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Faridabad News: कम उम्र में बड़ा खतरा, युवाओं पर मंडराता स्ट्रोक का साया
विज्ञापन
-
- 1
-
Link Copied
विज्ञापन
बदलती जीवनशैली, तनाव, प्रदूषण और अनियमित दिनचर्या के कारण 30 से 40 वर्ष के युवाओं में स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं
नीरज धर पाण्डेय
फरीदाबाद। स्ट्रोक सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रह गई है। बदलती जीवनशैली, तनाव, प्रदूषण और अनियमित दिनचर्या के कारण अब 30 से 40 वर्ष के युवाओं में भी स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल 15 से 18 लाख लोग स्ट्रोक का शिकार हो रहे हैं। प्रति एक लाख आबादी पर 130 से 170 मामलों के साथ स्ट्रोक अब देश में मौत का दूसरा और विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है।
निजी अस्पताल में न्यूरोसर्जन डॉ मुकेश पाण्डेय ने बताया कि माह में ब्रेन स्ट्रोक के 40 से अधिक मरीज पहुंचते हैं। पहले की तुलना में स्ट्रोक के मामलों में युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि पहले जहां 60 से लेकर 80 वर्ष के बुजुर्गों में स्ट्रोक के मामले देखने को मिलते थे, वहीं अब 30 से लेकर 40 साल के युवाओं में भी स्ट्रोक के मामले देखने को मिल रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि स्वस्थ जीवनशैली लोगों में ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को कम सकती है। ऐसे में आवश्यक है कि लोग अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाकर जंक फूड न खाकर स्वस्थ आहार लें। इसके अलावा प्रतिदिन सुबह सैर करने के लिए जरूर निकलें। अपने जीवन में तनाव न लें। स्वस्थ आहार और धूम्रपान से परहेज करने से ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को कम किया जा सकता है।
स्ट्रोक के लक्षण
स्ट्रोक होने की स्थिति में चेहरे का टेढ़ापन, बांह में कमजोरी, और बोलने में कठिनाई शामिल हैं। शुरुआती लक्षणों में देखने में समस्या, संतुलन या समन्वय की कमी, और अचानक बहुत तेज सिरदर्द होना शामिल हो सकते हैं। यदि ये लक्षण दिखाई दें तो तुरंत ऐसे अस्पतालों का रुख करना चाहिए जहां सीटी स्कैन और एमआरआई की सुविधा के साथ न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट की सुविधा उपलब्ध हों।
स्ट्रोक के कारण
डॉक्टरों का कहना है कि स्ट्रोक के बढ़ते मामलों में वायु प्रदूषण एक महत्वपूर्ण कारक है, शहर में प्रदूषण का स्तर अधिक है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप और मधुमेह की स्थितियां भी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाती हैं। वहीं कुछ अन्य कारक जैसे कि उच्च कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, और कुछ दवाएं भी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
तुरंत इलाज न मिलने पर जा सकती है जान
डॉ. मुकेश ने बताया कि स्ट्रोक के बाद के शुरुआती तीन घंटे को गोल्डन पीरियड माना जाता है। उन्होंने समय के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यदि नस में थक्का जमने वाले स्ट्रोक के मरीज को तीन घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचा दिया जाए, तो समय पर इलाज से मस्तिष्क को हुए नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है। डॉक्टर के कहा कि शुरुआती तीन घंटे की अवधि वह अवधि होती है जब क्लॉट-बस्टिंग दवाओं से मरीज को पूरी तरह सामान्य अवस्था में लाया जा सकता है। यदि मरीज तीन घंटे के बाद अस्पताल पहुंचता है, तो उपचार का विकल्प सीमित हो जाता है और चिकित्सकों का ध्यान केवल मरीज की जान बचाने पर केंद्रित रह जाता है। उन्होंने कहा कि स्ट्रोक के लक्षण दिखते ही देरी न करें और तत्काल आपात चिकित्सा सुविधा वाले अस्पताल में पहुंचें, क्योंकि हर मिनट मस्तिष्क की लाखों कोशिकाएं नष्ट हो रही होती हैं।
युवाओं में बढ़ रहे स्ट्रोक के मामले
एक निजी अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. कुणाल बहरानी ने बताया कि बुजुर्गों के साथ-साथ युवाओं में भी ब्रेन स्ट्रोक का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पहले स्ट्रोक को बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह युवा में भी तेजी से फैल रही है। डॉ. बहरानी ने बताया कि पहले जहां अधिकांश मरीज 60 वर्ष से ऊपर के होते थे, अब 30 और 40 उम्र के भी कई मरीज सामने आ रहे हैं। भारत में अब लगभग 15 से 20 प्रतिशत स्ट्रोक के मरीज 45 वर्ष से कम उम्र के हैं। यह आंकड़ा वैश्विक औसत से अधिक है। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली ने हमारी धमनियों को हमारी उम्र से पहले बूढ़ा कर दिया है। लंबे स्क्रीन टाइम, नींद की कमी और तनाव ने युवा पेशेवरों, छात्रों और आईटी कर्मचारियों में जोखिम बढ़ा दिया है।
नीरज धर पाण्डेय
फरीदाबाद। स्ट्रोक सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रह गई है। बदलती जीवनशैली, तनाव, प्रदूषण और अनियमित दिनचर्या के कारण अब 30 से 40 वर्ष के युवाओं में भी स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल 15 से 18 लाख लोग स्ट्रोक का शिकार हो रहे हैं। प्रति एक लाख आबादी पर 130 से 170 मामलों के साथ स्ट्रोक अब देश में मौत का दूसरा और विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है।
निजी अस्पताल में न्यूरोसर्जन डॉ मुकेश पाण्डेय ने बताया कि माह में ब्रेन स्ट्रोक के 40 से अधिक मरीज पहुंचते हैं। पहले की तुलना में स्ट्रोक के मामलों में युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि पहले जहां 60 से लेकर 80 वर्ष के बुजुर्गों में स्ट्रोक के मामले देखने को मिलते थे, वहीं अब 30 से लेकर 40 साल के युवाओं में भी स्ट्रोक के मामले देखने को मिल रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि स्वस्थ जीवनशैली लोगों में ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को कम सकती है। ऐसे में आवश्यक है कि लोग अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाकर जंक फूड न खाकर स्वस्थ आहार लें। इसके अलावा प्रतिदिन सुबह सैर करने के लिए जरूर निकलें। अपने जीवन में तनाव न लें। स्वस्थ आहार और धूम्रपान से परहेज करने से ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को कम किया जा सकता है।
विज्ञापन
विज्ञापन
स्ट्रोक के लक्षण
स्ट्रोक होने की स्थिति में चेहरे का टेढ़ापन, बांह में कमजोरी, और बोलने में कठिनाई शामिल हैं। शुरुआती लक्षणों में देखने में समस्या, संतुलन या समन्वय की कमी, और अचानक बहुत तेज सिरदर्द होना शामिल हो सकते हैं। यदि ये लक्षण दिखाई दें तो तुरंत ऐसे अस्पतालों का रुख करना चाहिए जहां सीटी स्कैन और एमआरआई की सुविधा के साथ न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट की सुविधा उपलब्ध हों।
स्ट्रोक के कारण
डॉक्टरों का कहना है कि स्ट्रोक के बढ़ते मामलों में वायु प्रदूषण एक महत्वपूर्ण कारक है, शहर में प्रदूषण का स्तर अधिक है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप और मधुमेह की स्थितियां भी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाती हैं। वहीं कुछ अन्य कारक जैसे कि उच्च कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, और कुछ दवाएं भी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
तुरंत इलाज न मिलने पर जा सकती है जान
डॉ. मुकेश ने बताया कि स्ट्रोक के बाद के शुरुआती तीन घंटे को गोल्डन पीरियड माना जाता है। उन्होंने समय के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यदि नस में थक्का जमने वाले स्ट्रोक के मरीज को तीन घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचा दिया जाए, तो समय पर इलाज से मस्तिष्क को हुए नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है। डॉक्टर के कहा कि शुरुआती तीन घंटे की अवधि वह अवधि होती है जब क्लॉट-बस्टिंग दवाओं से मरीज को पूरी तरह सामान्य अवस्था में लाया जा सकता है। यदि मरीज तीन घंटे के बाद अस्पताल पहुंचता है, तो उपचार का विकल्प सीमित हो जाता है और चिकित्सकों का ध्यान केवल मरीज की जान बचाने पर केंद्रित रह जाता है। उन्होंने कहा कि स्ट्रोक के लक्षण दिखते ही देरी न करें और तत्काल आपात चिकित्सा सुविधा वाले अस्पताल में पहुंचें, क्योंकि हर मिनट मस्तिष्क की लाखों कोशिकाएं नष्ट हो रही होती हैं।
युवाओं में बढ़ रहे स्ट्रोक के मामले
एक निजी अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. कुणाल बहरानी ने बताया कि बुजुर्गों के साथ-साथ युवाओं में भी ब्रेन स्ट्रोक का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पहले स्ट्रोक को बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह युवा में भी तेजी से फैल रही है। डॉ. बहरानी ने बताया कि पहले जहां अधिकांश मरीज 60 वर्ष से ऊपर के होते थे, अब 30 और 40 उम्र के भी कई मरीज सामने आ रहे हैं। भारत में अब लगभग 15 से 20 प्रतिशत स्ट्रोक के मरीज 45 वर्ष से कम उम्र के हैं। यह आंकड़ा वैश्विक औसत से अधिक है। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली ने हमारी धमनियों को हमारी उम्र से पहले बूढ़ा कर दिया है। लंबे स्क्रीन टाइम, नींद की कमी और तनाव ने युवा पेशेवरों, छात्रों और आईटी कर्मचारियों में जोखिम बढ़ा दिया है।