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टीवी ने हमें बदला या हमने टीवी को? दूरदर्शन से डिजिटल तक का सफर; जानिए चर्चित सितारों की जुबानी

Kiran Jain किरण जैन
Updated Fri, 21 Nov 2025 11:57 AM IST
सार

World Television Day: हर साल 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस मनाया जाता है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1996 में इसलिए तय किया था ताकि दुनिया को याद रहे कि टेलीविजन सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि समाज और सोच को प्रभावित करने वाला एक अहम माध्यम है।

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World Television Day: Manoj Bajpayee Aasif Sheikh and Himani Shivpuri Talks about changes In Tv Industry
आसिफ शेख-हिमानी शिवपुरी-मनोज बाजपेयी - फोटो : इंस्टाग्राम
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विस्तार
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भारत में टीवी की असली कहानी 7 जुलाई 1984 से शुरू हुई। इसी दिन देश का पहला टीवी सीरियल ‘हम लोग’ दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। तब टीवी और उस पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम सिर्फ घर-परिवार को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को जोड़ देते थे। समय बदला, तकनीक बदली और देखने का तरीका भी बदला। दूरदर्शन का सामूहिक दौर कब केबल टीवी में बदला और कब मोबाइल की स्क्रीन पर आ गया यह पता ही नहीं चला। फिर भी सवाल वही बना रहा कि टीवी बदल रहा है या हम बदल गए हैं। इसी सफर को समझने के लिए हमने उन कलाकारों से बात की जिन्होंने टीवी को अलग-अलग रूप में जिया है। उनकी बातों में केवल यादें नहीं थीं, बल्कि एक बदलते समय की साफ तस्वीर भी थी। पढ़ें उनकी जुबानी...

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World Television Day: Manoj Bajpayee Aasif Sheikh and Himani Shivpuri Talks about changes In Tv Industry
आसिफ शेख - फोटो : इंस्टाग्राम

टीवी वाला एक्टर सुनकर गर्व होता है: आसिफ शेख
देश के पहले टीवी शो ‘हम लोग’ ने टीवी को असल पहचान दी। उस समय कंटेंट ही असली ताकत था। दूरदर्शन के बाद केबल टीवी और अब डिजिटल युग... किसी एक दौर को चुनना मुश्किल है, क्योंकि तीनों ने मिलकर ही मुझे आज का कलाकार बनाया है। ‘हम लोग’ से शुरुआत हुई और आज ‘भाबीजी घर पर हैं’ को 11 साल हो गए हैं। टीवी ने मुझे सिर्फ काम नहीं दिया बल्कि सुरक्षा, पहचान और एक भरोसे की जगह दी। लोग मुझे टीवी वाला एक्टर कहते हैं और मुझे इस बात पर गर्व है। अगर टीवी न होता तो शायद मेरे पास अलग-अलग किरदार चुनने का इतना विकल्प नहीं होता। डिजिटल कितना भी आगे जाए..., टीवी एक बहुत बड़ा मंच हमेशा रहेगा। कंटेंट हो तो टीवी कभी खत्म नहीं होगा'।
 

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मनोज बाजपेयी - फोटो : इंस्टाग्राम

टीवी ने सहारा दिया, आज चुनौती दे रहा है: मनोज बाजपेयी
‘एक दौर ऐसा भी था जब सिनेमाघरों में परिवारों के लिए फिल्में बननी लगभग बंद हो गई थीं। तब टेलीविजन आया और उसने दर्शकों को सहारा दिया। हालांकि, अब स्थिति बदल गई है। ओटीटी बहुत बड़े स्तर पर सामने आया है। ऐसे में टीवी को अपने कंटेंट पर नए तरीके से सोचना होगा। कहानी कहने का अंदाज बदलना होगा, तभी टीवी एक माध्यम के रूप में टिक पाएगा।  ‘बैंडिट क्वीन’ करने के बाद कुछ समय तक मेरे पास रास्ता साफ नहीं था, तब भी टीवी ने ही मुझे काम दिया। मेरा पहला टीवी शो महेश भट्ट साहब का ‘स्वाभिमान’ था। मैंने इम्तियाज अली के साथ भी टीवी किया और हंसल मेहता के साथ भी। मैं हमेशा मानता हूं कि मेरे लिए माध्यम महत्वपूर्ण नहीं है, अभिनय महत्वपूर्ण है। मैं टीवी पर भी एक्टिंग करूंगा, फिल्मों में भी और डिजिटल पर भी।’

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हिमानी शिवपुरी - फोटो : इंस्टाग्राम

एक टीवी और पूरा परिवार, यादगार था वो दौर: हिमानी शिवपुरी
‘एक ही टीवी होता था और पूरा परिवार उसके सामने इकट्ठा होकर कार्यक्रम देखता था। कौन सा कार्यक्रम देखना है इस पर छोटी बहस भी होती थी लेकिन वही बहस हमें जोड़ती भी थी। उस एक टीवी ने घर में एक तरह की एकजुटता पैदा की थी। हम साथ में हंसते थे, भावुक होते थे… वह सामूहिक अनुभव अब मोबाइल के दौर में कम हो गया है। आज जो टीवी पर आता है वही मोबाइल पर भी पहुंच जाता है। देखने के तरीके बदल गए हैं लेकिन टीवी पर आने की अहमियत आज भी वही है। मेरी पहचान और मेरा अस्तित्व आज भी उसी प्लेटफॉर्म से जुड़ा है जिसने मुझे घर-घर पहुंचाया। टीवी भरोसेमंद माध्यम रहा है और मुझे लगता है आने वाले समय में इसमें एक नई क्रांति दिखाई देगी।’

क्या टीवी अब भी ‘हम लोग’ का माध्यम है?
जब तीनों कलाकारों की बातें साथ रखी जाती हैं तो टीवी का पूरा चरित्र सामने आता है। कहीं पुरानी यादें, कहीं संघर्ष तो कहीं उम्मीद और चुनौती। कुल मिलाकर विश्व टेलीविजन दिवस इसी प्रश्न को फिर से सामने लाता है - क्या टीवी अब भी ‘हम लोग’ का माध्यम है? समय बदला, स्क्रीन बदली, लेकिन ऑडियंस की चाह अब भी वही है - एक अच्छी कहानी। शायद यही कारण है कि हर शाम किसी न किसी घर में टीवी अब भी चालू होता है और कोई कहानी अब भी परिवार का हिस्सा बन जाती है।

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