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पंजाबी परीक्षा के आधार पर 27 साल बाद नियमितीकरण से इन्कार मनमाना: हाईकोर्ट

Chandigarh Bureau चंडीगढ़ ब्यूरो
Updated Wed, 17 Dec 2025 01:51 AM IST
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Denial of regularization after 27 years on the basis of Punjabi exam is arbitrary: High Court
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चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि लगभग तीन दशक तक सेवा लेने के बाद किसी कर्मचारी को मिडिल स्टैंडर्ड स्तर की पंजाबी भाषा परीक्षा पास न करने के आधार पर नियमितीकरण से वंचित करने के पंजाब सरकार के फैसले को मनमाना करार दिया है।
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अदालत ने इसे केवल व्यक्तिगत राहत का मामला नहीं, बल्कि राज्य द्वारा श्रम के शोषण पर कड़ा सांविधानिक संदेश करार दिया है। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि छह सप्ताह के भीतर याची को नियमित किया जाए और यदि आदेश का पालन नहीं किया गया, तो कर्मचारी को स्वतः नियमित माना जाएगा।
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जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि राज्य पहले वर्षों तक बिना आपत्ति काम ले और बाद में नियमितीकरण के समय पात्रता शर्तें खोजे यह रवैया अनुच्छेद 14 और 16 के तहत मनमाना और भेदभावपूर्ण है। यह प्रशासनिक सुविधा के नाम पर संविधान की अनदेखी नहीं हो सकती।
हाईकोर्ट ने सरकार के तर्कों को सिरे से खारिज करते हुए सवाल उठाया कि यदि माली के पद के लिए मिडिल स्टैंडर्ड पंजाबी योग्यता वास्तव में अनिवार्य थी तो कर्मचारी 27 वर्षों तक बिना किसी बाधा के अपने दायित्व कैसे निभाता रहा? यह दोहरा मानदंड है कि काम लेते समय योग्यता की अनदेखी की जाती है और लाभ देने के समय उसी योग्यता को हथियार बनाया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि यह मामला सहानुभूति का नहीं, बल्कि एक गंभीर सांविधानिक प्रश्न का है। कोर्ट ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में हजारों दैनिक वेतनभोगी, अस्थायी और अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी वर्षों की सेवा के बाद भी नियमितीकरण न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं। अक्सर उनके दावे उन तकनीकी आधारों पर खारिज कर दिए जाते हैं। अदालत ने संकेत दिया कि इस तरह की बाद में खड़ी की गई बाधाएं सांविधानिक कसौटी पर टिक नहीं पाएंगी। कोर्ट ने नकारात्मक समानता के सिद्धांत का सहारा लेने को भी गलत ठहराया। कोर्ट ने कहा कि नियमितीकरण जैसी कल्याणकारी नीतियों की व्याख्या उद्देश्यपरक होनी चाहिए, न कि दंडात्मक।
प्रशासनिक दृष्टि से अदालत ने यह सवाल भी खड़ा किया कि कितने विभाग आज भी बिना योग्यता जांचे कर्मचारियों से काम ले रहे हैं और बाद में उन्हीं शर्तों को अनिवार्य बताकर दावे खारिज कर रहे हैं।
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