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TUTA: तेजपुर विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमितता के आरोप, दो वर्षों से नहीं खरीदी गई एक भी असमिया किताब

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: आकाश कुमार Updated Wed, 29 Oct 2025 04:09 PM IST
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सार

Tezpur University Row: टीयूटीए ने तेजपुर यूनिवर्सिटी प्रशासन पर वित्तीय अनियमितता और असमिया भाषा की उपेक्षा के आरोप लगाए हैं। संगठन ने कहा कि दो वर्षों से एक भी असमिया पुस्तक नहीं खरीदी गई, जबकि राशि स्वीकृत थी। टीयूटीए ने स्वतंत्र जांच की मांग की है।
 

Tezpur University Row: TUTA Alleges Fund Misuse, No Assamese Books Bought in Two Years
तेजपुर विश्वविद्यालय - फोटो : एक्स
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विस्तार
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Tezpur University Row: तेजपुर यूनिवर्सिटी में वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाते हुए टीचर्स एसोसिएशन (TUTA) ने बुधवार को दावा किया कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक भी असमिया किताब नहीं खरीदी है। संगठन ने इसे "स्थानीय भाषा की पूरी तरह उपेक्षा" बताया है।

दिल्ली के चुनिंदा प्रकाशकों से खरीद का आरोप

टीयूटीए ने अपने बयान में कहा कि कुलपति प्रो. शंभू नाथ सिंह ने केवल कुछ चुनिंदा दिल्ली स्थित प्रकाशकों से किताबें खरीदने की अनुमति दी, जिससे संपूर्ण खरीद प्रक्रिया प्रभावित हुई। संगठन ने सार्वजनिक निधियों के दुरुपयोग की संभावना बताते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

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6.5 करोड़ का आवंटन, 4.56 करोड़ खर्च सिर्फ पुस्तकों पर

एसोसिएशन ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में विश्वविद्यालय को यूजीसी की ग्रांट-इन-एड के तहत पूंजीगत परिसंपत्तियों (Capital Assets) के लिए 6.5 करोड़ रुपये का आवंटन मिला था। यह राशि किताबों, जर्नल्स, आईसीटी इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्रयोगशालाओं और कैंपस विकास पर खर्च की जानी थी। इसमें से 5.72 करोड़ रुपये सिर्फ पुस्तकों और जर्नल्स की खरीद के लिए स्वीकृत हुए, जिनमें से 4.56 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो कुल पूंजीगत निधि का लगभग 70 प्रतिशत है।

असमिया विभाग को स्वीकृत राशि का उपयोग नहीं हुआ

टीयूटीए ने दावा किया कि इस भारी खर्च के बावजूद असमिया भाषा की एक भी पुस्तक नहीं खरीदी गई, जबकि असमिया विभाग के लिए 2.91 लाख रुपये की राशि 146 पुस्तकों की खरीद हेतु स्वीकृत थी। एसोसिएशन ने कहा कि लगातार दो वित्तीय वर्षों (2024–25 और 2025–26) में भी असमिया पुस्तकों की खरीद नहीं की गई, जबकि इसके लिए कई बार अनुरोध किया गया था।

स्थानीय भाषा की अनदेखी पर गंभीर सवाल

एसोसिएशन ने कहा, “पुस्तक खरीद में असमिया भाषा की यह अनदेखी विश्वविद्यालय प्रशासन की प्राथमिकताओं और नीयत पर गंभीर सवाल खड़े करती है।”

टीयूटीए के अनुसार, अधिकतर धनराशि दिल्ली के कुछ सीमित प्रकाशकों को दी गई, जो असमिया पुस्तकों की आपूर्ति नहीं करते।

वाइस चांसलर पर पक्षपात और हितों के टकराव का आरोप

टीयूटीए का कहना है कि कुलपति ने व्यक्तिगत रूप से विक्रेताओं के चयन को प्रभावित किया, जिससे विश्वविद्यालय के निर्धारित मानदंडों के तहत पंजीकृत अन्य योग्य फर्मों को दरकिनार कर दिया गया।

एसोसिएशन ने आरोप लगाया कि यह “जानबूझकर की गई सीमित सप्लायर नीति” न केवल पक्षपात और हितों के टकराव को दर्शाती है, बल्कि सार्वजनिक निधियों के दुरुपयोग की आशंका भी उत्पन्न करती है।

असमिया पुस्तकों की अनुपस्थिति ‘सांस्कृतिक उपेक्षा’ का प्रतीक

टीयूटीए ने कहा कि “दो लगातार वर्षों तक असमिया पुस्तकों की अनुपस्थिति क्षेत्रीय समावेशन और भाषाई प्रतिनिधित्व की अनदेखी है, जो असम के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के शैक्षणिक और सांस्कृतिक मूल्यों को कमजोर करती है।”

एसोसिएशन ने इस पूरे मामले की स्वतंत्र और पारदर्शी जांच की मांग की है, ताकि जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।

छात्रों और स्टाफ के साथ जारी विरोध प्रदर्शन

सितंबर मध्य से विश्वविद्यालय का माहौल तनावपूर्ण है। छात्रों ने आरोप लगाया था कि राज्य में गायक जुबिन गर्ग के निधन पर शोक के समय कुलपति ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई।

22 सितंबर को छात्रों और कुलपति के बीच तीखी बहस के बाद स्थिति इतनी बिगड़ी कि कुलपति को मौके से जाना पड़ा। इसके बाद टीयूटीए, गैर-शैक्षणिक कर्मचारी संघ और छात्र समुदाय संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

पर्यावरणीय नुकसान के आरोप भी सामने आए

इस सप्ताह की शुरुआत में टीयूटीए और छात्र संगठनों ने कथित वनों की कटाई और पर्यावरणीय क्षति के खिलाफ रैली निकाली। आरोप है कि प्रशासन ने ‘सुंदरता बढ़ाने’ के नाम पर पीले बांस सहित कई पेड़ों की कटाई करवाई और अत्यधिक घास लगाने का कार्य शुरू किया, जिसे पर्यावरणीय दृष्टि से असंतुलित बताया गया है।

कुलपति का बयान: “संवाद के लिए हमेशा तैयार”

आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रो. शंभू नाथ सिंह ने कहा कि कुछ लोगों ने “शायद अनजाने में तथ्यों को गलत प्रस्तुत किया” है और वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाया है।

उन्होंने कहा, “मैं सभी हितधारकों के साथ ईमानदार और सम्मानजनक संवाद के लिए पूरी तरह खुला हूं। विश्वविद्यालय समुदाय की चुनौतियों के समाधान के लिए संवाद ही सबसे बेहतर रास्ता है।”

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