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Air Pollution: प्रदूषण बिगाड़ रहा मानसिक स्वास्थ्य, लोगों में बढ़ रही एकाग्रता की कमी, विशेषज्ञों ने चेताया

सिमरन, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Digvijay Singh Updated Mon, 29 Dec 2025 04:06 AM IST
सार

राजधानी में कई महीनों से लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। इसका लोगों का प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषण का जहर न केवल लोगों के शरीर तक सीमित रहा, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। 

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Pollution is worsening mental health leading to increased concentration problems among people experts express
फाइल फोटो - फोटो : self
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विस्तार
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राजधानी में कई महीनों से लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। इसका लोगों का प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषण का जहर न केवल लोगों के शरीर तक सीमित रहा, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। विशेषज्ञों ने खराब हवा के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह न सिर्फ शारीरिक सेहत बल्कि मानसिक सेहत को भी नुकसान पहुंचा रही है, जिससे बच्चों में कम आईक्यू लेवल, याददाश्त में दिक्कतें और ध्यान अभाव सक्रियता विकार (एडीएचडी) होने की संभावना बढ़ रही है।

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रिसर्च-आधारित सबूतों का हवाला देते हुए मेडिकल प्रैक्टिशनर्स ने कहा कि जहरीली हवा डिप्रेशन, बढ़ी हुई चिंता, कमजोर याददाश्त और दिमाग के विकास में रुकावट पैदा कर रही है। लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। मनोचिकित्सक डॉ. अंचल मिगलानी ने बताया कि सांस, दिल और एलर्जी से जुड़ी बीमारियां लोगों का ध्यान खींचती हैं, लेकिन वायु प्रदूषण का मानसिक स्वास्थ्य पर असर भी उतना ही चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि रिसर्च से प्रदूषण और बढ़ते कॉग्निटिव (सोचने, याद रखने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता में कमी) और न्यूरोटिक विकारों (अत्यधिक चिंता, डर और भावनाएं व्यक्ति के दैनिक जीवन को प्रभावित) के बीच एक साफ लिंक दिखता है। इसमें बच्चे, बुजुर्ग और कम आय वाले लोग सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। उनके अनुसार, प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अल्जाइमर (याददाश्त में कमी) और पार्किंसन (डोपामाइन बनाने वाली कोशिकाओं को धीरे-धीरे मारने का कारण) जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदूषित माहौल में बड़े होने वाले बच्चों का आईक्यू लेवल कम होता है, याददाश्त में दिक्कतें आती हैं और उनमें एडीएचडी होने की संभावना ज्यादा होती है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक ऐसे माहौल में रहने से कोर्टिसोल का लेवल बढ़ जाता है।
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प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी इमरजेंसी
एम्स में मनोचिकित्सक डॉ. दीपिका दहिमा ने कहा कि वायु प्रदूषण का संकट जितना पर्यावरणीय है, उतना ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी एक इमरजेंसी है। उन्होंने बताया कि बारीक कणों और जहरीली गैसों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से एंग्जायटी, डिप्रेशन, सोचने-समझने की क्षमता में कमी और क्रोनिक स्ट्रेस बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों में न्यूरल डेवलपमेंट में रुकावट और सीखने में दिक्कतें होती हैं, जबकि वयस्कों में चिड़चिड़ापन, इमोशनल थकान और फैसले लेने में दिक्कत होती है।

दिल्ली में अवसाद और घबराहट 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा
डॉ. मिगलानी ने बताया कि दिल्ली के निवासियों ने कम एक्यूआई लेवल वाले शहरों की तुलना में अवसाद और घबराहट की 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा दरें हैं। सोशल आइसोलेशन, बाहरी एक्टिविटी में कमी और लगातार स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं इन प्रभावों को और बढ़ा देती हैं। मनोवैज्ञानिक फिजा खान ने बताया कि लोग अक्सर प्रदूषण को फेफड़ों की समस्या के रूप में बात करते हैं, लेकिन इसका असर न केवल छाती पर, बल्कि दिमाग पर भी पड़ता है।

बढ़ते प्रदूषण से बढ़ रहा स्क्रीन टाइम का ट्रेंड
डॉ. जितेंद्र नागपाल ने कहा कि दिल्ली के बच्चे दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित माहौल में बड़े हो रहे हैं। ऐसे में इसका असर उनके फेफड़ों में कहीं ज्यादा होता है। उन्होंने कहा कि आजकल कई बच्चों में व्यवहार और सीखने से जुड़ी कई तरह की समस्याएं जैसे ध्यान लगाने में दिक्कत, चिड़चिड़ापन और पढ़ाई में खराब परफॉर्मेंस देखी जा रही हैं।

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