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भरण-पोषण का उद्देश्य आत्मनिर्भरता, आजीवन आर्थिक सहारा नहीं : हाईकोर्ट
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-गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग को लेकर पत्नी की याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज
-मासिक भरण-पोषण राशि का कम से कम 10 प्रतिशत कौशल सुधार और आत्म-विकास के लिए उपयोग का आदेश
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि भरण-पोषण का उद्देश्य पत्नी को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करना है न कि उसे आजीवन आर्थिक सहारा देना। कोर्ट ने कहा कि महिला की गरिमा, आत्मसम्मान और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह राशि दी जाती है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण की राशि का एक हिस्सा कौशल विकास और आत्म-सुधार पर खर्च किया जाना चाहिए ताकि महिला दीर्घकालिक रूप से आर्थिक रूप से सशक्त बन सके।
जस्टिस आलोक जैन ने अपने फैसले में एक अजीब प्रवृत्ति की ओर भी ध्यान दिलाया जिसमें बिना किसी ठोस और न्यायोचित कारण के अलग रह रही पत्नियां भरण-पोषण की मांग को अंत तक ले जाती हैं। न्यायालय ने दोहराया कि भरण-पोषण उसी स्थिति में दिया जाना चाहिए, जब पत्नी उचित कारण से अलग रह रही हो और स्वयं अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो। अपने विस्तृत आदेश में जस्टिस जैन ने निर्देश दिया कि 15,000 मासिक भरण-पोषण राशि का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा पत्नी द्वारा अपने व्यावसायिक कौशल में सुधार और आत्म-विकास के लिए उपयोग किया जाए। अदालत ने कहा कि इससे ही यह सुनिश्चित होगा कि भरण-पोषण कानून की वास्तविक मंशा पूरी हो और यह आत्मनिर्भरता की ओर एक पुल बने, न कि अंतिम लक्ष्य।
एक महिला ने भरण-पोषण राशि बढ़ाने की मांग की थी। फैमिली कोर्ट पहले ही भरण-पोषण की राशि 7,500 से बढ़ाकर पति की नेट सैलरी का एक-तिहाई, यानी 15,000 प्रति माह कर चुकी थी। इससे असंतुष्ट होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में पति की ग्रॉस सैलरी का एक-तिहाई देने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर ऐसा कोई ठोस आधार नहीं पाया, जिससे भरण-पोषण में और वृद्धि को उचित ठहराया जा सके। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रही कि उसकी वास्तविक आवश्यकताओं या खर्चों में ऐसा कोई बढ़ोतरी हुई है, जो पहले से दी जा रही राशि से पूरी नहीं हो पा रही हो। इसी के साथ हाईकोर्ट ने भरण-पोषण बढ़ाने की याचिका को खारिज कर दिया।
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-मासिक भरण-पोषण राशि का कम से कम 10 प्रतिशत कौशल सुधार और आत्म-विकास के लिए उपयोग का आदेश
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि भरण-पोषण का उद्देश्य पत्नी को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करना है न कि उसे आजीवन आर्थिक सहारा देना। कोर्ट ने कहा कि महिला की गरिमा, आत्मसम्मान और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह राशि दी जाती है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण की राशि का एक हिस्सा कौशल विकास और आत्म-सुधार पर खर्च किया जाना चाहिए ताकि महिला दीर्घकालिक रूप से आर्थिक रूप से सशक्त बन सके।
जस्टिस आलोक जैन ने अपने फैसले में एक अजीब प्रवृत्ति की ओर भी ध्यान दिलाया जिसमें बिना किसी ठोस और न्यायोचित कारण के अलग रह रही पत्नियां भरण-पोषण की मांग को अंत तक ले जाती हैं। न्यायालय ने दोहराया कि भरण-पोषण उसी स्थिति में दिया जाना चाहिए, जब पत्नी उचित कारण से अलग रह रही हो और स्वयं अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो। अपने विस्तृत आदेश में जस्टिस जैन ने निर्देश दिया कि 15,000 मासिक भरण-पोषण राशि का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा पत्नी द्वारा अपने व्यावसायिक कौशल में सुधार और आत्म-विकास के लिए उपयोग किया जाए। अदालत ने कहा कि इससे ही यह सुनिश्चित होगा कि भरण-पोषण कानून की वास्तविक मंशा पूरी हो और यह आत्मनिर्भरता की ओर एक पुल बने, न कि अंतिम लक्ष्य।
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एक महिला ने भरण-पोषण राशि बढ़ाने की मांग की थी। फैमिली कोर्ट पहले ही भरण-पोषण की राशि 7,500 से बढ़ाकर पति की नेट सैलरी का एक-तिहाई, यानी 15,000 प्रति माह कर चुकी थी। इससे असंतुष्ट होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में पति की ग्रॉस सैलरी का एक-तिहाई देने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर ऐसा कोई ठोस आधार नहीं पाया, जिससे भरण-पोषण में और वृद्धि को उचित ठहराया जा सके। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रही कि उसकी वास्तविक आवश्यकताओं या खर्चों में ऐसा कोई बढ़ोतरी हुई है, जो पहले से दी जा रही राशि से पूरी नहीं हो पा रही हो। इसी के साथ हाईकोर्ट ने भरण-पोषण बढ़ाने की याचिका को खारिज कर दिया।