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SYL:केंद्र की मौजूदगी में पंजाब-हरियाणा होंगे आमने-सामने, 9 जुलाई को दिल्ली में CM मान व सैनी रखेंगे अपना पक्ष

अमर उजाला ब्यूरो, चंडीगढ़ Published by: नवीन दलाल Updated Sun, 06 Jul 2025 08:07 AM IST
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सार

एसवाईएल नहर के निर्माण का जो खाका तैयार किया गया है, उसमें 214 किलोमीटर में से 92 किलोमीटर नहर हरियाणा में बन चुकी है। पंजाब में एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य पूरी तरह ठप पड़ा है।

Punjab-Haryana will be face to face on SYL in the presence of the Center, meeting in Delhi on July 9
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान - फोटो : संवाद

विस्तार
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सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद पर एक बार फिर पंजाब और हरियाणा आमने-सामने होंगे। केंद्र की मध्यस्थता में 9 जुलाई को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी एसवाईएल के मुद्दे पर अपने राज्यों की ओर से पक्ष रखेंगे।

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केंद्र सरकार लगातार इस कोशिश में है कि एसवाईएल विवाद का कोई हल निकाला जाए। यह बैठक केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल की अध्यक्षता में होगी। बैठक इसलिए भी अहम मानी जा रही है, क्योंकि 13 अगस्त को एसवाईएल के मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई है। सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई से पहले केंद्र एसवाईएल विवाद पर पंजाब और हरियाणा के बीच सहमति बनाने के प्रयास में जुट गया है।
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पंजाब-हरियाणा के बीच एसवाईएल के अलावा भी कई बार जल विवाद देखने को मिल चुका है। चाहे फिर बात बीते दिनों नंगल डैम से हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने की मांग पर खड़े हुए विवाद से ही क्यों न जुड़ी हो। पंजाब के मुख्यमंत्री मान सतलुज-यमुना लिंक नहर पर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि पंजाब के पास किसी भी अन्य राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है।

राज्य में 153 में से 115 ब्लॉक डार्क जोन में हैं। जहां भूजल स्तर 400 से 600 फुट नीचे चला गया है। सीएम मान एसवाईएल के मुद्दे पर कई बार सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि यमुना का पानी पंजाब को मिलना चाहिए, जोकि हरियाणा से यूपी से होते हुए पश्चिम बंगाल तक जा रहा है।

एसवाईएल विवाद की जड़ 31 दिसंबर, 1981 के उस समझौते में है, जिसके तहत एसवाईएल नहर की योजना बनी थी और 1982 में निर्माण शुरू हुआ था। हालांकि 1990 में काम बंद हो गया। हरियाणा ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कोर्ट ने 2002 में पंजाब को एक साल में नहर निर्माण पूरा करने का निर्देश दिया।

2004 में कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि यदि पंजाब निर्माण नहीं करता, तो केंद्र इसे अपने हाथों में ले। कैप्टन सरकार ने 2004 में जल समझौते रद्द कर दिए और 2016 में अकाली-भाजपा सरकार ने नहर के लिए अधिग्रहीत जमीन को डिनोटिफाई कर दिया था।

बीती तीन बैठकों में नहीं निकला कोई हल
एसवाईएल के मुद्दे पर 9 जुलाई को चौथी दौर की बैठक होगी। इससे पहले पंजाब और हरियाणा के बीच तीन बार बैठक हुई, लेकिन इनमें कोई हल नहीं निकला। पहली बैठक 18 अगस्त, 2020 और दूसरी 14 अक्टूबर, 2022 को चंडीगढ़ में हुई थी, जबकि तीसरी बैठक 4 जनवरी, 2023 को दिल्ली में तत्कालीन केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने मई में आदेश दिया था कि पंजाब और हरियाणा केंद्र सरकार के साथ सहयोग करके इस विवाद का हल निकालें। इससे पहले सीएम मान नीति आयोग की पिछली बैठक में यमुना जल में अपने हिस्से की मांग उठा चुके हैं।

एसवाईएल नहर की मौजूदा स्थिति
एसवाईएल नहर के निर्माण का जो खाका तैयार किया गया है, उसमें 214 किलोमीटर में से 92 किलोमीटर नहर हरियाणा में बन चुकी है। पंजाब में एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य पूरी तरह ठप पड़ा है। कई जगह एसवाईएल नहर के लिए खुदाई को मिट्ठी से भरा जा चुका है। पंजाब में कुल 122 किलोमीटर नहर के हिस्से का निर्माण होना है। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2002 में हरियाणा के पक्ष में फैसला देते हुए पंजाब को समझौते के तहत नहर निर्माण के आदेश दिए थे, लेकिन 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में कानून पारित कर 1981 के समझौते को रद्द कर दिया। सुप्रीमकोर्ट ने इस कानून को 2016 में रद्द कर दिया और 30 नवंबर, 2016 को पंजाब में एसवाईएल के हिस्से पर स्टेटस को बनाए रखा।

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