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मजदूरों से काम की कानूनी गारंटी छीनी गई : सुप्रिया श्रीनेत
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चंडीगढ़। एआईसीसी सोशल मीडिया एवं डिजिटल प्लेटफॉर्म विभाग की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि मनरेगा के नाम और ढांचे में बदलाव का फैसला गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों और महिलाओं पर सुनियोजित हमला है। इसके जरिये मजदूरों से काम की कानूनी गारंटी छीनी गई है। पंजाब भवन पहुंचीं सुप्रिया ने केंद्र सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि मनरेगा एक मांग आधारित अधिकार था, जिसमें हर व्यक्ति को 100 दिन का काम मांगने का हक था और काम न मिलने पर मुआवजे का प्रावधान था।
इस योजना ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, ग्रामीण गरीबी में करीब 26 प्रतिशत की कमी लाई और कोविड महामारी के दौरान यह योजना ग्रामीण गरीबों के लिए संजीवनी साबित हुई। इस फैसले से महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी क्योंकि मनरेगा के तहत लगभग 50 प्रतिशत रोजगार महिलाओं को मिला था।
श्रीनेत ने आरोप लगाया कि सरकार ने कानून से महात्मा गांधी का नाम हटाकर बड़ा पाप किया है। गांधी केवल कानून का नाम नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। इस संशोधन बिल में सियासत के चलते राम का नाम जोड़ना भी उचित नहीं। यह हमारे अराध्य श्रीराम जी का अपमान है और यह बात लोगों को समझ नहीं आ रही है।
उन्होंने कहा कि नया कानून बिना किसी परामर्श के लाया गया है और यह कदम राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ाएगा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि नए कानून में 125 दिन के काम की गारंटी दी जा रही है जबकि सच यह है कि भाजपा शासन में औसतन केवल 42 दिन प्रति वर्ष ही काम मिला है। कांग्रेस इस संशोधन बिल का विरोध करेगी और सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करेगी ताकि मजदूरों को मालूम चल सके कि केंद्र सरकार ने उन्हें कैसे ठगा है।
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इस योजना ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, ग्रामीण गरीबी में करीब 26 प्रतिशत की कमी लाई और कोविड महामारी के दौरान यह योजना ग्रामीण गरीबों के लिए संजीवनी साबित हुई। इस फैसले से महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी क्योंकि मनरेगा के तहत लगभग 50 प्रतिशत रोजगार महिलाओं को मिला था।
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श्रीनेत ने आरोप लगाया कि सरकार ने कानून से महात्मा गांधी का नाम हटाकर बड़ा पाप किया है। गांधी केवल कानून का नाम नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। इस संशोधन बिल में सियासत के चलते राम का नाम जोड़ना भी उचित नहीं। यह हमारे अराध्य श्रीराम जी का अपमान है और यह बात लोगों को समझ नहीं आ रही है।
उन्होंने कहा कि नया कानून बिना किसी परामर्श के लाया गया है और यह कदम राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ाएगा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि नए कानून में 125 दिन के काम की गारंटी दी जा रही है जबकि सच यह है कि भाजपा शासन में औसतन केवल 42 दिन प्रति वर्ष ही काम मिला है। कांग्रेस इस संशोधन बिल का विरोध करेगी और सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करेगी ताकि मजदूरों को मालूम चल सके कि केंद्र सरकार ने उन्हें कैसे ठगा है।