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Delhi: कम उपस्थिति पर परीक्षा से वंचित नहीं होंगे विधि छात्र, HC ने सभी महाविद्यालयों के लिए जारी किए निर्देश

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: विजय पुंडीर Updated Tue, 04 Nov 2025 06:42 AM IST
सार

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह व जस्टिस अमित शर्मा की पीठ ने स्वत: संज्ञान याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि कम हाजिरी के कारण किसी विद्यार्थी को परीक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता।

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Law students will not be deprived of exams due to low attendance
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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देश में विधि पाठ्यक्रम के किसी विद्यार्थी को अब कम हाजिरी के कारण परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा सकेगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को यह व्यवस्था दी और सभी विधि महाविद्यालयों में अनिवार्य उपस्थिति की जरूरत से संबंधित कई निर्देश जारी किए। साथ ही, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को उपस्थिति मानकों में बदलाव करने का आदेश दिया।

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जस्टिस प्रतिभा एम सिंह व जस्टिस अमित शर्मा की पीठ ने स्वत: संज्ञान याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि कम हाजिरी के कारण किसी विद्यार्थी को परीक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता। 2016 में विधि छात्र सुषांत रोहिल्ला की आत्महत्या के मामले में हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान याचिका शुरू की थी। रोहिल्ला ने जरूरी उपस्थिति न होने के कारण सेमेस्टर परीक्षा देने से रोके जाने के बाद 10 अगस्त, 2016 को आत्महत्या की थी। पीठ ने कहा, सभी पक्षों की दलीलें सुनने और सामने आई वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए अदालत का मानना है कि सामान्य शिक्षा, विशेष रूप से विधि शिक्षा में ऐसे कठोर नियम नहीं होने चाहिए, जिनसे विद्यार्थी का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो।
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परीक्षा से रोकने पर सुशांत ने दी थी जान : सुशांत रोहिल्ला एमिटी विवि में विधि पाठ्यक्रम के तीसरे वर्ष के छात्र थे। परीक्षा से रोके जाने के बाद खुदकुशी करने वाले सुशांत ने सुसाइड नोट में लिखा था कि वे निराश महसूस कर रहे हैं और जीवित नहीं रहना चाहते। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2016 में मौजूदा याचिका पर सुनवाई शुरू की थी, लेकिन मार्च, 2017 में इसे हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था। बार काउंसिल ने 2024 में हलफनामे में अदालत को बताया था कि 65%उपस्थिति अनिवार्य होने के नियम थे, लेकिन बाद में इसे बढ़ा कर 70% कर दिया गया था।

उपस्थिति के मानकों में बदलाव करे बार
हाईकोर्ट ने कहा, बार काउंसिल को छात्र निकायों, अभिभावकों और शिक्षकों सहित हितधारकों के साथ शीघ्रता से परामर्श करना चाहिए। इसके बाद अनिवार्य उपस्थिति जरूरतों के कारण परीक्षा न दे पाने पर विद्यार्थियों पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए मानकों में बदलाव करना चाहिए। पीठ ने कहा कि विद्यार्थियों के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा सुनिश्चित करनी होगी। किसी भी विधि महाविद्यालय, विश्वविद्यालय या संस्थान को बार की ओर से निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक उपस्थिति के मानदंड लागू करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

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