Rohtak: पटाखे से उड़ गया था मुंह, पीजीआई में साढ़े सात घंटे चली सर्जरी; युवक को मिला नया चेहरा
ऑपरेशन की सबसे बड़ी जटिलता मरीज के मुंह के बिखरे टुकड़ों को दोबारा पहले की तरह जोड़ना था। निचले जबड़े में दो फ्रैक्चर थे। इन सभी को सफलतापूर्वक ठीक करना चिकित्सकों के लिए भी नया अनुभव रहा।
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पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंस (पीजीआईडीएस) ने साढ़े सात घंटे की सफल सर्जरी कर झज्जर निवासी सचिन (26) को नया चेहरा देने में सफलता हासिल की है। सचिन ने कुछ दिन पूर्व नशे की हालत में मुंह में सुतली बम (पटाखा) फोड़ लिया था। धमाके से उसका पूरा चेहरा बिखर गया था। इसे फिर से संवारने में डेंटल कॉलेज के चिकित्सकों की टीम ने मैराथन सर्जरी की।
डेंटल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय तिवारी ने बताया कि सचिन को गंभीर हालत में ट्रॉमा सेंटर लाया गया था। पटाखे के धमाके से पूरा चेहरा वीभत्स हो गया था। मुंह खून से भरा था। इस वजह से उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। सबसे बड़ी चुनौती मरीज का जीवन बचाना था। उसे तुरंत ऑक्सीजन देने के लिए गले में छेद बनाया गया। यहां से ऑक्सीजन मिलने पर मरीज को कुछ राहत मिली। अगली चुनौती बिखरे चेहरे को फिर से ठीक करना थी। इसके लिए डेंटल कॉलेज में चिकित्सकों की टीम ने दोपहर एक बजे ऑपरेशन शुरू किया। ऑपरेशन रात साढ़े बजे तक चला।
युवक के चेहरे पर अलग-अलग छह जगह टांके लगाए गए। पहले निचले जबड़े की नष्ट नसों को टीम ने दुरुस्त किया। धमाके से युवक की पैरोटिड ग्रंथी भी बाहर आ गई थी और नसें भी बिखरी थीं। इसे भी सुरक्षित रखते हुए चिकित्सकों ने युवक का चेहरा बचा लिया। मरीज अभी देख-रेख में है।
मुंह के बिखरे टुकड़ों को दोबारा जोड़ना था चुनौती
ऑपरेशन की सबसे बड़ी जटिलता मरीज के मुंह के बिखरे टुकड़ों को दोबारा पहले की तरह जोड़ना था। निचले जबड़े में दो फ्रैक्चर थे। इन सभी को सफलतापूर्वक ठीक करना चिकित्सकों के लिए भी नया अनुभव रहा। चिकित्सकों का दावा है कि दुनिया में इस तरह जान बूझकर मुंह में पटाखा चलाने का पहले कोई केस दर्ज नहीं हुआ था। इस सफलता के लिए स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एचके अग्रवाल व डेंटल कॉलेज प्राचार्य डॉ. संजय तिवारी ने टीम की सराहना की है।
डॉ. रविंद्र सोलंकी की देखरेख में हुआ ऑपरेशन
विभागाध्यक्ष प्रो. महेश गोयल के निर्देशानुसार प्रो. डॉ.रविंद्र सोलंकी ने टीम को लीड किया। उनकी देखरेख में डॉ. दिव्या, डॉ. ईशा, डॉ. आनंद व डॉ. शुभोदीप ने मरीज को नया जीवन दिया।