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टी. सतीश कुमार: किसान परिवार में जन्मे, कम उम्र में संभाला कारोबार; पनीर से लिखी कामयाबी की कहानी
न्यूज डेस्क अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शुभम कुमार
Updated Mon, 10 Nov 2025 06:41 AM IST
सार
खेलने-कूदने की उम्र में ही टी. सतीश कुमार ने कारोबार में कदम रखा। अनुभव की कमी, सीमित संसाधन और शिक्षा के अभाव जैसी अनेक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने मेहनत और हौसले के बल पर अपने छोटे से कारोबार को राष्ट्रीय स्तर के ब्रांड में बदल दिया।
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टी. सतीश कुमार
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
यह नब्बे के दशक की बात है, जब वैश्वीकरण तेजी से फैल रहा था। भारत में पेप्सी, मैक्डोनाल्ड जैसी वैश्विक कंपनियां अपने आउटलेट खोलकर बाजार में कदम जमा रही थीं। इसी दौर में दक्षिण भारत का एक ऐसा इलाका भी था, जहां पनीर का उपयोग कम प्रचलित था। ऐसे समय में एक नौजवान अपनी पढ़ाई छोड़कर बंद होने की कगार पर पहुंचे पारिवारिक दूध व्यवसाय को संभालता है, उसे दोबारा खड़ा करता है और पनीर व दूध से बने अन्य उत्पादों का स्वाद अपने इलाके के लोगों तक पहुंचाता है। हम बात कर रहे हैं मिल्की मिस्ट ब्रांड के संस्थापक टी. सतीश कुमार की। सतीश कुमार की कहानी उन आन्त्रप्रेन्योर्स के लिए एक उदाहरण है, जो वक्त की नजाकत को समझते हुए अवसरों का बेहतर इस्तेमाल करना सीखना चाहते हैं।
सिर्फ आठवीं तक पढ़े
तमिलनाडु के इरोड के पास एक छोटे से गांव में टी. सतीश कुमार का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनके पिता खेती के साथ-साथ अपने भाई के साथ मिलकर दूध का छोटा-सा कारोबार भी चलाते थे। जब सतीश आठवीं कक्षा में थे, तभी उनके चाचा का निधन हो गया और दूध का कारोबार लगभग बंद होने की स्थिति में पहुंच गया। इससे घर की आर्थिक हालत और खराब हो गई। ऐसे समय में परिवार की मदद करने के लिए सतीश ने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने का निर्णय लिया और परिवार ने उनकी रुचि को देखते हुए इस पर आपत्ति नहीं जताई।
स्वाद का फॉर्मूला
परिवार की रजामंदी के साथ सतीश ने महज 16 साल की उम्र में कारोबार संभाल लिया। व्यवसाय की समझ उन्हें परिवार से विरासत में मिली थी, फिर भी उनका शुरुआती सफर चुनौतियों से भरा रहा। काफी कोशिशों के बावजूद दूध के कारोबार से उन्हें अधिक मुनाफा नहीं हो रहा था। वे इसी सोच में उलझे रहते कि गुणवत्ता से समझौता किए बिना कारोबार को कैसे बढ़ाया जाए, ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर सके।
इसी दौरान एक दिन उन्होंने देखा कि बंगलूरू में उनके दूध का एक खरीदार, उन्हीं से दूध लेकर पनीर बनाता है और उसे होटलों में बेचता है। यह देखकर सतीश को कारोबार आगे बढ़ाने का विचार आया। लेकिन चुनौती यह थी कि उन्हें दूध से पनीर बनाना नहीं आता था, और उस समय न इंटरनेट था, न कोई गाइड बुक। कई लोगों से पूछताछ और लगातार प्रयोग करने के बाद उन्होंने पनीर बनाना सीख लिया, हालांकि शुरुआत में सही स्वाद और बनावट हासिल नहीं हो पाई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। लगातार प्रयास और मेहनत के बाद अंततः वे बेहतर स्वाद और उत्तम बनावट वाला पनीर बनाने में सफल हो गए।
मिल्की मिस्ट ब्रांड को किया लॉन्च
साल 1993 में सतीश पहली बार 10 किलो पनीर एक बैग में भरकर बंगलूरू ले गए। अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर वे जल्द ही बंगलूरू के होटलों को प्रतिदिन 50 से 100 किलो पनीर सप्लाई करने लगे। वर्ष 1995 तक उन्होंने दूध का व्यापार पूरी तरह छोड़कर पनीर उत्पादन पर पूरा ध्यान देना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे चेन्नई, बंगलूरू और कोयंबटूर में मिल्की मिस्ट का पनीर लोकप्रिय होने लगा और बाजार में अपनी मजबूत जगह बनाने लगा। पनीर की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उन्होंने वर्ष 1998 में बैंक से 10 लाख रुपये का लोन लेकर एक सेमी-ऑटोमैटिक पनीर प्लांट स्थापित किया। लगभग दो साल बाद, वर्ष 2010 में उन्होंने एक टेलीविजन विज्ञापन के माध्यम से मिल्की मिस्ट ब्रांड को आधिकारिक रूप से लॉन्च किया, जिससे उनके उत्पाद को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उनका सपना पूरा हुआ। इसके बाद कंपनी तेजी से आगे बढ़ती गई। आज मिल्की मिस्ट के कई प्रकार के डेयरी उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं और वित्तीय वर्ष 2025 में कंपनी ने लगभग 2,300 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है।
युवाओं को सीख
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सिर्फ आठवीं तक पढ़े
तमिलनाडु के इरोड के पास एक छोटे से गांव में टी. सतीश कुमार का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनके पिता खेती के साथ-साथ अपने भाई के साथ मिलकर दूध का छोटा-सा कारोबार भी चलाते थे। जब सतीश आठवीं कक्षा में थे, तभी उनके चाचा का निधन हो गया और दूध का कारोबार लगभग बंद होने की स्थिति में पहुंच गया। इससे घर की आर्थिक हालत और खराब हो गई। ऐसे समय में परिवार की मदद करने के लिए सतीश ने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने का निर्णय लिया और परिवार ने उनकी रुचि को देखते हुए इस पर आपत्ति नहीं जताई।
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स्वाद का फॉर्मूला
परिवार की रजामंदी के साथ सतीश ने महज 16 साल की उम्र में कारोबार संभाल लिया। व्यवसाय की समझ उन्हें परिवार से विरासत में मिली थी, फिर भी उनका शुरुआती सफर चुनौतियों से भरा रहा। काफी कोशिशों के बावजूद दूध के कारोबार से उन्हें अधिक मुनाफा नहीं हो रहा था। वे इसी सोच में उलझे रहते कि गुणवत्ता से समझौता किए बिना कारोबार को कैसे बढ़ाया जाए, ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर सके।
इसी दौरान एक दिन उन्होंने देखा कि बंगलूरू में उनके दूध का एक खरीदार, उन्हीं से दूध लेकर पनीर बनाता है और उसे होटलों में बेचता है। यह देखकर सतीश को कारोबार आगे बढ़ाने का विचार आया। लेकिन चुनौती यह थी कि उन्हें दूध से पनीर बनाना नहीं आता था, और उस समय न इंटरनेट था, न कोई गाइड बुक। कई लोगों से पूछताछ और लगातार प्रयोग करने के बाद उन्होंने पनीर बनाना सीख लिया, हालांकि शुरुआत में सही स्वाद और बनावट हासिल नहीं हो पाई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। लगातार प्रयास और मेहनत के बाद अंततः वे बेहतर स्वाद और उत्तम बनावट वाला पनीर बनाने में सफल हो गए।
मिल्की मिस्ट ब्रांड को किया लॉन्च
साल 1993 में सतीश पहली बार 10 किलो पनीर एक बैग में भरकर बंगलूरू ले गए। अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर वे जल्द ही बंगलूरू के होटलों को प्रतिदिन 50 से 100 किलो पनीर सप्लाई करने लगे। वर्ष 1995 तक उन्होंने दूध का व्यापार पूरी तरह छोड़कर पनीर उत्पादन पर पूरा ध्यान देना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे चेन्नई, बंगलूरू और कोयंबटूर में मिल्की मिस्ट का पनीर लोकप्रिय होने लगा और बाजार में अपनी मजबूत जगह बनाने लगा। पनीर की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उन्होंने वर्ष 1998 में बैंक से 10 लाख रुपये का लोन लेकर एक सेमी-ऑटोमैटिक पनीर प्लांट स्थापित किया। लगभग दो साल बाद, वर्ष 2010 में उन्होंने एक टेलीविजन विज्ञापन के माध्यम से मिल्की मिस्ट ब्रांड को आधिकारिक रूप से लॉन्च किया, जिससे उनके उत्पाद को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उनका सपना पूरा हुआ। इसके बाद कंपनी तेजी से आगे बढ़ती गई। आज मिल्की मिस्ट के कई प्रकार के डेयरी उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं और वित्तीय वर्ष 2025 में कंपनी ने लगभग 2,300 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है।
युवाओं को सीख
- उम्र केवल एक संख्या है और यह जीवन में आपकी क्षमता, अनुभव या जज्बे को परिभाषित नहीं करती है।
- दुनिया की कोई भी मजबूरी आपके हौसले से बड़ी नहीं हो सकती।
- धैर्य, लगन व मेहनत के बदौलत,
- दुनिया में कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
- हर समस्या अपने साथ समाधान भी लाती है, बस देखने की नजर चाहिए।
- अपने लक्ष्य को ऊंचा रखिए और तब तक मत रुकिए, जब तक उसे हासिल न कर लें।