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India-Pak: 'बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति'; जानें क्या है उन पंक्तियों का मतलब, जो एयर मार्शल ने सुनाई

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: आकाश कुमार Updated Mon, 12 May 2025 03:38 PM IST
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सार

India Pakistan Tension: भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच आज भारतीय सेना के तीनों विंग के महानिदेशक स्तर के अधिकारियों ने लगातार दूसरे दिन प्रेस वार्ता की। प्रेस वार्ता के दौरान एयर मार्शल एके भारती ने रामचरित मानस का दोहा भी कहा। अक्सर इस तरह के प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछ लिए जाते हैं।
ऐसे में आइए जानते हैं उस दोहे का क्या मतलब है।
 

India Pakistan Tension: Meaning of those Ramcharitmanas lines which Air Marshal AK Bharti recited during PC
DGMO Press Conference on India Pakistan Tension - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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Indian DGMO Press Conference: भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच आज भारतीय सेना के तीनों विंग के महानिदेशक स्तर के अधिकारियों ने लगातार दूसरे दिन प्रेस वार्ता की। इसमें दोनों देश के बीच की वर्तमान स्थिति पर जानकारी साझा की गई। वार्ता के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए एयर मार्शल ने रामचरित मानस की दो पंक्तियां सुनाईं, जोकि इस प्रकार हैं -

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बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।


अक्सर इस तरह के प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पूछ लिए जाते हैं। चूंकि रामचरित मानस के इस दोहे का इस्तेमाल ऐसे महत्वपूर्ण समय पर किया गया है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। ऐसे में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को इन पंक्तियों का अर्थ जान लेना चाहिए।
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शिव तांडव स्त्रोतम्, रामधारी सिंह दिनकर और रामचरित मानस के दोहे से क्या संदेश दिया जा रहा?

आज प्रेस वार्ता शुरू करने से पहले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की लोकप्रिय कविता 'कृष्ण की चेतावनी' की पंक्तियां चलाई गईं, जोकि इस प्रकार हैं -

हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूं,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूं।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।


वहीं, बीते दिन हुई प्रेस वार्ता शुरू करने से पहले शिव तांडव स्त्रोतम् चलाया गया था। इन सभी के माध्यम से पड़ोसी देश को कठोर संदेश दिया जा रहा है। संदेश पर स्पष्टता देते हुए एयर मार्शल एके भारती ने रामचरित मानस का एक दोहा दोहराया।

बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।


यह दोहा उस दृश्य से जुड़ा है, जब लंका चढ़ाई के समय श्रीराम ने विनयपूर्वक समुद्र से मार्ग देने की गुहार लगाई। समुद्र से आग्रह करते हुए श्रीराम को तीन दिन बीत गए। लेकिन समुद्र पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ, तब भगवान राम समझ गए कि अब अपनी शक्ति से उसमें भय उत्पन्न करना अनिवार्य है। वहीं, लक्ष्मण पहले ही श्रीराम के बाण की अमोघ शक्ति से परिचित थे। उन्हें मालूम था कि श्रीराम का बाण समुद्र को सुखा देगा और सेना सुविधा से उस पार शत्रु के गढ़ लंका में पहुंच जाएगी।

श्रीराम ने शस्त्र उठाकर दी थी समुद्र को उचित सीख

प्रभु श्रीराम समुद्र के चरित्र को देखकर ये समझ गए कि अब आग्रह से काम नहीं चलेगा, बल्कि भय से काम होगा। तभी श्रीराम ने अपने महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, जिससे समुद्र के अन्दर ऐसी आग लग गई कि उसमें वास करने वाले जीव-जन्तु जलने लगे। तब समुद्र प्रभु श्रीराम के समक्ष प्रकट होकर अपनी रक्षा के लिए याचना करने लगा और कहने लगा कि वह पंच महाभूतों में एक होने के कारण जड़ है। अतः श्रीराम ने शस्त्र उठाकर उसे उचित सीख दी थी। 

पड़ोसी देश को कड़ा संदेश

दोहा कहने से पहले एयर मार्शल ने कहा कि समझदार के लिए इशारा ही काफी है। संदेश रामचरित मानस की इन पंक्तियों के माध्यम से समझा जा सकता है। इन पंक्तियों के माध्मय से एयर मार्शल ने पड़ोसी देश को कड़ा संदेश दिया है।
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