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Success Story: पिता की ‘न’ से की नई शुरुआत, उधार के पैसों से बनाई वेबसाइट, आज है करोड़ों का कारोबार
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Mon, 22 Dec 2025 06:00 AM IST
सार
इनसराफ डॉट कॉम के संस्थापक रघुनंदन सराफ को अपने पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए एक नया विचार आया। पारिवारिक विरोध और लोगों के मजाक को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने केवल तीन कर्मचारियों के साथ शुरुआत की, और आज उनका कारोबार कई देशों में फैला हुआ है।
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रघुनंदन सराफ
- फोटो : Insta-Saraf Furniture
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विस्तार
जयपुर से करीब 250 किलोमीटर दूर सरदारशहर राजस्थान का एक छोटा-सा कस्बा है, जो रंगीन फ्रेस्को पेंटिंग और नक्काशीदार लकड़ी के काम से सजी अपनी शानदार हवेलियों के लिए जाना जाता है। आज भी यह जगह अपनी अनोखी शीशम की लकड़ी के लिए मशहूर है। यहीं पर एक पुराने हवेलीनुमा घर के आंगन में कुछ कारीगर दिन भर शीशम की लकड़ी तराशते और एक दुबला पतला लड़का उनके बीच खड़ा होकर टकटकी लगाए उन्हें देखता रहता।
वर्षों बाद वही लड़का बड़े शहर पहुंचा। अच्छे कॉलेज में दाखिला लिया, अच्छी डिग्री हासिल की और लग गया नौकरी की जद्दोजहद में। पर उसके भीतर अब भी अपने आंगन की उस घिसाई-रंदाई की आवाज गूंजती थी। एक दिन उस लड़के के मन में विचार आया कि अगर दुनिया में बाकी चीजें ऑनलाइन हो सकती हैं, तो फिर हमारे कारीगरों की मेहनत क्यों नहीं? कुछ दोस्त हंसे भी और बोले फर्नीचर भी ऑनलाइन बिकेगा भला? मगर उसने इन पर ध्यान न देते हुए एक वेबसाइट बनवाई। शुरुआती कुछ दिनों तक कभी ऑर्डर ही नहीं आते, कभी आते तो भरोसे की कमी के चलते ग्राहक उत्पाद वापस कर देते। तकनीकी दिक्कतें भी आईं, और परिवार के भीतर भी फैसले को लेकर सवाल उठने लगे। लेकिन हर चुनौती को उसने एक सीख की तरह लिया।
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और आज उसकी पहल ने न सिर्फ पारंपरिक कारीगरों को नई पहचान दी, बल्कि बिजनेस को एक वैश्विक ब्रांड के रूप में स्थापित किया। आज लोग उस लड़के को इनसराफ डॉट कॉम के संस्थापक रघुनंदन सराफ के रूप में जानते हैं। रघुनंदन की कहानी युवाओं के लिए एक संदेश है कि सीमित संसाधनों के बावजूद न सिर्फ बड़े सपने देखे जा सकते हैं, बल्कि उन्हें पूरा भी किया जा सकता है।
पिता को नहीं था भरोसा
रघुनंदन सराफ ने सरदारशहर के एक स्थानीय स्कूल से कक्षा छह तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बारहवीं तक की पढ़ाई जयपुर के रयान इंटरनेशनल स्कूल से की। रघुनंदन ने बारहवीं के बाद दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम किया और 2009 में एमबीए पूरा किया। उनका परिवार लगभग चालीस वर्षों से लकड़ी से बने फर्नीचर का कारोबार कर रहा था। व्यापार चल तो रहा था, पर वह सीमित ग्राहकों और पुरानी सोच की दीवारों में कैद था। उनके पिता और चाचा देश के अलग-अलग हिस्सों में फर्नीचर बेचते थे। 1998 तक परिवार ने फर्नीचर का एक्सपोर्ट करना भी शुरू कर दिया था। छोटे शहर से बिजनेस को बड़े पैमाने पर बढ़ाना आसान नहीं था। इसीलिए उन्होंने अपने पिता को सुझाव दिया कि धंधे में तकनीक का इस्तेमाल किया जाए और ऑनलाइन बिक्री शुरू की जाए, पर पिता ने मना कर दिया, क्योंकि उन्हें बेटे पर भरोसा नहीं था।
ये भी पढ़ें: Success Story: कम उम्र में घर छोड़ा, वेटर तक बने, अवसाद से जूझ कर बनाया करोड़ों का ब्रांड
हजार कर्मचारियों की टीम
रघुनंदन के भीतर बिजनेस में कुछ नया आजमाने का जज्बा था। वह इसे रिटेल तक ले जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने दोस्तों से 50 हजार रुपये उधार लिए और 2014 में फैक्टरी के एक कोने में छोटा-सा ऑफिस बनाकर ऑनलाइन फर्नीचर बेचने का काम शुरू किया। इसके लिए उन्होंने एक वेबसाइट बनवाई। उनका ऑफिस अब भी सरदारशहर में ही है, लेकिन पहले का वह छोटा-सा कोना अब एक बड़े और आधुनिक ऑफिस में बदल चुका है। शुरुआत में जहां सिर्फ तीन लोग काम करते थे, वहीं आज कंपनी में करीब एक हजार कर्मचारी काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि उनकी कंपनी में सैकड़ों कर्मचारी एलजीबीटी समुदाय से हैं।
बिजनेस के दो मॉडल
रघुनंदन सराफ का सफर चुनौतियों से भरा रहा, क्योंकि सरदारशहर जैसे छोटे शहर में लॉजिस्टिक्स जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहद सीमित थीं। उन्होंने अलग-अलग लॉजिस्टिक्स कंपनियों को समझाया, उन्हें भरोसा दिलाया और धीरे-धीरे उन्हें वहां से काम शुरू करने के लिए तैयार किया। इसके साथ ही ऑनलाइन ऑर्डर, बिक्री और फर्नीचर को सुरक्षित तरीके से ग्राहकों तक पहुंचाना भी एक चुनौती थी। इसके लिए उन्होंने एक सक्षम और भरोसेमंद टीम बनाई। आज वह 6,000 से ज्यादा उत्पादों का कारोबार करते हैं। इनसराफ दो बिजनेस मॉडल पर चलता है, पहला डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर, जिसमें वेबसाइट के जरिये सीधे ग्राहकों को फर्नीचर बेचा जाता है और दूसरा बिजनेस-टू-बिजनेस, जिसके तहत होटल और रिसॉर्ट्स को फर्नीचर सप्लाई की जाती है।
ये भी पढ़ें: Success Story: इंजीनियर से ऑस्कर 2026 तक का तय किया सफर, फिल्म होमबाउंड ने नीरज घेवाण को दिलाई वैश्विक पहचान
युवाओं को सीख
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वर्षों बाद वही लड़का बड़े शहर पहुंचा। अच्छे कॉलेज में दाखिला लिया, अच्छी डिग्री हासिल की और लग गया नौकरी की जद्दोजहद में। पर उसके भीतर अब भी अपने आंगन की उस घिसाई-रंदाई की आवाज गूंजती थी। एक दिन उस लड़के के मन में विचार आया कि अगर दुनिया में बाकी चीजें ऑनलाइन हो सकती हैं, तो फिर हमारे कारीगरों की मेहनत क्यों नहीं? कुछ दोस्त हंसे भी और बोले फर्नीचर भी ऑनलाइन बिकेगा भला? मगर उसने इन पर ध्यान न देते हुए एक वेबसाइट बनवाई। शुरुआती कुछ दिनों तक कभी ऑर्डर ही नहीं आते, कभी आते तो भरोसे की कमी के चलते ग्राहक उत्पाद वापस कर देते। तकनीकी दिक्कतें भी आईं, और परिवार के भीतर भी फैसले को लेकर सवाल उठने लगे। लेकिन हर चुनौती को उसने एक सीख की तरह लिया।
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धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और आज उसकी पहल ने न सिर्फ पारंपरिक कारीगरों को नई पहचान दी, बल्कि बिजनेस को एक वैश्विक ब्रांड के रूप में स्थापित किया। आज लोग उस लड़के को इनसराफ डॉट कॉम के संस्थापक रघुनंदन सराफ के रूप में जानते हैं। रघुनंदन की कहानी युवाओं के लिए एक संदेश है कि सीमित संसाधनों के बावजूद न सिर्फ बड़े सपने देखे जा सकते हैं, बल्कि उन्हें पूरा भी किया जा सकता है।
पिता को नहीं था भरोसा
रघुनंदन सराफ ने सरदारशहर के एक स्थानीय स्कूल से कक्षा छह तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बारहवीं तक की पढ़ाई जयपुर के रयान इंटरनेशनल स्कूल से की। रघुनंदन ने बारहवीं के बाद दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम किया और 2009 में एमबीए पूरा किया। उनका परिवार लगभग चालीस वर्षों से लकड़ी से बने फर्नीचर का कारोबार कर रहा था। व्यापार चल तो रहा था, पर वह सीमित ग्राहकों और पुरानी सोच की दीवारों में कैद था। उनके पिता और चाचा देश के अलग-अलग हिस्सों में फर्नीचर बेचते थे। 1998 तक परिवार ने फर्नीचर का एक्सपोर्ट करना भी शुरू कर दिया था। छोटे शहर से बिजनेस को बड़े पैमाने पर बढ़ाना आसान नहीं था। इसीलिए उन्होंने अपने पिता को सुझाव दिया कि धंधे में तकनीक का इस्तेमाल किया जाए और ऑनलाइन बिक्री शुरू की जाए, पर पिता ने मना कर दिया, क्योंकि उन्हें बेटे पर भरोसा नहीं था।
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हजार कर्मचारियों की टीम
रघुनंदन के भीतर बिजनेस में कुछ नया आजमाने का जज्बा था। वह इसे रिटेल तक ले जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने दोस्तों से 50 हजार रुपये उधार लिए और 2014 में फैक्टरी के एक कोने में छोटा-सा ऑफिस बनाकर ऑनलाइन फर्नीचर बेचने का काम शुरू किया। इसके लिए उन्होंने एक वेबसाइट बनवाई। उनका ऑफिस अब भी सरदारशहर में ही है, लेकिन पहले का वह छोटा-सा कोना अब एक बड़े और आधुनिक ऑफिस में बदल चुका है। शुरुआत में जहां सिर्फ तीन लोग काम करते थे, वहीं आज कंपनी में करीब एक हजार कर्मचारी काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि उनकी कंपनी में सैकड़ों कर्मचारी एलजीबीटी समुदाय से हैं।
बिजनेस के दो मॉडल
रघुनंदन सराफ का सफर चुनौतियों से भरा रहा, क्योंकि सरदारशहर जैसे छोटे शहर में लॉजिस्टिक्स जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहद सीमित थीं। उन्होंने अलग-अलग लॉजिस्टिक्स कंपनियों को समझाया, उन्हें भरोसा दिलाया और धीरे-धीरे उन्हें वहां से काम शुरू करने के लिए तैयार किया। इसके साथ ही ऑनलाइन ऑर्डर, बिक्री और फर्नीचर को सुरक्षित तरीके से ग्राहकों तक पहुंचाना भी एक चुनौती थी। इसके लिए उन्होंने एक सक्षम और भरोसेमंद टीम बनाई। आज वह 6,000 से ज्यादा उत्पादों का कारोबार करते हैं। इनसराफ दो बिजनेस मॉडल पर चलता है, पहला डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर, जिसमें वेबसाइट के जरिये सीधे ग्राहकों को फर्नीचर बेचा जाता है और दूसरा बिजनेस-टू-बिजनेस, जिसके तहत होटल और रिसॉर्ट्स को फर्नीचर सप्लाई की जाती है।
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युवाओं को सीख
- छोटे शहर से भी बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं।
- परंपरा और नवाचार को मिलाकर सफलता हासिल करें।
- चुनौतियों को अवसर में बदलने का हौसला रखें।
- सीखते रहने और बदलते रहने की आदत सफलता दिलाती है।
- लगन और मेहनत से कोई भी लक्ष्य पाया जा सकता है।