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Hamirpur (Himachal) News: ढटवाल के धान को खा गया खनन, सैकड़ों कनाल भूमि बंजर
संवाद न्यूज एजेंसी, हमीरपुर (हि. प्र.)
Updated Mon, 29 Dec 2025 01:31 AM IST
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शुक्कर खड्ड में खनन
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कमलेश रतन भारद्वाज
सठवीं (हमीरपुर)। बिलासपुर और हमीरपुर की सीमा पर ढटवाल और घुमारवीं को अलग करने वाली शुक्कर खड्ड अब नदी या खड्ड नहीं, बल्कि एक सूखी, चौड़ी और गहरी खाई बन चुकी है। कभी इस खड्ड के किनारे ढटवाल और घुमारवीं क्षेत्र की आधा दर्जन से अधिक पंचायतों में सैकड़ों कनाल उपजाऊ भूमि पर धान की फसल लहलहाती थी, लेकिन डेढ़ से दो दशक में हालात ऐसे बदले कि न पानी बचा और न ही खेती।
खड्ड का दायरा कहीं 500 मीटर, तो कहीं एक किमी तक फैल गया है। खड्ड के रास्ते महज सात किलोमीटर के दायरे में सात स्टोन क्रशर स्थापित हैं, जिनमें एक स्क्रीनिंग प्लांट भी शामिल है, जबकि आठवें क्रशर को खोलने की तैयारी चल रही है। बेतहाशा खनन ने खड्ड की प्राकृतिक धारा को पूरी तरह बदल दिया है। इसका सीधा असर जमीन और भूजल पर पड़ा है।
आज खड्ड सूख चुकी है और इसके आसपास की खेती योग्य भूमि खनन के कारण या तो खड्ड में समा चुकी है या बंजर हो गई है।
सठवीं पंचायत के बग्गी गांव।
बिलासपुर के गेहड़वी में रिश्तेदारों से मिलकर अपने गांव टिहरी लौट रहे एक बुजुर्ग शुक्कर खड्ड पार करते नजर आते हैं। पूछने पर वह अपना नाम कर्म सिंह ढटवालिया बताते हैं। वे कहते हैं कि अब शुक्कर खड्ड इतनी चौड़ी हो गई है कि इसे पार करते ही पसीने छूट जाते हैं। पहले खड्ड पार करने के लिए जूते खोलने पड़ते थे, पर अब पानी ही नहीं बचा। खनन ने पानी भी खा लिया और जमीन भी। खड्ड के बीच खड़े होकर करीब 200 मीटर दूर किनारे की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि कभी उनकी 15 बीघा जमीन थी, जिस पर धान की खेती होती थी। पांच बीघा जमीन खड्ड में समा चुकी है और बाकी बची जमीन खनन से बंजर हो गई है।
मैं खुद खनन माफिया, शुक्कर की दशा देख होता है दुख
खड्ड किनारे बने अमृत सरोवर के पास खड़े एक अधेड़ व्यक्ति पहले सवालों से बचते हैं, फिर मायूसी में कहते हैं कि मैं खुद खनन माफिया हूं, लेकिन कभी क्रशर को सप्लाई नहीं की। लोगों की मांग पर कभी-कभार ट्रैक्टर से रेत-बजरी उठा लेता हूं। यह भी गलत है। सूखे अमृत सरोवर की ओर इशारा करते हुए वे कहते हैं कि यह सिर्फ सरोवर नहीं, हमारी उम्मीदें सूख गई हैं।
भारी मशीनरी से हो रहा खनन, शिकायतों पर बड़ी कार्रवाई नदारद
पिछले डेढ़ दशक से क्षेत्र में बेतहाशा खनन जारी है। ग्रामीण कई बार भारी मशीनरी से अवैध खनन की शिकायतें विभाग और प्रशासन से कर चुके हैं, लेकिन आज तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। ढटवाल क्षेत्र की सठवीं, धंगोटा, महारल, जमली बड़ा ग्रां पंचायतों के अलावा घुमारवीं की करलोटी और पपलाह सहित कई पंचायतों के सैकड़ों किसान परिवार प्रभावित हुए हैं। करीब 500 कनाल से अधिक खेती योग्य भूमि या तो शुक्कर खड्ड में समा चुकी है या रेत-बजरी में तब्दील होकर बंजर बन गई है।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरण समाज एवं नए शोध पुस्तक के लेखक पर्यावरणविद आचार्य रतन लाल वर्मा कहते हैं कि खनन से पानी और भूमि बंजर होने के साथ नदियों और खड्डों के साथ लगते पहाड़ों में असंतुलन और वायु प्रदूषण हो रहा है। इसके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आएंगे। अंधाधुंध निर्माण ने खनन को जरूरत बना दिया है। समाज को इस जरूरत को कम करने और सरकार को खनन नियंत्रित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
कोट्स
मसला वैध या अवैध खनन का नहीं है। अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा खनन दोनों ही सूरतों में घातक है। दो दशक पहले धान की फसल काटते-काटते पसीने छूटते थे, आज वह दौर सपना बन गया है। -कर्म सिंह ढटवालिया, निवासी टिहरी
अब गांवों के नालों के पास भी 250 से 300 फुट पर पानी मिल रहा है। लोग गन्ना, गेहूं और मक्की को विकल्प मान रहे हैं, लेकिन खनन यूं ही चलता रहा, तो बोर भी सूख जाएंगे। -किशोरी लाल, निवासी बग्गी
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सठवीं (हमीरपुर)। बिलासपुर और हमीरपुर की सीमा पर ढटवाल और घुमारवीं को अलग करने वाली शुक्कर खड्ड अब नदी या खड्ड नहीं, बल्कि एक सूखी, चौड़ी और गहरी खाई बन चुकी है। कभी इस खड्ड के किनारे ढटवाल और घुमारवीं क्षेत्र की आधा दर्जन से अधिक पंचायतों में सैकड़ों कनाल उपजाऊ भूमि पर धान की फसल लहलहाती थी, लेकिन डेढ़ से दो दशक में हालात ऐसे बदले कि न पानी बचा और न ही खेती।
खड्ड का दायरा कहीं 500 मीटर, तो कहीं एक किमी तक फैल गया है। खड्ड के रास्ते महज सात किलोमीटर के दायरे में सात स्टोन क्रशर स्थापित हैं, जिनमें एक स्क्रीनिंग प्लांट भी शामिल है, जबकि आठवें क्रशर को खोलने की तैयारी चल रही है। बेतहाशा खनन ने खड्ड की प्राकृतिक धारा को पूरी तरह बदल दिया है। इसका सीधा असर जमीन और भूजल पर पड़ा है।
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आज खड्ड सूख चुकी है और इसके आसपास की खेती योग्य भूमि खनन के कारण या तो खड्ड में समा चुकी है या बंजर हो गई है।
सठवीं पंचायत के बग्गी गांव।
बिलासपुर के गेहड़वी में रिश्तेदारों से मिलकर अपने गांव टिहरी लौट रहे एक बुजुर्ग शुक्कर खड्ड पार करते नजर आते हैं। पूछने पर वह अपना नाम कर्म सिंह ढटवालिया बताते हैं। वे कहते हैं कि अब शुक्कर खड्ड इतनी चौड़ी हो गई है कि इसे पार करते ही पसीने छूट जाते हैं। पहले खड्ड पार करने के लिए जूते खोलने पड़ते थे, पर अब पानी ही नहीं बचा। खनन ने पानी भी खा लिया और जमीन भी। खड्ड के बीच खड़े होकर करीब 200 मीटर दूर किनारे की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि कभी उनकी 15 बीघा जमीन थी, जिस पर धान की खेती होती थी। पांच बीघा जमीन खड्ड में समा चुकी है और बाकी बची जमीन खनन से बंजर हो गई है।
मैं खुद खनन माफिया, शुक्कर की दशा देख होता है दुख
खड्ड किनारे बने अमृत सरोवर के पास खड़े एक अधेड़ व्यक्ति पहले सवालों से बचते हैं, फिर मायूसी में कहते हैं कि मैं खुद खनन माफिया हूं, लेकिन कभी क्रशर को सप्लाई नहीं की। लोगों की मांग पर कभी-कभार ट्रैक्टर से रेत-बजरी उठा लेता हूं। यह भी गलत है। सूखे अमृत सरोवर की ओर इशारा करते हुए वे कहते हैं कि यह सिर्फ सरोवर नहीं, हमारी उम्मीदें सूख गई हैं।
भारी मशीनरी से हो रहा खनन, शिकायतों पर बड़ी कार्रवाई नदारद
पिछले डेढ़ दशक से क्षेत्र में बेतहाशा खनन जारी है। ग्रामीण कई बार भारी मशीनरी से अवैध खनन की शिकायतें विभाग और प्रशासन से कर चुके हैं, लेकिन आज तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। ढटवाल क्षेत्र की सठवीं, धंगोटा, महारल, जमली बड़ा ग्रां पंचायतों के अलावा घुमारवीं की करलोटी और पपलाह सहित कई पंचायतों के सैकड़ों किसान परिवार प्रभावित हुए हैं। करीब 500 कनाल से अधिक खेती योग्य भूमि या तो शुक्कर खड्ड में समा चुकी है या रेत-बजरी में तब्दील होकर बंजर बन गई है।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरण समाज एवं नए शोध पुस्तक के लेखक पर्यावरणविद आचार्य रतन लाल वर्मा कहते हैं कि खनन से पानी और भूमि बंजर होने के साथ नदियों और खड्डों के साथ लगते पहाड़ों में असंतुलन और वायु प्रदूषण हो रहा है। इसके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आएंगे। अंधाधुंध निर्माण ने खनन को जरूरत बना दिया है। समाज को इस जरूरत को कम करने और सरकार को खनन नियंत्रित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
कोट्स
मसला वैध या अवैध खनन का नहीं है। अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा खनन दोनों ही सूरतों में घातक है। दो दशक पहले धान की फसल काटते-काटते पसीने छूटते थे, आज वह दौर सपना बन गया है। -कर्म सिंह ढटवालिया, निवासी टिहरी
अब गांवों के नालों के पास भी 250 से 300 फुट पर पानी मिल रहा है। लोग गन्ना, गेहूं और मक्की को विकल्प मान रहे हैं, लेकिन खनन यूं ही चलता रहा, तो बोर भी सूख जाएंगे। -किशोरी लाल, निवासी बग्गी

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