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दिव्यांगों के अधिकारों को उतनी ही गंभीरता से लें, जितने अन्य मौलिक अधिकार : हाईकोर्ट
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-दिव्यांग आरक्षण को सक्रियता से लागू करें, न कि दफ्तरी उदासीनता से मुरझाने दिया जाए
-करनाल वन विभाग के नेत्र दिव्यांग कर्मी की याचिका मंजूर करते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणी
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक नेत्र दिव्यांग कर्मचारी की याचिका को मंजूर करते हुए दिव्यांगजनों के अधिकारों पर राज्य की सांविधानिक जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग नागरिकों के अधिकारों को उतनी ही गंभीरता से लागू किया जाना चाहिए जितनी अन्य मौलिक अधिकारों को किया जाता है।
याचिकाकर्ता भीम सिंह की नियुक्ति हरियाणा वन विभाग करनाल में जून 1998 में माली के पद पर हुई थी। उसने 2003 से फारेस्ट गार्ड और 2013 से फारेस्टर के पद पर दिव्यांग कोटा के तहत पदोन्नति की मांग की थी। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य की उदारता का पैमाना यह नहीं कि वह ताकतवर के प्रति कैसा व्यवहार करता है बल्कि यह कि वह उन लोगों को कितना ऊपर उठाता है जिन्हें परिस्थितियों ने कमजोर बना दिया है। समानता कोई यांत्रिक सिद्धांत नहीं बल्कि मानवीय प्रतिबद्धता है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में समान अवसर का अर्थ तभी सार्थक है, जब राज्य दिव्यांग आरक्षण को सक्रिय रूप से लागू करे न कि उसे दफ्तरी उदासीनता के कारण मुरझाने दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि जहां कानून द्वारा आरक्षण निर्धारित है, वहां उसे लागू करना राज्य का सांविधानिक दायित्व है। इसके विपरीत हरियाणा सरकार न तो दिव्यांग कोटा के रिक्त पदों की गिनती की न रोस्टर बनाया और न ही वर्षों तक इसे लागू करने का प्रयास। अदालत ने इसे अनुच्छेद 14 और 16 दोनों का प्रत्यक्ष उल्लंघन बताया।
सरकार की दलील अस्वीकार
कोर्ट ने राज्य की इस दलील को भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया कि याची शारीरिक मानकों या प्रशिक्षण की शर्तें पूरी नहीं करता। अंतत: हाईकोर्ट ने याची को दिव्यांग कोटा के तहत दो चरणों में पदोन्नति देने का आदेश दिया। याची को वर्ष 2003 से फारेस्ट गार्ड और वर्ष 2013 से फारेस्टर के पद का लाभ मिलेगा। साथ ही वेतन निर्धारण, वरिष्ठता और अन्य सभी प्रतिफल लाभ भी प्रदान किए जाएंगे। बकाया राशि पर 6% वार्षिक ब्याज लागू होगा। राज्य को चार सप्ताह के भीतर आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।
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-करनाल वन विभाग के नेत्र दिव्यांग कर्मी की याचिका मंजूर करते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणी
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चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक नेत्र दिव्यांग कर्मचारी की याचिका को मंजूर करते हुए दिव्यांगजनों के अधिकारों पर राज्य की सांविधानिक जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग नागरिकों के अधिकारों को उतनी ही गंभीरता से लागू किया जाना चाहिए जितनी अन्य मौलिक अधिकारों को किया जाता है।
याचिकाकर्ता भीम सिंह की नियुक्ति हरियाणा वन विभाग करनाल में जून 1998 में माली के पद पर हुई थी। उसने 2003 से फारेस्ट गार्ड और 2013 से फारेस्टर के पद पर दिव्यांग कोटा के तहत पदोन्नति की मांग की थी। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य की उदारता का पैमाना यह नहीं कि वह ताकतवर के प्रति कैसा व्यवहार करता है बल्कि यह कि वह उन लोगों को कितना ऊपर उठाता है जिन्हें परिस्थितियों ने कमजोर बना दिया है। समानता कोई यांत्रिक सिद्धांत नहीं बल्कि मानवीय प्रतिबद्धता है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में समान अवसर का अर्थ तभी सार्थक है, जब राज्य दिव्यांग आरक्षण को सक्रिय रूप से लागू करे न कि उसे दफ्तरी उदासीनता के कारण मुरझाने दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि जहां कानून द्वारा आरक्षण निर्धारित है, वहां उसे लागू करना राज्य का सांविधानिक दायित्व है। इसके विपरीत हरियाणा सरकार न तो दिव्यांग कोटा के रिक्त पदों की गिनती की न रोस्टर बनाया और न ही वर्षों तक इसे लागू करने का प्रयास। अदालत ने इसे अनुच्छेद 14 और 16 दोनों का प्रत्यक्ष उल्लंघन बताया।
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सरकार की दलील अस्वीकार
कोर्ट ने राज्य की इस दलील को भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया कि याची शारीरिक मानकों या प्रशिक्षण की शर्तें पूरी नहीं करता। अंतत: हाईकोर्ट ने याची को दिव्यांग कोटा के तहत दो चरणों में पदोन्नति देने का आदेश दिया। याची को वर्ष 2003 से फारेस्ट गार्ड और वर्ष 2013 से फारेस्टर के पद का लाभ मिलेगा। साथ ही वेतन निर्धारण, वरिष्ठता और अन्य सभी प्रतिफल लाभ भी प्रदान किए जाएंगे। बकाया राशि पर 6% वार्षिक ब्याज लागू होगा। राज्य को चार सप्ताह के भीतर आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।