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Mohan Bhagwat: Why did RSS chief Mohan Bhagwat give this warning on the relationship between Sangh and BJP?
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Mohan Bhagwat ON BJP : संघ- भाजपा के रिश्ते पर RSS प्रमुख मोहन भागवत ने आखिर क्यों दी ये चेतावनी?
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: भास्कर तिवारी Updated Mon, 22 Dec 2025 03:00 AM IST
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भारतीय राजनीति और विचारधारा के गलियारों में अक्सर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को एक ही सिक्के के दो पहलू मान लिया जाता है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों और संघ के जानकारों का मानना है कि बीजेपी के चश्मे से संघ को देखना एक "बहुत बड़ी गलती" है। इसके पीछे कई गहरे और संस्थागत कारण हैं।
बीजेपी एक राजनीतिक दल है जिसका प्राथमिक लक्ष्य सत्ता प्राप्त करना और शासन चलाना है। इसके विपरीत, संघ खुद को एक 'सांस्कृतिक संगठन' मानता है जिसका लक्ष्य 'चरैवेति-चरैवेति' (निरंतर चलते रहना) के सिद्धांत पर समाज सुधार और राष्ट्र निर्माण है। बीजेपी की नीतियां अक्सर तात्कालिक चुनावी लाभ, गठबंधन की मजबूरी और प्रशासनिक व्यावहारिकताओं से प्रेरित होती हैं, जबकि संघ का दृष्टिकोण दशकों लंबी योजना (Long-term vision) पर आधारित होता है। जब कोई व्यक्ति संघ को सिर्फ बीजेपी की 'चुनावी मशीन' समझता है, तो वह संघ के उन हजारों प्रकल्पों (सेवा कार्यों, शिक्षा और ग्रामीण विकास) को नजरअंदाज कर देता है जिनका राजनीति से कोई सीधा लेना-देना नहीं है।
संघ की अपनी एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली है। संघ में निर्णय 'सर्वेक्षण' और 'सामूहिक विचार-विमर्श' से लिए जाते हैं, न कि किसी राजनीतिक हाईकमान के आदेश पर। अक्सर यह धारणा होती है कि संघ बीजेपी को नियंत्रित करता है, लेकिन हकीकत में दोनों के बीच 'समन्वय' (Coordination) होता है, नियंत्रण नहीं। संघ के कई आनुषंगिक संगठन (जैसे भारतीय मजदूर संघ या भारतीय किसान संघ) कई बार बीजेपी सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन भी करते हैं। यह स्वायत्तता दर्शाती है कि संघ का अस्तित्व बीजेपी की सत्ता पर निर्भर नहीं है।
बीजेपी के पास 'कार्यकर्ता' होते हैं जो पार्टी की जीत के लिए काम करते हैं, जबकि संघ 'स्वयंसेवक' तैयार करता है। संघ का मानना है कि उसका काम व्यक्ति निर्माण करना है, जो बाद में समाज के किसी भी क्षेत्र में जाकर राष्ट्रहित में काम करे—चाहे वह राजनीति हो, शिक्षा हो या सेना। यदि कोई केवल बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन से संघ की सफलता को मापता है, तो वह यह समझने में चूक कर देता है कि संघ के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रसार सत्ता प्राप्ति से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
संघ का कार्यक्षेत्र राजनीति के एक छोटे दायरे से कहीं अधिक विशाल है। विद्या भारती (शिक्षा), सेवा भारती (समाज सेवा), और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के माध्यम से संघ समाज के उन हिस्सों में सक्रिय है जहाँ राजनीति नहीं पहुँचती। बीजेपी के सत्ता में न रहने पर भी संघ की शाखाएं और सेवा कार्य निरंतर चलते रहते हैं। इसलिए, संघ को केवल बीजेपी के "बैक-अप सपोर्ट" के रूप में देखना उसके व्यापक सामाजिक प्रभाव को छोटा करके देखने जैसा है।
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