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RSS: 'लिव-इन में रहने वाले जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं, विवाह शारीरिक संतुष्टि का जरिया नहीं', भागवत का बयान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोलकाता
Published by: निर्मल कांत
Updated Mon, 22 Dec 2025 02:07 AM IST
सार
RSS: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप में लोग जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि परिवार केवल शारीरिक संतुष्टि का जरिया नहीं है। यह समाज की इकाई है।
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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
लिव-इन-रिलेशनशिप वाले जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। परिवार शारीरिक संतुष्टि का जरिया नहीं बल्कि समाज की इकाई है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागत ने रविवार को कोलकाता में एक कार्यक्रम में कही।
भागवत ने कहा, 'जहां तक लिव-इन-रिलेशनशिप वाली बात है। देखिए, आप जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। यह ठीक नहीं है। परिवार जो बनता है, वह शारीरिक संतुष्टि का जरिया नहीं है। वह समाज की इकाई है। व्यक्ति ने समाज में कैसे रहना है, यह प्रशिक्षण परिवार में होता है। सांस्कृतिक परंपरा के संस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसमें से आते हैं।'
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उन्होंने आगे कहा, हमारे यहां तो आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी परिवार है। देश की बचत परिवार में रहती है। देश का सोना परिवार में रहता है। तो सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक इकाई सभी परिवार हैं। अपने देश, समाज, धर्म परंपरा को बनाए रखने का वह जरिया है। आप सन्यासी बन सकते हो। विवाह मत करो..कोई बात नहीं। आप स्वतंत्र हैं। आप सन्यासी बन सकते हैं, सन्यासिनी बन सकती हैं। लेकिन वह भी नहीं करेंगे और जिम्मेदारी भी नहीं लेंगे..तो फिर कैसे होगा। फिर संताने कितनी हों, यह सवाल तो परिवार का है, वर-वधू का भी है और समाज का भी है।
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भागवत ने कहा, 'जहां तक लिव-इन-रिलेशनशिप वाली बात है। देखिए, आप जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। यह ठीक नहीं है। परिवार जो बनता है, वह शारीरिक संतुष्टि का जरिया नहीं है। वह समाज की इकाई है। व्यक्ति ने समाज में कैसे रहना है, यह प्रशिक्षण परिवार में होता है। सांस्कृतिक परंपरा के संस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसमें से आते हैं।'
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उन्होंने आगे कहा, हमारे यहां तो आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी परिवार है। देश की बचत परिवार में रहती है। देश का सोना परिवार में रहता है। तो सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक इकाई सभी परिवार हैं। अपने देश, समाज, धर्म परंपरा को बनाए रखने का वह जरिया है। आप सन्यासी बन सकते हो। विवाह मत करो..कोई बात नहीं। आप स्वतंत्र हैं। आप सन्यासी बन सकते हैं, सन्यासिनी बन सकती हैं। लेकिन वह भी नहीं करेंगे और जिम्मेदारी भी नहीं लेंगे..तो फिर कैसे होगा। फिर संताने कितनी हों, यह सवाल तो परिवार का है, वर-वधू का भी है और समाज का भी है।
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