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Karnal News: गर्भावस्था में लापरवाही शिशु की सेहत पर भारी
संवाद न्यूज एजेंसी, करनाल
Updated Mon, 22 Dec 2025 01:10 AM IST
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स्त्री रोग ओपीडी में जांच कराने पहुंची महिलाएं
- फोटो : स्त्री रोग ओपीडी में जांच कराने पहुंची महिलाएं
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करनाल।
गर्भवस्था के दौरान लापरवाही नवजात की सेहत पर असर डालती है। हर महीने नागरिक अस्पताल में करीब 50 प्रसव होते हैं। इनमें से 60 फीसदी का वजन ढाई किलो से कम होता है। इस साल जन्मे 441 नवजात का वजन ढाई किलो से कम दर्ज किया गया। 44 बच्चे ऐसे रहे जिनका वजन 1800 ग्राम से भी कम पाया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात का वजन 2.5 से 3.5 किलो के बीच होना चाहिए। कम वजन के बच्चों में मानसिक व शारीरिक परेशानियों का खतरा अधिक रहता है।
जिला नागरिक अस्पताल के सालभर के आंकड़ों के अनुसार कम वजन वाले शिशुओं की संख्या लगातार बढ़ी है। जनवरी में जहां 30 बच्चे ढाई किलो से कम वजन के पैदा हुए, वहीं सितंबर में यह संख्या बढ़कर 51 तक पहुंच गई। नवंबर में 37 और 19 दिसंबर तक 17 ऐसे नवजात दर्ज किए गए। 1800 ग्राम से कम वजन के बच्चे पैदा होना भी चिंताजनक है। ऐसे बच्चे मातृ स्वास्थ्य की कमजोर स्थिति की ओर इशारा करते हैं।
नागरिक अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजू गर्ग के अनुसार, कम वजन वाले बच्चों के जन्म का सबसे बड़ा कारण गर्भवती महिलाओं में खून की कमी यानी एनीमिया होता है। पौष्टिक आहार की कमी, समय पर जांच न कराना और आयरन-कैल्शियम जैसी जरूरी दवाएं नियमित न लेना भी बड़ी वजह है। यदि गर्भवती महिलाएं शुरुआत से नियमित जांच, संतुलित आहार, आयरन-कैल्शियम का सेवन और मानसिक तनाव से बचाव पर ध्यान दें, तो कम वजन वाले शिशुओं के मामलों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
-समय से पहले प्रसव भी कारण
चिकित्सकों का कहना है कि कई मामलों में हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, बार-बार संक्रमण, अत्यधिक कमजोरी, मानसिक तनाव या घरेलू हिंसा भी गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करता है। समय से पहले प्रसव के कारण भी बच्चे कम वजन के पैदा हो रहे हैं।
- नवजात पर दीर्घकालिक असर
डॉक्टरों का कहना है कि सामान्य नवजात का वजन 2.5 से 3.5 किलो के बीच होना चाहिए। इससे कम वजन होने पर बच्चे को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मानसिक विकास पर असर पड़ने की आशंका रहती है। संक्रमण का खतरा ज्यादा, इम्यूनिटी कमजोर, शारीरिक, सांस संबंधी बीमारियों का जोखिम और शरीर में वसा कम होने से तापमान नियंत्रित रखने में परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
बढ़ रही है संख्या
महीना ढाई किलो से कम वजन 1800 ग्राम से कम वजन
जनवरी 30 3
फरवरी 35 2
मार्च 35 1
अप्रैल 30 3
मई 34 7
जून 33 3
जुलाई 41 4
अगस्त 39 3
सितंबर 51 5
अक्तूबर 39 4
नवंबर 37 7
(18) दिसंबर 17 2
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जिला नागरिक अस्पताल के सालभर के आंकड़ों के अनुसार कम वजन वाले शिशुओं की संख्या लगातार बढ़ी है। जनवरी में जहां 30 बच्चे ढाई किलो से कम वजन के पैदा हुए, वहीं सितंबर में यह संख्या बढ़कर 51 तक पहुंच गई। नवंबर में 37 और 19 दिसंबर तक 17 ऐसे नवजात दर्ज किए गए। 1800 ग्राम से कम वजन के बच्चे पैदा होना भी चिंताजनक है। ऐसे बच्चे मातृ स्वास्थ्य की कमजोर स्थिति की ओर इशारा करते हैं।
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नागरिक अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजू गर्ग के अनुसार, कम वजन वाले बच्चों के जन्म का सबसे बड़ा कारण गर्भवती महिलाओं में खून की कमी यानी एनीमिया होता है। पौष्टिक आहार की कमी, समय पर जांच न कराना और आयरन-कैल्शियम जैसी जरूरी दवाएं नियमित न लेना भी बड़ी वजह है। यदि गर्भवती महिलाएं शुरुआत से नियमित जांच, संतुलित आहार, आयरन-कैल्शियम का सेवन और मानसिक तनाव से बचाव पर ध्यान दें, तो कम वजन वाले शिशुओं के मामलों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
-समय से पहले प्रसव भी कारण
चिकित्सकों का कहना है कि कई मामलों में हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, बार-बार संक्रमण, अत्यधिक कमजोरी, मानसिक तनाव या घरेलू हिंसा भी गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करता है। समय से पहले प्रसव के कारण भी बच्चे कम वजन के पैदा हो रहे हैं।
- नवजात पर दीर्घकालिक असर
डॉक्टरों का कहना है कि सामान्य नवजात का वजन 2.5 से 3.5 किलो के बीच होना चाहिए। इससे कम वजन होने पर बच्चे को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मानसिक विकास पर असर पड़ने की आशंका रहती है। संक्रमण का खतरा ज्यादा, इम्यूनिटी कमजोर, शारीरिक, सांस संबंधी बीमारियों का जोखिम और शरीर में वसा कम होने से तापमान नियंत्रित रखने में परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
बढ़ रही है संख्या
महीना ढाई किलो से कम वजन 1800 ग्राम से कम वजन
जनवरी 30 3
फरवरी 35 2
मार्च 35 1
अप्रैल 30 3
मई 34 7
जून 33 3
जुलाई 41 4
अगस्त 39 3
सितंबर 51 5
अक्तूबर 39 4
नवंबर 37 7
(18) दिसंबर 17 2