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Bhiwani News: अब भूकंप से पृथ्वी को हुए नुकसान का लगाया जा सकेगा सटीक पता, शोध को मिला पेटेंट
संवाद न्यूज एजेंसी, भिवानी
Updated Thu, 16 Oct 2025 01:10 AM IST
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प्रो दिनेश कुमार मदान
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भिवानी। अब भूकंप से पृथ्वी को हुए नुकसान का सटीक आकलन लगाया जा सकेगा। चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी के गणित विभाग के प्राध्यापकों ने ‘डाटा प्रोसेसिंग डिवाइस’ नामक एक विशेष मॉडल विकसित किया है जो भूकंप से पृथ्वी के भीतर हुई क्षति का सटीक आंकलन करने में सक्षम है। इस अनोखे आविष्कार को भारत सरकार ने 30 जून को दस वर्षों के लिए पेटेंट प्रदान किया है।
दरअसल भूकंप के दौरान पृथ्वी के भीतर दो तरह से चट्टानें टकराती हैं-कुछ ऊपरी-निचली दिशा में और कुछ समान रूप से एक-दूसरे से। इन टक्करों से उत्पन्न तरंगों के चलते पृथ्वी को हुए वास्तविक नुकसान का पता लगाना अब तक कठिन कार्य रहा है। इस जटिलता को सुलझाने के लिए विश्वविद्यालय के गणित विभाग की वैज्ञानिकों की टीम ने विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुमार मदान के मार्गदर्शन में यह डिवाइस तैयार की। इस शोध टीम में अगिन कुमारी, रितु गोयल और साहिल कुकरेजा शामिल रहे, जिन्होंने लगातार मेहनत कर यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।
इस डाटा प्रोसेसिंग डिवाइस से यह पता लगाया जा सकेगा कि भूकंप के दौरान पृथ्वी की आंतरिक परतों को कितना नुकसान हुआ, तरंगों की दिशा क्या रही और उनकी तीव्रता कितनी थी। चट्टानों के टकराव के इस अध्ययन को वैज्ञानिक भाषा में ‘प्लेट टैक्ट्रोनिक थ्योरी’ कहा जाता है। इस आविष्कार से भूविज्ञान, भूकंपीय अध्ययन और संगणकीय गणित (कम्प्यूटेशनल मैथेमेटिक्स) के क्षेत्र में शोध को नई दिशा मिलने की उम्मीद है।
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. दीप्ति धर्माणी ने इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा कि यह पेटेंट विश्वविद्यालय में विकसित हो रही अनुसंधान एवं नवाचार संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि गणित जैसे विषय का प्रयोगात्मक विज्ञान और वास्तविक जीवन की समस्याओं के समाधान में उपयोग संस्थान के लिए गर्व की बात है। इस आविष्कार से न केवल विज्ञान जगत बल्कि समाज को भी लाभ मिलेगा।
ये है डाटा प्रोसेसिंग डिवाइस
गणित विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुमार मदान के अनुसार यह एक मैथमेटिक्स फार्मूला आधारित उपकरण है। इसमें भूकंप स्थल से जुड़े डाटा को संग्रहित कर विश्लेषित किया जाता है। इस डिवाइस से यह पता लगाया जा सकता है कि भूकंपीय तरंगों पर कितना प्रभाव पड़ा और भूमि के भीतर कितना नुकसान हुआ। इसके लिए एक निश्चित गणनात्मक प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसके आधार पर डाटा की रीडिंग से नुकसान का सटीक मूल्यांकन संभव होता है।
भूकंप आने से पहले पता लगाने पर भी किया जा रहा शोध
विश्वविद्यालय की टीम अब एक नए आविष्कार पर कार्य कर रही है जिसके माध्यम से भूकंप आने से पहले उसकी संभावना, तीव्रता और प्रभाव क्षेत्र का पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। इस शोध को ‘स्टेटिस्टिक मॉडलिंग’ नाम दिया गया है। इसके संबंध में शोध-पत्र भी प्रकाशित किया जा चुका है। प्राध्यापकों की टीम को उम्मीद है कि जल्द ही इस शोध में भी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल होगी।

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दरअसल भूकंप के दौरान पृथ्वी के भीतर दो तरह से चट्टानें टकराती हैं-कुछ ऊपरी-निचली दिशा में और कुछ समान रूप से एक-दूसरे से। इन टक्करों से उत्पन्न तरंगों के चलते पृथ्वी को हुए वास्तविक नुकसान का पता लगाना अब तक कठिन कार्य रहा है। इस जटिलता को सुलझाने के लिए विश्वविद्यालय के गणित विभाग की वैज्ञानिकों की टीम ने विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुमार मदान के मार्गदर्शन में यह डिवाइस तैयार की। इस शोध टीम में अगिन कुमारी, रितु गोयल और साहिल कुकरेजा शामिल रहे, जिन्होंने लगातार मेहनत कर यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।
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इस डाटा प्रोसेसिंग डिवाइस से यह पता लगाया जा सकेगा कि भूकंप के दौरान पृथ्वी की आंतरिक परतों को कितना नुकसान हुआ, तरंगों की दिशा क्या रही और उनकी तीव्रता कितनी थी। चट्टानों के टकराव के इस अध्ययन को वैज्ञानिक भाषा में ‘प्लेट टैक्ट्रोनिक थ्योरी’ कहा जाता है। इस आविष्कार से भूविज्ञान, भूकंपीय अध्ययन और संगणकीय गणित (कम्प्यूटेशनल मैथेमेटिक्स) के क्षेत्र में शोध को नई दिशा मिलने की उम्मीद है।
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. दीप्ति धर्माणी ने इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा कि यह पेटेंट विश्वविद्यालय में विकसित हो रही अनुसंधान एवं नवाचार संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि गणित जैसे विषय का प्रयोगात्मक विज्ञान और वास्तविक जीवन की समस्याओं के समाधान में उपयोग संस्थान के लिए गर्व की बात है। इस आविष्कार से न केवल विज्ञान जगत बल्कि समाज को भी लाभ मिलेगा।
ये है डाटा प्रोसेसिंग डिवाइस
गणित विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुमार मदान के अनुसार यह एक मैथमेटिक्स फार्मूला आधारित उपकरण है। इसमें भूकंप स्थल से जुड़े डाटा को संग्रहित कर विश्लेषित किया जाता है। इस डिवाइस से यह पता लगाया जा सकता है कि भूकंपीय तरंगों पर कितना प्रभाव पड़ा और भूमि के भीतर कितना नुकसान हुआ। इसके लिए एक निश्चित गणनात्मक प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसके आधार पर डाटा की रीडिंग से नुकसान का सटीक मूल्यांकन संभव होता है।
भूकंप आने से पहले पता लगाने पर भी किया जा रहा शोध
विश्वविद्यालय की टीम अब एक नए आविष्कार पर कार्य कर रही है जिसके माध्यम से भूकंप आने से पहले उसकी संभावना, तीव्रता और प्रभाव क्षेत्र का पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। इस शोध को ‘स्टेटिस्टिक मॉडलिंग’ नाम दिया गया है। इसके संबंध में शोध-पत्र भी प्रकाशित किया जा चुका है। प्राध्यापकों की टीम को उम्मीद है कि जल्द ही इस शोध में भी महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल होगी।