ओलंपिक: कभी विदेशी सरजमीं से बिना पदक नहीं लौटे बजरंग पूनिया, मां बोलीं- पहले से था विश्वास, पदक जीतकर लौटेगा
बजरंग के पदक जीतने के साथ ही उनके भाई हरेंद्र पूनिया भी भावुक हो उठे। हरेंद्र ने कहा कि भाई ने आज तपस्या पूर्ण कर दी। बजरंग न केवल बढ़िया खिलाड़ी है, बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी है। अगर बजरंग के पैर में चोट नहीं होती तो आज उसके पदक का रंग ही कुछ और होता। बजरंग के पदक जीतने की परिवार के साथ ही पूरे देशवासियों को खुशी है। घर आने पर जोरदार स्वागत किया जाएगा।

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स्टार पहलवान बजरंग पूनिया दूसरे दिन पूरी तरह अपने रंग में नजर आए और पहले दिन की मायूसी को जश्न में तब्दील कर दिया। एकतरफा मुकाबले में देश के लिए कांस्य पदक जीतने के साथ ही अपने विदेश में पदक जीतकर लौटने के रिकॉर्ड को भी कायम रखा।

मैच के बाद बजरंग की मां ओमप्यारी ने कहा कि उन्हें पहले से पूरा विश्वास था कि बेटा जरूर जीतेगा। पिता बलवान सिंह पूनिया ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा कि बजरंग ने सुबह वीडियो कॉल कर बात की थी। उसके चेहरे पर खुशी थी। उसने कहा कि पापा, चिंता मत करना, पदक जीतकर ही आऊंगा। बेटे ने अपना वादा पूरा कर देश को झूमने और हमें गौरवान्वित होने के क्षण दिए हैं। यह जीत पूरे देश की जीत है।
टोक्यो ओलंपिक में शनिवार को कांस्य पदक के लिए कुश्ती के 57 किलोग्राम भारवर्ग के मुकाबले हुए, जिसमें भारत के बजरंग पूनिया व कजाकिस्तान के रेसलर डाउलेट नियाजबेकोव के बीच भिड़ंत थी। इस मुकाबले में बजरंग पूरे रंग में दिखे और एकतरफा मुकाबले में विपक्षी को 8-0 से हरा दिया। मैच के पूरे समय विपक्षी पहलवान एक अंक के लिए संघर्ष करता नजर आया लेकिन बजरंग ने एक भी अंक नहीं लेने दिया।
मुकाबले से पहले ही टीवी के सामने बैठ गया था पूरा परिवार
कांस्य पदक के मुकाबले से पहले ही बजरंग का पूरा परिवार टीवी के सामने बैठ गया था। बजरंग के हर दांव में परिजन खुशी से झूम रहे थे। मुकाबले के दौरान एक पल भी ऐसा नहीं आया, जब लाडले के खेल से परिजनों के चेहरे पर सिकन नजर आई हो। बजरंग के कांस्य पदक जीतते ही पिता बलवान सिंह पूनिया खुशी से उछल पड़े। जीत के साथ ही घर पर ढोल नगाड़े बजने लगे। सभी एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर बधाइयां दे रहे थे।
पहले दिन की अपेक्षा ज्यादा आक्रामक दिखे बजरंग
बजरंग पूनिया शनिवार को खेले गए मुकाबले में पूरी तरह आक्रामक नजर आए। खेल प्रेमियों का कहना है कि शुक्रवार को हुए मुकाबलों में यह आक्रामकता नहीं थी, प्री-क्वार्टर फाइनल, क्वार्टर फाइनल में भले ही जीत हुई हो लेकिन पूरे मैच में लय में नजर नहीं आए। सेमीफाइनल में भी पूरी तरह से डिस्टर्ब दिखाई दिए। जिस कारण वह मैच हार गए। कुश्ती विशेषज्ञों का कहना है कि कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में बजरंग ने अपनी पहचान के अनुसार खेल खेला और कामयाबी हासिल की। पहले दिन पैर की चोट ने उन्हें परेशान किए रखा।
स्वर्ण की राह में चोट बनी रोड़ा
बजरंग के पिता बलवान सिंह पूनिया ने कहा कि ओलंपिक की तैयारियों के लिए बेटा दो माह पहले घर से चला गया था। अभ्यास के दौरान उसके पैर में चोट लग गई थी, जो उसे परेशान किए हुए थी। बजरंग के स्वर्ण पदक की राह में उसके पैर की चोट रोड़ा बन गई। जिस कारण शुक्रवार को खेले गए सेमीफाइनल मुकाबले में उसे हार का सामना करना पड़ा। यदि पैर में चोट नहीं लगी होती तो वह हर हाल में गोल्ड जीतकर लौटता। बेटा हमेशा अपने वादे पर खरा उतरा है। शनिवार सुबह उसने जो वादा किया था, उसे शाम को पूरा कर दिया और देशवासियों को झूमने का अवसर दिया।
गुड़ का चूरमा, आलू के पराठे खिलाऊंगी
बजरंग पूनिया के कांस्य पदक जीतते ही मारे खुशी के मां ओमप्यारी की आंखें छलक उठी। भावुक होकर उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास था कि बेटा कांस्य पदक जीतकर ही लौटेगा और विदेशी धरती पर पदक जीतने के रिकॉर्ड को इस बार भी कायम रखेगा। बजरंग को गुड़ का चूरमा और आलू के पराठे बेहद पसंद हैं। वह जब आएगा, उसे बनाकर खिलाऊंगी।