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Chandigarh-Haryana News: तलाक अपील लंबित रहते दूसरी शादी रचाई, हाईकोर्ट ने की युवक की जेल में विदाई
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-15 दिन के भीतर यमुनानगर के सीजेएम के समक्ष आत्मसमर्पण का आदेश
-तलाक की मांग वाली याचिका थी लंबित, हाईकोर्ट ने तीन माह की सुनाई सजा
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पहली पत्नी की तलाक आदेश के खिलाफ अपील लंबित रहते दूसरी शादी करने वाले युवक को सबक सिखाते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने उसे तीन महीने के साधारण कारावास और 2,000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाते हुए उसकी जेल विदाई का आदेश दिया है। कोर्ट ने युवक को 15 दिन के भीतर यमुनानगर के सीजेएम के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। जस्टिस अलका सरीन ने न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत पहली पत्नी द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।
न्यायालय ने पति की माफी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसने जानबूझकर हिंदू विवाह अधिनियम का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने कहा कि कानून के शासन की पवित्रता और इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के निर्लज्ज उल्लंघन और गैर-अनुपालन को हल्के में नहीं लिया जा सकता। पति का कृत्य और आचरण सही नहीं है, समय को पीछे नहीं लाया जा सकता और इससे जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। प्रतिवादी-पति के आचरण ने याचिकाकर्ता-पत्नी द्वारा दायर अपील को निष्फल बना दिया है। याचिकाकर्ता-पत्नी और उसकी बेटी ने किसी भी सुलह प्रक्रिया में भाग लेने का मौका भी गंवा दिया है। इस जोड़े का विवाह 2012 में हुआ था। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की याचिका पर पारिवारिक न्यायालय ने 2020 में उनका विवाह विच्छेद कर दिया। इसके बाद पत्नी ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 13 अगस्त, 2020 को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने तलाक के आदेश पर रोक लगा दी। उसने जनवरी 2021 में दूसरी शादी कर ली। इसके बाद पत्नी ने अदालत की अवमानना की याचिका दायर की। कोर्ट में पति ने स्वीकार किया कि उसने दूसरी महिला से शादी कर ली है। इस पर कोर्ट ने युवक को दूसरी शादी करने के जुर्म में कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई।
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अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पहली पत्नी की तलाक आदेश के खिलाफ अपील लंबित रहते दूसरी शादी करने वाले युवक को सबक सिखाते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने उसे तीन महीने के साधारण कारावास और 2,000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाते हुए उसकी जेल विदाई का आदेश दिया है। कोर्ट ने युवक को 15 दिन के भीतर यमुनानगर के सीजेएम के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। जस्टिस अलका सरीन ने न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत पहली पत्नी द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।
न्यायालय ने पति की माफी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसने जानबूझकर हिंदू विवाह अधिनियम का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने कहा कि कानून के शासन की पवित्रता और इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के निर्लज्ज उल्लंघन और गैर-अनुपालन को हल्के में नहीं लिया जा सकता। पति का कृत्य और आचरण सही नहीं है, समय को पीछे नहीं लाया जा सकता और इससे जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। प्रतिवादी-पति के आचरण ने याचिकाकर्ता-पत्नी द्वारा दायर अपील को निष्फल बना दिया है। याचिकाकर्ता-पत्नी और उसकी बेटी ने किसी भी सुलह प्रक्रिया में भाग लेने का मौका भी गंवा दिया है। इस जोड़े का विवाह 2012 में हुआ था। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की याचिका पर पारिवारिक न्यायालय ने 2020 में उनका विवाह विच्छेद कर दिया। इसके बाद पत्नी ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 13 अगस्त, 2020 को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने तलाक के आदेश पर रोक लगा दी। उसने जनवरी 2021 में दूसरी शादी कर ली। इसके बाद पत्नी ने अदालत की अवमानना की याचिका दायर की। कोर्ट में पति ने स्वीकार किया कि उसने दूसरी महिला से शादी कर ली है। इस पर कोर्ट ने युवक को दूसरी शादी करने के जुर्म में कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई।
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