{"_id":"69484d9fb79adcdaf007d7df","slug":"there-is-no-heart-doctor-in-the-medical-college-referral-is-the-only-option-karnal-news-c-18-knl1018-806244-2025-12-22","type":"story","status":"publish","title_hn":"Karnal News: मेडिकल कॉलेज में दिल का डॉक्टर ही नहीं, रेफर करना एकमात्र विकल्प","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Karnal News: मेडिकल कॉलेज में दिल का डॉक्टर ही नहीं, रेफर करना एकमात्र विकल्प
संवाद न्यूज एजेंसी, करनाल
Updated Mon, 22 Dec 2025 01:12 AM IST
विज्ञापन
विज्ञापन
करनाल।
दिल का डॉक्टर दिलाइए सरकार... यह हर उस मरीज की बेबसी है जो सीने में दर्द लेकर कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज व अस्पताल पहुंचता है। जिसे कुछ देर बाद रेफरल की पर्ची थमा दी जाती है। जिले के मेडिकल कॉलेज में आठ साल बीत जाने के बावजूद कार्डियोलॉजिस्ट की नियुक्ति नहीं हो सकी। दिल से जुड़ी हर गंभीर बीमारी के मरीजों के लिए जिले से बाहर या निजी अस्पतालों में जाना मजबूरी बन गया है।
वर्ष 2017 में मेडिकल कॉलेज की स्थापना इस उद्देश्य से हुई थी कि जिले को उन्नत और सुपर स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। लेकिन स्थिति जुदा है। कई बार मांग किए जाने के बावजूद न कैथ लैब, न हार्ट सर्जरी की सुविधा और न ही नियमित हार्ट स्पेशलिस्ट अस्तित्व में आ पाया है। मेडिकल कॉलेज में इमरजेंसी और ओपीडी में हर महीने औसतन 8 से 10 ऐसे मरीज पहुंचते हैं, जिनको दिल की बीमारी होती है। लेकिन मेडिकल कॉलेज में उनका आगे का इलाज संभव नहीं हो पाता।
ऐसे में मरीजों को रोहतक स्थित पंडित बीडी शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज या चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च या अंबाला कैंट सिविल अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। कई बार निजी अस्पताल ही एकमात्र विकल्प बचता है, जहां इलाज का खर्च लाखों तक पहुंच जाता है।
- इलाज से पहले जद्दोजहद
हार्ट मरीज के लिए रेफरल सिर्फ कागजी प्रक्रिया नहीं, बल्कि जोखिम भरा सफर बन जाता है। एंबुलेंस से लंबी दूरी तय करना गंभीर स्थिति उत्पन्न करता है। परिजन का साथ जाना, रहने-खाने और इलाज का खर्च परिवार की कमर तोड़ देता है। कई मरीजाें को आर्थिक कारणों से इलाज टालना पड़ जाता है।
- क्रिटिकल केयर यूनिट भी नहीं हुई तैयार
मेडिकल कॉलेज में करीब 11 करोड़ रुपये की लागत से एक अत्याधुनिक बहुमंजिला क्रिटिकल केयर यूनिट का निर्माण होने की बात कही गई थी। जिससे ट्रॉमा सेंटर और आईसीयू का दबाव कम हो और गंभीर मरीजों को बेहतर उपचार मिल सके। लेकिन अभी यह तैयार नहीं हो सकी है। इस यूनिट के बनने से जिले के मरीजों को जटिल हृदय रोगों के इलाज के लिए बड़े शहरों की ओर नहीं भागना पड़ता। यूनिट में ओपन हार्ट सर्जरी, एंजियोप्लास्टी, बाईपास सर्जरी, वॉल्व रिप्लेसमेंट जैसी उन्नत चिकित्सा सुविधाएं मिल सकेंगी। अधिकारियों का कहना है कि प्रक्रिया अभी चल रही है। तनाव, अनियमित दिनचर्या, डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और बदलती जीवनशैली से हृदय रोग लगातार बढ़ रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। लेकिन कॉलेज की भूमिका प्राथमिक इलाज से आगे नहीं बढ़ पा रही।
- इन हृदय रोगों में इलाज संभव नहीं
कार्डियोलॉजिस्ट के अभाव में मेडिकल कॉलेज में एंजियोग्राफी या एंजियोप्लास्टी, कोरोनरी आर्टरी डिजीज यानी धमनियों में ब्लॉकेज की पहचान, वाल्व संबंधी रोग का उपचार संभव नहीं है। इलेक्ट्रो फिजियोलॉजी जांच नहीं हो सकती। जन्मजात हृदय रोग की पहचान भी नहीं हो सकती।
-- -- -- -- -- -- -- -
जिले के सरकारी अस्पतालों में हार्ट केयर यूनिट नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से अंबाला में हार्ट केयर यूनिट स्थापित है। जहां से मरीज इलाज करा सकते हैं। -डॉ. पूनम चौधरी, सीएमओ, करनाल
Trending Videos
दिल का डॉक्टर दिलाइए सरकार... यह हर उस मरीज की बेबसी है जो सीने में दर्द लेकर कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज व अस्पताल पहुंचता है। जिसे कुछ देर बाद रेफरल की पर्ची थमा दी जाती है। जिले के मेडिकल कॉलेज में आठ साल बीत जाने के बावजूद कार्डियोलॉजिस्ट की नियुक्ति नहीं हो सकी। दिल से जुड़ी हर गंभीर बीमारी के मरीजों के लिए जिले से बाहर या निजी अस्पतालों में जाना मजबूरी बन गया है।
वर्ष 2017 में मेडिकल कॉलेज की स्थापना इस उद्देश्य से हुई थी कि जिले को उन्नत और सुपर स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। लेकिन स्थिति जुदा है। कई बार मांग किए जाने के बावजूद न कैथ लैब, न हार्ट सर्जरी की सुविधा और न ही नियमित हार्ट स्पेशलिस्ट अस्तित्व में आ पाया है। मेडिकल कॉलेज में इमरजेंसी और ओपीडी में हर महीने औसतन 8 से 10 ऐसे मरीज पहुंचते हैं, जिनको दिल की बीमारी होती है। लेकिन मेडिकल कॉलेज में उनका आगे का इलाज संभव नहीं हो पाता।
विज्ञापन
विज्ञापन
ऐसे में मरीजों को रोहतक स्थित पंडित बीडी शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज या चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च या अंबाला कैंट सिविल अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। कई बार निजी अस्पताल ही एकमात्र विकल्प बचता है, जहां इलाज का खर्च लाखों तक पहुंच जाता है।
- इलाज से पहले जद्दोजहद
हार्ट मरीज के लिए रेफरल सिर्फ कागजी प्रक्रिया नहीं, बल्कि जोखिम भरा सफर बन जाता है। एंबुलेंस से लंबी दूरी तय करना गंभीर स्थिति उत्पन्न करता है। परिजन का साथ जाना, रहने-खाने और इलाज का खर्च परिवार की कमर तोड़ देता है। कई मरीजाें को आर्थिक कारणों से इलाज टालना पड़ जाता है।
- क्रिटिकल केयर यूनिट भी नहीं हुई तैयार
मेडिकल कॉलेज में करीब 11 करोड़ रुपये की लागत से एक अत्याधुनिक बहुमंजिला क्रिटिकल केयर यूनिट का निर्माण होने की बात कही गई थी। जिससे ट्रॉमा सेंटर और आईसीयू का दबाव कम हो और गंभीर मरीजों को बेहतर उपचार मिल सके। लेकिन अभी यह तैयार नहीं हो सकी है। इस यूनिट के बनने से जिले के मरीजों को जटिल हृदय रोगों के इलाज के लिए बड़े शहरों की ओर नहीं भागना पड़ता। यूनिट में ओपन हार्ट सर्जरी, एंजियोप्लास्टी, बाईपास सर्जरी, वॉल्व रिप्लेसमेंट जैसी उन्नत चिकित्सा सुविधाएं मिल सकेंगी। अधिकारियों का कहना है कि प्रक्रिया अभी चल रही है। तनाव, अनियमित दिनचर्या, डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और बदलती जीवनशैली से हृदय रोग लगातार बढ़ रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। लेकिन कॉलेज की भूमिका प्राथमिक इलाज से आगे नहीं बढ़ पा रही।
- इन हृदय रोगों में इलाज संभव नहीं
कार्डियोलॉजिस्ट के अभाव में मेडिकल कॉलेज में एंजियोग्राफी या एंजियोप्लास्टी, कोरोनरी आर्टरी डिजीज यानी धमनियों में ब्लॉकेज की पहचान, वाल्व संबंधी रोग का उपचार संभव नहीं है। इलेक्ट्रो फिजियोलॉजी जांच नहीं हो सकती। जन्मजात हृदय रोग की पहचान भी नहीं हो सकती।
जिले के सरकारी अस्पतालों में हार्ट केयर यूनिट नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से अंबाला में हार्ट केयर यूनिट स्थापित है। जहां से मरीज इलाज करा सकते हैं। -डॉ. पूनम चौधरी, सीएमओ, करनाल