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Chhattisgarh News: Surrendered Naxalites are learning skills, now the lives of Naxalites are changing like thi
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Chhattisgarh News: आत्मसमर्पित नक्सली सीख रहे हुनर, अब ऐसे बदल रही नक्सलियों की जिंदगी
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: भास्कर तिवारी Updated Mon, 22 Dec 2025 01:49 AM IST
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भारत में मुख्यधारा में लौटने वाले आत्मसमर्पित नक्सलियों के लिए सरकार और पुलिस प्रशासन द्वारा 'पुनर्वास और कौशल विकास' की एक व्यापक योजना चलाई जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य उन्हें हिंसा के रास्ते से हटाकर समाज की मुख्यधारा में सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर प्रदान करना है। आत्मसमर्पण करने के बाद, इन व्यक्तियों को विभिन्न व्यावसायिक ट्रेडों में प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
बस्तर आईजी पी. सुंदरराज ने बताया, "माओवादी कार्यकर्ता, जिन्होंने पहले किसी न किसी कारण से हिंसा का रास्ता अपनाया था, अब सुधर रहे हैं और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। उन्हें हर तरह की आर्थिक सहायता और अन्य सहयोग प्रदान किया जा रहा है.जिला प्रशासन और पुलिस के प्रयासों से, सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, आने वाले समय में इन आत्मसमर्पण करने वाले व्यक्तियों के जीवन में निश्चित रूप से सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।
युवाओं को मोबाइल रिपेयरिंग, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबिंग, और वेल्डिंग जैसे तकनीकी कार्यों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि को देखते हुए, उन्हें वैज्ञानिक तरीके से खेती, जैविक खाद बनाना, मत्स्य पालन (मछली पालन), और पोल्ट्री फार्मिंग के गुर सिखाए जाते हैं। महिलाओं और इच्छुक पुरुषों को सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर प्रबंधन, और कंप्यूटर ऑपरेटर जैसे कार्यों में दक्ष किया जा रहा है।
कई जिलों में प्रशासन उन्हें भारी और हल्के वाहन चलाने का प्रशिक्षण देकर ड्राइविंग लाइसेंस भी प्रदान करता है, जिससे वे टैक्सी या ट्रक ड्राइवर के रूप में काम कर सकें। प्रशिक्षण के दौरान इन व्यक्तियों को न केवल हुनर सिखाया जाता है, बल्कि उन्हें वित्तीय सहायता और वजीफा भी दिया जाता है। छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में 'पुलिस मित्र' या 'विकास रक्षक' जैसी योजनाओं के माध्यम से उन्हें सरकारी योजनाओं को लागू करने में भी मदद ली जाती है। इस पूरी प्रक्रिया का मनोवैज्ञानिक पहलू यह है कि जब उनके हाथों में हथियार की जगह औजार और हुनर आता है, तो उनमें आत्म-सम्मान और समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। इससे न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरती है, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाली में भी बड़ी मदद मिलती है।
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