रेलू राम पूनिया हत्याकांड: सोनिया-संजीव की समयपूर्व रिहाई वाली मांग याचिका हाईकोर्ट ने स्वीकार की, फैसला बाकी
पूर्व विधायक रेलू राम का बचपन गरीबी में गुजरा था। परिवार की मदद के लिए वह भैंस चराते थे। बाद में वे दिल्ली चले गए। जहां रेलू राम ने ट्रक साफ करने का काम शुरू कर दिया। कुछ साल बाद एक सेठ के पास रहने के बाद उन्होंने कच्चे तेल का कारोबार शुरू कर दिया।
विस्तार
प्रदेश में चर्चित रेलू राम पूनिया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया की बेटी सोनिया और दामाद संजीव कुमार की समयपूर्व रिहाई की मांग वाली याचिका पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। इस मामले में हाई कोर्ट का विस्तृत आदेश आना बाकी है। सोनिया-संजीव कुमार को फांसी की सजा दिलाने वाले एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने कहा कि हम इस मामले की जानकारी जुटा रहे हैं। अभी अदालत के आदेश की प्रति नहीं मिली है। मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
अगस्त 2001 में लितानी गांव के नजदीक स्थित फार्म हाउस में पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बच्चे प्रियंका (14), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (4) और दो पोतियों शिवानी (2) और 45 दिन की प्रीति की हत्या कर दी गई थी। 2004 में हिसार की अदालत ने संजीव और सोनिया को फांसी की सजा सुनाई जिसे 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। बाद में 2014 में दया याचिका में देरी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
संजीव ने दलील दी कि वह 20 साल से अधिक वास्तविक सजा काट चुका है जबकि छूट आदि जोड़ने पर यह अवधि 25 वर्ष 9 माह से अधिक हो जाती है। सोनिया भी 28 वर्ष से अधिक सजा भुगत चुकी हैं। याचिका में कहा कि दोषी करार दिए जाने के समय लागू हरियाणा समय पूर्व नीति 2002 के तहत वे रिहाई के पात्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट के कई व संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि आखिरी सांस तक जेल जैसी सजा केवल संवैधानिक अदालत ही दे सकती है, कोई कार्यकारी कमेटी नहीं। याचिकाकर्ताओं ने छह अगस्त 2024 के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें कहा गया था कि संजीव आखिरी सांस तक जेल में रहेगा। दलील में कहा गया कि स्टेट लेवल कमेटी ने उनकी जेल आचरण रिपोर्ट, शिक्षा, सुधारात्मक गतिविधियों और पुनर्वास कार्यक्रमों पर विचार ही नहीं किया।
रेलूराम के भतीजे फैसले को देंगे चुनौती
रेलूराम के भाई राम सिंह के अधिवक्ता एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने हिसार अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस केस को लड़ा था। खोवाल ने अमर उजाला से बातचीत में कहा कि केस लड़ने वाले रेलू राम के भाई राम सिंह की मौत हो चुकी है। उनके भतीजे अजीत व संजय के फोन आए हैं। उन्होंने बताया कि अगर सोनिया और संजीव जेल से बाहर आते हैं तो हमें जान का खतरा है। हम हाईकोर्ट के आदेश की प्रति का इंतजार कर रहे हैं। हम मामले को हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में चुनौती देंगे। ऐसी निर्मम हत्याएं करने वालों को छोड़ा जाना समाज के लिए गलत संदेश होगा। हम अदालत जाकर इस रिहाई का विरोध करेंगे। आरोपियों के आखिरी सांस तक जेल में रहने की मांग करेंगे।
100 एकड़ जमीन, 13 दुकान, कोठियों के लिए की हत्या
100 एकड़ जमीन, दिल्ली के नांगलोई में 13 दुकानें, फरीदाबाद वाली कोठी समेत कई कोठियां, 3 कार सहित अन्य संपत्ति के लिए सोनिया-संजीव ने मिलकर 8 लोगों की हत्या की थी। 23 अगस्त 2001 की रात लितानी गांव स्थित फार्म हाउस में पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया, उनकी पत्नी, बेटा-बहू, पोता-पोती और एक बच्चे सहित कुल 8 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। सभी को लोहे की रॉड से सोते समय मारा गया था।
पुलिस जांच में सामने आया था कि इस नरसंहार की मुख्य वजह जमीन-जायदाद को लेकर गंभीर विवाद था। रेलू राम की बेटी सोनिया और उसके पति संजीव ने परिवार की संपत्ति पर कब्जा करने की योजना बनाकर यह हत्याकांड अंजाम दिया। पुलिस पूछताछ में सोनिया ने बताया था कि हां, मैंने ही आठों को मारा है। ये लोग मुझसे और मेरे पति से नफरत करते थे। मुझे प्रॉपर्टी नहीं देना चाहते थे। उस रात सभी को मारने के बाद मैं खुद को भी खत्म करना चाहती थी। काश! मर गई होती। मां-पापा के बीच अक्सर लड़ाई होती थी। बात मारपीट तक पहुंच जाती थी।
आज या तो ये दोनों जिंदा रहेंगे या मैं
सोनिया ने पुलिस जांच में था बताया कि 23 अगस्त को मेरा बर्थडे था। मैं संजीव के साथ दोपहर में सहारनपुर से हिसार के लिए निकली। रास्ते में पटाखे भी खरीदे। मेरी बहन के साथ कहासुनी होने के बाद मैंने अनमने मन से बर्थडे सेलिब्रेट किया। चिकन-रोटी खाई। तब तक 12 बजे चुके थे। पापा के कमरे में गई तो वो मां के साथ लड़ रहे थे। गाली-गलौज कर रहे थे। मुझे भी गाली दे रहे थे। तभी मैंने सोच लिया कि आज या तो ये दोनों जिंदा रहेंगे या मैं।
सबसे पहले मैंने पापा को मारा। फिर मुझे लगा कि अब सजा तो मिलनी ही है, तो क्यों न सभी को मार दूं। उसके बाद मां और उनके साथ सो रही सवा महीने की प्रीति को रॉड से कुचल डाला। सभी को खत्म करने के बाद मैं खुद को भी मारना चाहती थी। मैं गाड़ी लेकर घर से निकली। सोचा एक्सीडेंट से खुद को भी खत्म कर देती हूं, फिर लगा कि बच गई तो…? वापस कोठी आ गई। सुसाइड नोट लिखा और आधा शीशी जहर खा लिया।
भैंस चराने वाले रेलूराम का विधायक बनने तक का सफर
पूर्व विधायक रेलू राम का बचपन गरीबी में गुजरा था। परिवार की मदद के लिए वह भैंस चराते थे। बाद में वे दिल्ली चले गए। जहां रेलू राम ने ट्रक साफ करने का काम शुरू कर दिया। कुछ साल बाद एक सेठ के पास रहने के बाद उन्होंने कच्चे तेल का कारोबार शुरू कर दिया। इससे उन्होंने लाखों की संपत्ति बनाई। 100 एकड़ जमीन खरीदी। फरीदाबाद और दिल्ली में कोठी और 13 दुकानें खरीद ली।
1996 में रेलू राम पूनिया बरवाला से रेलगाड़ी के चुनाव चिह्न पर निर्दलीय चुनाव में उतरे। उस चुनाव में एक नारा खूब चला था- ‘रेलू राम की रेल चलेगी, बिन पानी बिन तेल चलेगी।’ विधायक बनने के बाद उन्होंने 2 एकड़ जमीन में कोठी बनवाई थी। उस समय ऐसी कोठी पूरे हिसार में नहीं थी। इसके दूसरे फ्लोर के कमरे तक कार चली जाती थी।