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Gurugram News: पहाड़ की व्याख्या संबंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार का आग्रह

Noida Bureau नोएडा ब्यूरो
Updated Fri, 19 Dec 2025 01:30 AM IST
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Request for reconsideration of Supreme Court order relating to interpretation of mountain
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-100 मीटर से कम ऊंचे पहाड़ को पहाड़ की श्रेणी में नहीं रखने से खत्म हो जाएगी 90 प्रतिशत अरावली
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- गुरुग्राम निवासी सेवानिवृत्त आईएफएस डॉ. आरपी बलवान ने सुप्रीम कोर्ट में भेजा इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन
संवाद न्यूज एजेंसी
गुरुग्राम। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को एक सुनवाई के दौरान 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को पहाड़ की श्रेणी में नहीं रखने का आदेश दिया था। पर्यावरणविदों का मानना है कि पहाड़ की यह व्याख्या के लागू होने से विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ के दायरे से बाहर हो जाएगा। अरावली पर काम करने वाले कई संगठन सुप्रीम कोर्ट के पहाड़ की व्याख्या वाले आदेश को लेकर से पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।
भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त वन संरक्षक और अरावली पर किताबें लिखने वाले गुरुग्राम निवासी डाॅ. आरपी बलवान ने सुप्रीम कोर्ट से इस व्याख्या पर पुनर्विचार करने के लिए इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन (आईओ) भेजा है। इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन एक कानूनी शब्द है जिसका मतलब है किसी मुकदमे या कानूनी कार्यवाही के बीच में अदालत से किसी खास मुद्दे पर अंतरिम (अस्थायी) आदेश या राहत पाने के लिए किया गया औपचारिक अनुरोध। इसमें उन्होंने अरावली की ऐतिहासिक और वर्तमान स्थिति और इसके फायदों की व्याख्या करते हुए अरावली के नष्ट होने से होने वाले पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान को रेखांकित किया है।
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आरपी बलवान ने बताया कि अरावली पर्वतमाला 692 किलोमीटर तक गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैली है। यह लगभग तीन अरब साल पुरानी है। नई व्याख्या से अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा कानूनी सुरक्षा खो सकता है। यह स्थिति खनन, रियल एस्टेट और निजी परियोजनाओं के लिए रास्ता खोलती है।
अरावली विरासत जन अभियान के तहत हस्ताक्षर अभियान
पीपल फॉर अरावली संगठन की संस्थापक नीलम अहलूवालिया ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 20 नवंबर 2025 के फैसले से अरावली विरासत जन अभियान चलाने वाले लोग बेहद निराश हैं। भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला की परिभाषा और खनन के कारण होनी मृत्यु से बचाएं इस शीर्षक के साथ लोगोें से ईमेल याचिका पर हस्ताक्षर की अपील की जा रही है। यह याचिका भारत के सर्वोच्च न्यायालय, राजनीतिक नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित है, जिसमें उनसे अरावली की नई एकसमान परिभाषा को रद्द करने का आग्रह किया गया है ताकि भारत की पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की जा सके।
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